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अक्कितम की प्रतिनिधि कविताएँ

उमेश कुमार सिंह चौहान

प्रकाशक : भारतीय ज्ञानपीठ प्रकाशित वर्ष : 2009
पृष्ठ :134
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 7744
आईएसबीएन :978-81-263-1735

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आद्यन्त आत्मान्वेषण की कविता.. यथार्थ का अन्वेषण.. चिरन्तन सत्य की खोज...

Akkitam ki Pratinidhi Kavitayen - A Hindi Book - by Umesh Kumar Singh Chauhan

मलयालम के सुप्रसिद्ध कवि अक्कितम की प्रतिनिधि कविताओं को हिन्दी में पढ़ना वस्तुतः एक विरल अनुभव है। अक्कितम की कविताओं की यात्रा 60 वर्ष से भी अधिक की है। इस लम्बी काव्य-यात्रा में उनकी कविताएँ अनेक-संग्रहों तथा खंड-काव्यों के रूप में हमारे सामने आयी हैं। अक्कितम की कविता आद्यन्त आत्मान्वेषण की कविता है। यथार्थ का अन्वेषण। चिरन्तन सत्य की खोज। इस खोज में चारों तरफ वेदना है। आँसुओं का प्रवाह है। जहाँ क्रोध है, अमर्ष है वहाँ उसके शमन का विधान बनने वाले आँसू भी हैं। इसी आर्द्रता से सृजित होते हैं मानवीय गुण। अक्कितम परम्पराओं के अनुगमन में विश्वास नहीं करते। वे परम्पराओं का निरन्तर आकलन करते हुए अच्छाइयों को चुनते हैं, सन्मार्ग को पहचानने का प्रयत्न करते हैं और आधुनिक परिवेश में उस पाम्परिक ज्ञान का उपयोग, समाज को, इस सारे विश्व को बेहतर बनाने के लिए करने का सन्देश देते हैं। इस संग्रह में उपस्थित ‘बीसवीं सदी का इतिहास’ निश्चित रूप से उनकी सबसे महत्त्वपूर्ण एवं कालजयी रचना है। आलोचकों ने इसकी तुलना टी. एस. इलियट के ‘वेस्ट लैंड’ से की है।

‘बीसवीं सदी का इतिहास’ के बाद क्रमेण अक्कितम की कविताओं में जीवन की क्षुद्रता का, उसकी आर्द्रता का, आँसुओं की महत्ता का, निःस्वार्थ-नैसर्गिक प्रेम की अनिवार्यता का अवबोधन बढ़ता ही गया है। अक्कितम की अनेक कविताओं में उनके अगाध प्रकृति-प्रेम के भी दर्शन होते हैं। अक्कितम की बहिर्दृष्टि जितनी व्यापक है, उनकी अन्तर्दृष्टि उतनी ही गहरी है। वे कठिन से कठिन परिस्थिति को समग्रता से जाँचते-परखते हैं और फिर कविता के माध्यम से हमें उसके बीच से, उसका साक्षात्कार कराते हुए, जिज्ञासाओं के समाधान की ओर ले जाते हैं। उपनिषद में कहा गया है कि जो ऋषि नहीं वह कवि नहीं हो सकता। ‘नानृषिःकविः’ की यह उक्ति अक्कितम पर सटीक बैठती है।

विश्वास है कि हिन्दी के सुधी पाठक उमेश कुमार सिंह चौहान द्वारा अनूदित अक्कितम की इन कविताओं का स्वागत करेंगे। 

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