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झाँसी की रानी

जयवर्धन

प्रकाशक : किताबघर प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2010
पृष्ठ :83
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 7857
आईएसबीएन :978-93-80146-53

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एक ऐतिहासिक कथा पर आधारित नाटक...

Jhansi Ki Rani - A Hindi Book - by Jaywardhan

प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश


झाँसी की रानी

दृश्य 1


[पेशवा बाजीराव द्वितीय का बैठकख़ाना, साथ में हैं बालगुरू और तात्या]
पेशवा : बालागुरू, आपके अखाड़े का काम कैसा चल रहा है ?
बालागुरू : अद्भुत। लगभग दर्जनभर लड़के हैं। मलखंब, कुश्ती, तलवार-बाज़ी में सब एक से बढ़कर एक, लेकिन महाराज, आपके दीवान मोरोपन्त की लड़की मनु का कोई जवाब नहीं। हर काम में लड़कों से दो हाथ आगे। सारे के सारे लड़के एक तरफ़ और अकेली मनु एक तरफ़। आ-ह-हा, क्या चमक है ! आगे भी यही लगन बनी रही तो बिठूर का नाम ज़रूर रौशन करेगी। बालागुरू की भविष्यवाणी है।

[मोरोपन्त का प्रवेश]
मोरोपन्त : महाराज, झाँसी के ज्योतिषाचार्य तात्या दीक्षित आये हैं। आपसे मिलना चाहते हैं।
पेशवा : अवश्य। बुलवाइये। तात्या, जाओ, दीक्षित जी को अपने साथ ले आना।
[तात्या दीक्षित जी को लेने बाहर चला जाता है।]

बालागुरू : महाराज ! अब मैं चलने की आज्ञा चाहूँगा। शाम को समय मिले तो अखाड़े पर आइये और बच्चों को अपना आशीर्वाद दीजिये। मोरोपन्त साहब, आप भी आज आकर अपनी बेटी का हुनर देख जाइये और हाँ, साथ में अपने तात्या और झाँसी के तात्या दीक्षित को लाना मत भूलिएगा। आप सबको ख़ूब आनन्द आयेगा। प्रणाम !
[पेशवा हाथ जोड़कर प्रणाम करते हैं। गुरुजी प्रणाम करके बाहर चले जाते हैं।]
पेशवा : मोरोपन्त, नाना और राव घुड़सवारी करके आ गये क्या ?

मोरोपन्त : अभी कहाँ आये महाराज। एक दूसरे से आगे निकल जाने के चक्कर में तीनों दूर निकल जाते हैं। काफ़ी समय हो गया, अब आते ही होंगे।
[तात्या टोपे के साथ तात्या दीक्षित का आगमन]
दीक्षित : महाराज पेशवा बाजीराव को तात्या दीक्षित का प्रणाम !
[तात्या टोपे अन्दर छोड़कर चला जाता है।]

पेशवा : आइये-आइये दीक्षित जी, क्या हाल है आपकी झाँसी के ? राजकाज कैसा चल रहा है ?
दीक्षित : अंग्रेज़ जैसा चला रहे हैं, चल रहा है।
पेशवा : और क्या हाल हैं, आपके महाराज गंगाधर राव के ? सुना है, कला के बड़े रसिक हैं ?
दीक्षित : कला और साहित्य दोनों के रसिक हैं। उनके पुस्तकालय में नाना प्रकार की हस्तलिखित पुस्तकों का विशाल भण्डार है, लेकिन नाटकों का उन्हें विशेष शौक़ है। अनेक संस्कृत नाटकों का हिन्दी में अनुवाद करवाया है। महल के ठीक पीछे एक नाटकशाला है, जिसमें महाराज स्वयं भी अभिनय करते हैं।
पेशवा : बहुत ख़ूब !

मोरोपन्त : महाराज, दीक्षित जी एक बार मुझको काशी में मिले थे यात्रा के लिए आये हुए थे। राजा गंगाधर राव के यहाँ इनका जो मान-सम्मान है सो है, मगर ज्योतिष का विद्वान होने के नाते पूरी झाँसी में आपका बड़ा सम्मान है।
पेशवा : बहुत ख़ूब। मोरोपन्त, तुम मनु को लेकर काफ़ी चिंतित हो, इस बारे में दीक्षित जी से ही क्यों नहीं बात करते ?
दीक्षित : हाँ-हाँ बताइये, क्या बात है ?

मोरोपन्त : दीक्षित जी, मुझे अपनी कन्या मनुबाई के विवाह की बड़ी चिंता है। मैंने बहुत खोज की है, परन्तु कोई योग्य वर नहीं मिला।
पेशवा : कन्या बहुत सुन्दर है। बड़ी कुशाग्रबुद्धि और होनहार।
मोरोपन्त : घुड़सवारी, हथियार चलाना सब आता है।
पेशवा : बालिका है, इसलिए इस आयु में जितना पढ़ सकती थी, पढ़ा है, परन्तु तेज़ बहुत है। पूजा-पाठ मन लगाकर करती है।

मोरोपन्त : (कपड़े में लिपटी हुई जन्मपत्री देते) जन्मपत्री है मेरे पास...आपका...संसार में बहुत परिचय है, आप इस कन्या के लिए योग्य वर ढ़ूँढ़ दीजिए। बड़ा अनुग्रह होगा।
दीक्षित : (जन्मपत्री से नज़र ऊपर उठाकर) ऐसी जन्मपत्री मैंने कदाचित् ही पहले कभी देखी हो। इसको कहीं की रानी होना चाहिए।

मोरोपन्त : दीक्षित जी, क्या होना चाहिए, यह बाद की बात है। सच्चाई यह है कि अभी इसकी शादी के लाले पड़े हैं। 14 साल की होने वाली है। इधर मैं सुयोग्य वर ढूँढ़-ढूँढ़कर थक गया हूँ।
दीक्षित : समय से पहले कुछ भी संभव नहीं है दीवान साहब ! भाग्य में जब जो लिखा है, तभी होगा। आपके ढूँढ़ने से कुछ नहीं होगा। लगता है आज ईश्वर ने मुझे इसी शुभ कार्य के लिए भेजा है।
पेशला : तो क्या आपकी नज़र में कोई है, जिससे मनु का विवाह रचाया जा सके ?

दीक्षित : हाँ, है महाराज ! इस लड़की की जन्मपत्री देखते ही एक दूसरी जन्मपत्री मेरी आँखों के सामने घूम गयी। मैंने कहा था कि यह लड़की एक दिन रानी बनेगी, रानी। वाह ! क्या सयोग है। बस...?
मोरोपन्त : बस क्या दीक्षित जी ?
दीक्षित : बस, एक दुविधा है मन में। दरअसल वर दुहाजू है और...उम्र भी लगभग 40 बरस है।
मोरोपन्त : नहीं-नही, अपनी मनु अभी 14 की भी नहीं हुई है।
पेशवा : दीक्षित जी, मैं जान सकता हूँ कि ये हैं कौन ? और कहाँ के हैं ?

दीक्षित : जी, झाँसी के हमारे महाराज गंगाधर राव जी। देखकर कोई उनकी उम्र का अंदाज़ा नहीं लगा सकता।
मोरोपन्त : दीक्षित जी, सहज सम्बन्धों के लिए समानता आवश्यक है। हुँह...कहाँ राजा भोज, कहाँ गंगू तेली।
पेशवा : क्या गंगाधर राव जी इस सम्बन्ध को स्वीकार करेंगे ? इससे भी अहम प्रश्न यह है कि क्या वे मानसिक रूप से दूसरे विवाह के लिए तैयार हैं ? और वे हमारे प्रस्ताव को मान जायेंगे ?

दीक्षित : कदापि नहीं मानेंगे...ना। मजाल है कि नाक पर मक्खी बैठ जाये। मगर हम मनवाएँगे। हम मक्खी नहीं, तात्या दीक्षित हैं। आख़िर झाँसी का उत्तराधिकारी चाहिए कि नहीं ?
पेशवा : अगर आपको लगता है कि बात बन जाऐगी तो बात चला कर देख लीजिए। राजा साहब से कहिएगा कि मनु हम सब की लाडली है। मनु के विवाह का दायित्व पेशवा बाजीराव पर है।
[एक शोर उभरता है और पेशवा के छोटे पुत्र राव साहब अन्दर आते हैं।]

पेशवा : राव ! यह कैसा शोर है ?
राव : नाना चोट से लहूलुहान हो गये हैं।
पेशवा : चोट ! चोट कैसे लगी ?
राव : घोड़े ने ठोकर खाई। नाना सँभल नहीं सके और जा गिरे।
पेशवा : नाना इस समय कहाँ हैं ? उन्हें लेने के लिए किसी को भेजा कि नहीं ?

राव : उसकी आवश्यकता नहीं है। मनु अपने घोड़े पर बैठाकर नाना को ले आई। इस समय अन्दर मरहम पट्टी चल रही है।
[तभी मनु अन्दर दाखिल होती है।]
पेशवा : मनु बेटी, ज़्यादा चोट तो नहीं आई है नाना को ?
मनु : ऊँ-हूँ, साधारण-सी चोट है दादा। चिन्ता की कोई बात नहीं है। दो-चार दिन में घाव भर जायेगा।
मोरोपन्त : राव साहब कह रहे थे कि लहूलुहान हो गये हैं।

मनु : तो ? आप लोग हमको जो पुराना इतिहास सुनाते हैं, उसमें युद्ध क्या रेशम की डोरियों और कपास की पूनियों से हुआ करते थे ? अभिमन्यु क्या नाना से बड़ा था ?
पेशवा : अच्छा ये बता, तू नाना को कैसे उठा लाई ?
मनु : कैसे क्या ? पहले नाना को अपने घोड़े पर बैठाया, फिर पीछे से मैं सवार हो गई। एक हाथ से मैंने लगाम पकड़ी और दूसरे से नाना को थाम लिया बस।

पेशवा : दीक्षित जी, यही वह कन्या है। हमारी छबीली।
मनु : दादा, अब मुझे छबीली मत कहा कीजिए। मैं मनु हूँ, मनु। छबीली नाम मुझे अच्छा नहीं लगता।
दीक्षित : बेटी. चिन्ता मत करो, जो तुम्हें अच्छा लगता है, एक दिन सब वही कहेंगे। कहेंगे ही नहीं, बल्कि करेंगे भी। एक दिन तुम किसी राज्य की रानी बनोगी।

राव साहब : राज्य तो सब अंग्रेज़ों ने ले लिए हैं। नए राज्य कहाँ से बनेंगे ?
दीक्षित : बेटा, राज्यों की और राज्य बनाने वालों की न कमी रही है और न रहेगी।...अच्छा महाराज ! मैं जाने की आज्ञा चाहता हूँ–प्रणाम !
[दीक्षित जी का प्रस्थान]
अन्धकार

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