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शक्ति के 48 नियम

रॉबर्ट ग्रीन

प्रकाशक : मंजुल पब्लिशिंग हाउस प्रकाशित वर्ष : 2007
पृष्ठ :258
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 7843
आईएसबीएन :9788184081039

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शक्ति के 48 नियम आधुनिक युग में चालाकी से स्वार्थ साधने की मार्ददर्शिका है...

Shakti ke 48 Niyam - A Hindi Book - by Robert Green

प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश

शिखर पर कैसे पहुँचें और वहाँ पर कैसे बने रहें–शक्ति के 48 अमर और अचूक नियम ये हैं : 

  • नियम 1 :
    कभी बॉस से श्रेष्ठ न दिखें
  • नियम 2 :
    शत्रुओं से काम लेना सीखें
  • नियम 3 :
    अपने इरादे छिपाकर रखें
  • नियम 4 :
    हमेशा ज़रूरत से कम बोलें

  • ‘यह पुस्तक सिखाती है कि आधुनिक युग में प्रगति करने के लिए आप कैसे धोखा दें, नाटक करें और ढोंग करें।’

    –इंडिपेंडेंट ऑन संडे

    ‘लेखक ने बेहतरीन शोध किया है।’

    –डेली टेलीग्राफ़

    ‘आख़िर वह पुस्तक आ ही गई, जो शक्ति के क्षेत्र में चालाकी से ऊपर पहुँचने में आपकी मदद करेगी।’

    –डेली एक्सप्रेस

    कुछ लोग शक्ति से खेलते हैं और अपनी सारी शक्ति एक घातक ग़लती के कारण खो बैठते हैं। कुछ लोग ज़रूरत से ज़्यादा आगे चले जाते हैं और कुछ लोग ज़रूरत के मुताबिक आगे नहीं जा पाते हैं। लेकिन बहुत कम लोग सही क़दम उठाते हैं और बेहद चतुराई से शक्तिशाली बन जाते हैं।

    शक्ति के 48 नियम नीतिहीन, चालाकी से भरी, निर्मम और शिक्षाप्रद है। यह पुस्तक शक्ति के इतिहास के तीन हज़ार सालों का रोचक निचोड़ है। 500 पृष्ठों की बेस्टसेलर का यह नया संक्षिप्त संस्करण महान विचारकों की बुद्घिमत्ता का सार प्रस्तुत करता है। इस पुस्तक में मैकियावली, सुन-त्सू और कार्ल वॉन क्लॉज़ेविट्ज़ की नसीहतें भी शामिल हैं और सभी युगों के राजनेताओं, योद्धाओं, बरगलाने वालों और चालाक लोगों के उदाहरण भी शामिल हैं।

    शक्ति के 48 नियम आधुनिक युग में चालाकी से स्वार्थ साधने की मार्ददर्शिका है। यह आपके द्वारा ख़रीदी गई सबसे मज़ेदार और उपयोगी पुस्तक साबित हो सकती है।

    नियम

    1
    कभी बॉस से श्रेष्ठ न दिखें


    विचार


    अपने से वरिष्ठ लोगों को यह महसूस करने दें कि वे आपसे श्रेष्ठ हैं। उन्हें खुश और प्रभावित करने के लिए अपनी योग्यताओं का जरूरत से ज़्यादा प्रदर्शन न करें। अगर आप ऐसा करेंगे, तो परिणाम ठीक उलटा होगा–वे भयभीत और असुरक्षित महसूस करेंगे। इसके बजाय अगर आप अपने बॉस को ज़्यादा प्रतिभाशाली बताते रहेंगे, तो आप बुलंदियों को छू लेंगे।

    शक्ति की कुंजी


    हर इंसान में असुरक्षा की भावनाएँ होती हैं।
    जब आप लोगों के सामने अपने गुणों का प्रदर्शन करते हैं, तो उनमें द्वेष, ईर्ष्या और असुरक्षा की भावनाएँ जाग जाती हैं। यह स्वाभाविक है और इसका कोई इलाज नहीं है। दूसरों की ओछी भावनाओं की चिंता करके आप अपनी ज़िंदगी बर्बाद नहीं कर सकते। बहरहाल, अपने से ऊपर बैठे लोगों के प्रति आपको एक अलग नीति अपनाना चाहिए। बॉस से श्रेष्ठ दिखना या उससे ज़्यादा प्रभावशाली दिखना शक्ति हासिल करने की राह में शायद सबसे बड़ी ग़लती होती है।

    यह सोचने की मूर्खता न करें कि दुनिया लुई चौदहवें और मेडिसी के युग के बाद बहुत बदल चुकी है। ऊँचे पद पर बैठे लोग राजाओं और रानियों की तरह होते हैं। वे अपने पद पर सुरक्षित महसूस करना चाहते हैं। बुद्धि, वाकचातुर्य और आकर्षण के मामले में वे अपने आस-पास के लोगों से श्रेष्ठ दिखना चाहते हैं। आप भूल से भी इस आम धारणा पर न चलें कि प्रतिभा और गुणों का प्रदर्शन करके आप बॉस की सदभावना हासिल कर लेंगे। हो सकता है बॉस ऊपर से तो आपकी प्रशंसा करने का नाटक करे, लेकिन मौक़ा मिलते ही वह आपकी जगह पर किसी कम बुद्धिमान, कम आकर्षक और कम ख़तरनाक लगने वाले व्यक्ति को नियुक्त कर देगा।

    आपको यह जान लेना चाहिए कि इस नियम के दो पहलू हैं। पहली बार, हो सकता है कि आप कोशिश किए बिना ही अपने बॉस के श्रेष्ठ या ज़्यादा दैदीप्यमान दिखते हों। बहरहाल, कुछ बॉस दूसरों से ज़्यादा असुरक्षित महसूस करते हैं। हो सकता है कि अपने आकर्षण और गुणों की बदौलत आप बिना कुछ किए ही उनसे ज़्यादा प्रभावशाली दिखते हों। अगर आप अपने आकर्षण को कम न करना चाहें, तो भी कम से कम आपको आत्म-प्रदर्शन के इस दैत्य से बचना चाहिए और बॉस के साथ रहते समय अपने अच्छे गुणों को दबाने का तरीक़ा खोजना चाहिए।

    दूसरी बात, यह कभी न मानें कि चूँकि बॉस आपसे प्रेम करता है, इसलिए आप अपनी मनमर्ज़ी का हर काम कर सकते हैं। ऐसे कई प्रिय पात्रों या मुँहचढ़े लोगों पर किताबें लिखी जा सकती हैं, जिन्होंने यह मान लिया था कि वे हमेशा बॉस की नज़रों से चढ़े रहेंगे, लेकिन बॉस से ज़्यादा चमकने के कारण वे उसकी नज़रों से गिर गए।

    अपने बॉस से श्रेष्ठ दिखने के ख़तरे को जानने के बाद आप इस नियम से लाभ उठा सकते हैं। सबसे पहले तो आपको अपने मालिक की चापलूसी करना चाहिए और उसे चने के झाड़ पर चढ़ाना चाहिए। प्रत्यक्ष या सीधी चापलूसी असरदार होती है, लेकिन इसकी कुछ सीमाएँ भी है। प्रत्यक्ष चापलूसी बहुत स्पष्ट होती है और साफ़ दिख जाती है। इसके अलावा यह दूसरे दरबारियों को भी चुभ जाती है। इसके बजाय अप्रत्यक्ष या छिपाकर की गई चापलूसी बहुत शक्तिशाली होती है। उदाहरण के लिए, अगर आप अपने बॉस से ज़्यादा बुद्धिमान हैं,

    तो इसके विपरीत प्रदर्शन करें। उसे अपने से ज़्यादा बुद्धिमान नज़र आने दें। मूर्खता का अभिनय करें। ऐसा दिखावा करें, जैसे आपको उसकी विशेषज्ञतापूर्ण सलाह की ज़रूरत है। ऐसी हानिरहित ग़लतियाँ करें, जिनसे आपको आगे चलकर नुक़सान न पहुँचे, लेकिन जिनके कारण आपको उसकी मदद माँगने का अवसर मिले। हर बॉस को अपने ज्ञान का प्रदर्शन करना अच्छा लगता है। अगर आप अपने बॉस के अनुभव के ख़ज़ाने से सलाह नहीं माँगेंगे, तो वह आपके प्रति आक्रोश और दुर्भावना रख सकता है।

    अगर आपके विचार अपने बॉस के विचारों से ज़्यादा रचनात्मक हैं, तो सबके सामने उनका श्रेय उसे ही दें। सबको यह स्पष्ट बता दें कि आपकी सलाह दरअसल बॉस की सलाह की प्रतिध्वनि मात्र है।

    अगर आप अपने बॉस से ज़्यादा सामाजिक और उदार हैं, तो आपको सावधान रहना चाहिए। इस बात का ध्यान रखें कि आपका बॉस सूर्य है और आपको उसकी चमक रोकने वाला बादल नहीं बनना चाहिए। सबके सामने हमेशा बॉस को सूर्य साबित करते रहें, जिसके चारों तरफ़ हर व्यक्ति ग्रहों की तरह चक्कर लगाता है। उसे शक्ति और प्रकाश का पुंज बना दें। उसे ध्यान का केंद्र बना दें।

    इन सभी मामलों में अपने गुणों को छिपाना कमज़ोरी नहीं है, क्योंकि इसके परिणामस्वरूप आपको शक्ति हासिल होती है। जब आप बॉस को अपने से ज़्यादा चमकने देते हैं, तो बागडोर आपके हाथ में होती है। आप उसकी असुरक्षा के शिकार नहीं बनते हैं। यह उस दिन काम आएगा, जब आप निचले पद से ऊपर उठने की कोशिश करेंगे। अगर आप बॉस को खुद से ज़्यादा चमकने देंगे, तो वह आपको ईश्वर का दिया वरदान मानेगा और तत्काल आपकी तरक्की कर देगा।

    तस्वीर : आसमान में सितारे। एक समय में सिर्फ़ एक ही सूर्य रह सकता है। कभी भी सूरज की रोशनी में बाधा न डालें या उसकी चमक से मुक़ाबला न करें। इसके बजाय आसमान में ख़ुद को धुँधला बनाकर और सूर्य की रोशनी को अधिकतम बनाने के तरीक़े खोजें।

    विशेषज्ञ की राय : अपने मालिक से ज़्यादा तेज़ी से चमकने से बचें। किसी भी तरह की श्रेष्ठता लोगों को नापसंद होती है और वे उसकी निंदा करते हैं, लेकिन अपने बॉस से ज़्यादा श्रेष्ठ दिखने की कोशिश तो मूर्खतापूर्ण ही नहीं, बल्कि घातक भी हो सकती है। आसमान के सितारे हमें यही सबक सिखाते हैं–हो सकता है वे सूर्य जितने ही चमकदार हों, लेकिन सूर्य के चमकते समय वे नज़र नहीं आते हैं। (बाल्तेसर ग्रेशियर, 1601-1658)

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