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मूक गवाह

पुष्पलता तनेजा

प्रकाशक : विद्या विहार प्रकाशित वर्ष : 2010
पृष्ठ :151
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 7912
आईएसबीएन :978-93-80186-27

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ऐसे भौतिक साक्ष्य वैज्ञानिक विश्लेषणों के तहत अपराधी तक पहुँचने में बहुत उपयोगी होते हैं। ये साक्ष्य मूक होते हैं, जिन तक पहुँचने में तहकीकात करनेवाले का निपुण होना आवश्यक है

Mook Gawah - A Hindi Book - by Pushpalata Taneja

समाज में कानून-व्यवस्था भंग करनेवालों को एकत्रित प्रमाणों के साथ न्यायालय में न्याय के लिए प्रस्तुत करना अपराध अन्वेषण कार्य में लगे विशेषज्ञों का मुख्य कार्य है। मामलों की तहकीकात में गवाहों की आधार-भूमिका होती है। प्रत्येक प्रकरण में चश्मदीद गवाह नहीं मिल पाते अथवा किन्हीं कारणों से न्यायालय में विशेष सहयोग नहीं दे पाते। अपराधी की तो कोशिश होती है कि पकड़े जाने की संभावना ही न रहे, परंतु चालाक-से-चालाक अपराधी भी घटना-स्थल पर अपराध-प्रकरण का कोई-न-कोई सबूत अवश्य छोड़ जाता है। ऐसे भौतिक साक्ष्य वैज्ञानिक विश्लेषणों के तहत अपराधी तक पहुँचने में बहुत उपयोगी होते हैं। ये साक्ष्य मूक होते हैं, जिन तक पहुँचने में तहकीकात करनेवाले का निपुण होना आवश्यक है। दुर्भाग्य है कि दर्शक इन साक्ष्यों को अनजाने में नष्ट कर देते हैं और अपराधी बच निकलते हैं। उपस्थित नागरिक अपराध से संबंधित छोटे-से-छोटे साक्ष्य की भूमिका को स्वीकारें, ताकि उनकी गवाही का लाभ अपराध अन्वेषण में उठाया जा सके। पुस्तक के विषय का रोजमर्रा के जीवन में विशेष महत्त्व है। लेखिका ने इस पुस्तक के माध्यम से पाठकों को संदेश दिया है कि आपराधिक मामलों में छोटे-से-छोटे साक्ष्य के महत्त्व को जानें और उन्हें नष्ट न होने दें।

1.

अंगुली-चिन्ह


अपराधी तक पहुँचने के लिए साक्ष्य अधिनियम के तहत कई तरीके प्रयोग में लाए जा सकते हैं। अंगुली-चिन्ह व पदचिन्ह की पहचान की तकनीक ने तो अपराधियों की खोज की दिशा ही बदल दी है। विश्वास किया जाता है कि दो जुड़वाँ बच्चों की शक्ल भले ही समान हो, परंतु अंगुलियों और पैरों की रेखाएँ अलग-अलग होती हैं। ये रेखाएँ बच्चे के पैदा होने से पूर्व गर्भावस्था में ही बन जाती हैं और मृत्यु तक परिवर्तित या नष्ट नहीं होतीं। महत्त्वपूर्ण प्रलेखों पर अंगूठा लगाने का प्रचलन तो बहुत समय से चला आ रहा है। हमारे गाँवों में तो आज भी यही प्रणाली प्रचलित है। प्रकृति की इस देन का प्रयोग सर्वप्रथम आज से दो हजार वर्ष पूर्व चीनवासियों ने किया। उस काल में महत्त्वपूर्ण सरकारी कागजातों और आदेशों पर सम्राट अँगूठे के चिन्ह का प्रयोग करता था। मध्यकाल में मोम की परतों पर अंगुली-चिन्ह उभारे जाते थे। मिट्टी के बरतनों पर भी बनानेवालों की पहचान के लिए अंगुली-छाप उभारे जाते थे। जापान में महत्त्वपूर्ण दस्तावेजों पर अँगूठे के चिन्ह का प्रयोग किया जाता था। सन् 1686 में इटली के एक वैज्ञानिक प्रो. मारसेलो मालियगी ने अंगुली-चिन्हों के परीक्षण आरंभ किए। सन् 1823 में डॉ. पार्किजी ने इस अनुसंधान को जारी रखा।

सन् 1858 में भारत में बंगाल प्रांत के हुगली के कलेक्टर सर विलियम हर्षेल ने सरकारी दस्तावेजों पर हस्ताक्षर के साथ-साथ अंगुली-चिन्ह अंकित करने का कार्य आरंभ किया। उन दिनों भारत में लेन-देन के कागजों पर अँगूठे के चिन्हों से पुष्टि की जाती थी। अनपढ़ मजदूरों की पहचान के लिए अंगुली-चिन्ह प्रामाणिक साक्ष्य माने जाते थे। सर हर्षेल ने एक बंगाली ठेकेदार कनाई के साथ एक शासकीय अनुबंध पर हस्ताक्षर के साथ दाएँ हाथ के अँगूठे के निशान का उपयोग किया। सन् 1860 से 1862 के मध्य सर हर्षेल ने तत्कालीन महाराज नादिया, कुछ गण्यमान्य व्यक्तियों और अनेक उच्च पदासीन अंग्रेज अधिकारियों के अंगुली-चिन्हों का संग्रम किया और उस पर अनुसंधान किए। उन्होंने ही जेलों में कैदियों की पहचान सुनिश्चित करने के लिए अंगुलीछाप के उपयोग का सुझाव दिया। सन् 1880 में स्कॉटलैंड चर्च के मिशनरी चिकित्सक डॉ. हेनरी फॉल्ड्स (Henry Faulds) ने ‘नेचर’ नामक पत्रिका के अक्तूबर अंक में इस विषय पर एक लेख प्रकाशित कराया और अंगुलियों के चांसप्रिंट के आधार पर अपराधियों का पता लगाने की सलाह दी। उन्होंने पत्रिका के अन्य लेखों में अपने अनुभवों एवं परीक्षणों से भी लोगों को अवगत कराया।

सन् 1890 में सर फ्रांसिस गाल्टन ने इंग्लैंड में अंगुली-चिन्हों पर अनुसंधान किए और सिद्घ किया कि हाथ की अंगुलियों, हथेलियों और पैर के तलुवों पर उभरी रेखाएँ जन्म से लेकर मृत्युपर्यंत अपरिवर्तित होती हैं। एक ही हाथ की दो अंगुलियों की रेखाएँ भी भिन्न होती हैं। जुड़वाँ बच्चों में भी भिन्न होती हैं, भले ही उनके चेहरे एक जैसे हों। उन्होंने अपराधियों की पहचान सुनिश्चित करने के लिए अंगुलीछाप की विधि अपनाने की बात कही। सन् 1892 में श्री गाल्टन ने ‘फिंगर प्रिंट’ नामक एक पुस्तक भी प्रकाशित की। अर्जेंटीना के निवासी लंदन मैट्रोपोलिटन पुलिस के चीफ कमिश्नर जॉन वुकेटिक (Jaun Vucetich) ने इस विधि को प्रोत्साहित किया।

सन् 1893 में बंगाल में इंस्पेक्टर जनरल ऑफ पुलिस एडवर्ड रिचर्ड हेनरी (सन् 1901 में वे बंगाल पुलिस महानिदेशक के पद पर रहे) ने अपराधियों की पहचान के लिए अंगों के मापवाले कार्ड पर अँगूठे के चिन्ह अंकित कराना आरंभ किया। हेनरी ने इंग्लैंड में प्रचलित बर्टीलान प्रमाणी के समानांतर 10 अंगुली-चिन्हों का एक संग्रह आरंभ किया, ताकि केवल अंगुली-चिन्ह की सहायता से व्यक्ति-विशेष की पहचान संभव हो सके। उसी समय हेनरी ने कलकत्ता की आइडेंटिफिकेशन ब्यूरो में कार्यरत सैयद अजीजुल हक तथा हेमचंद्र बोस नामक गणित के वैज्ञानिकों की सहायता से अपराधियों के 10 अंगुली-चिन्हों को फाइल में लगाना आरंभ किया। उन्हीं के अथक प्रयासों से 12 जून, 1897 में भारत की तत्कालीन राजधानी कलकत्ता की राइटर्स बिल्डिंग में संसार का प्रथम फिंगरप्रिंट ब्यूरों स्थापित हुआ। अजीजुल हक तथा हेमचंद्र बोस ने अपना शोध कार्य जारी रखा। सेंट्रल फिंगर प्रिंट ब्यूरो, कलकत्ता में सीनियर फिंगर प्रिंट एक्सपर्ट के पद पर कार्य कर चुके ब्रजभूषण दुबे के अनुसार सर हेनरी के नाम के प्रचलित अंगुलीछाप वर्गीकरण प्रणाली के सूत्रधार स्व. हक थे। हेनरी के संरक्षण में उन्होंने अंगुलीछाप पत्रों का वर्गीकरण तथा संग्रह आरंभ किया। वर्गीकरण की सुविधा के लिए अंगुली-चिन्हों को आर्च, लूप, वर्ल तथा कंपोजिट चार भागों में बाँटा। उस समय ब्रिटिश सरकार ने इंग्लैंड की अंगों के मापवाली बार्टीलान प्रणाली से अंगुलीछाप वर्गीकरण प्रणाली को श्रेष्ठ माना और मान्यता प्रदान की।

इस प्रकार अंगुली-चिन्हों से व्यक्ति-विशेष की पहचान की तकनीक भारत में सन् 1897 में शुरू हो चुकी थी तथा बंदी पहचान अधिनियम 1920 आइडेंटिफिकेशन ऑफ प्रिजनर्स ऐक्ट 33 के अनुसार अन्वेषणकर्ता को अधिकार दिया गया कि वह संदिग्ध एवं सजाप्राप्त अभियुक्त के अंगुली-चिन्ह ले सके। इस ऐक्ट के अनुसार अपराधी के अंगुली-चिन्ह दीर्घकाल तक रखने का प्रावधान भी है। किसी अपराध में पकड़े गए अथवा संदिग्ध व्यक्ति के बारे में पूर्व जानकारी अंगुली-चिन्ह के संग्रह से प्राप्त कर सकती है, तद्नुसार सूचना अन्वेषण अधिकारी को भेजी जा सकती है। अन्वेषण एवं रिकार्ड कार्य में हेनरी फॉर्मूले का प्रयोग किया जाता है। यह रिकार्ड कम-से-कम 15 वर्ष तक रखा जाता है। 15 वर्ष बाद तक यदि अपराधी के अपराध की कोई सूचना रिकॉर्ड से निकाल लिये जाते हैं, ताकि व्यर्थ में रिकॉर्ड का संग्रह करना पड़े।

प्रत्येक फिंगर प्रिंट ब्यूरों में आए दिन अंगुली-चिन्हों के कई नमूने आते रहते है, क्योंकि अन्वेषण कार्य में लगे विशेषज्ञ मानते हैं कि अंगुली-चिन्ह व्यक्ति की पहचान के ऐसे अकाट्य साक्ष्य हैं, जिनके अनेक प्रकार के मामलों, जैसे–चोरी, हत्या, लूटपाट, डकैती, बलात्कार, सेंधमारी आदि के समय पाए जाने की संभावना रहती है। संदिग्ध अपराधियों की जानकारी लेने के लिए उपलब्ध रिकॉर्ड से तुलना के पश्चात् यह भी सिद्ध हो जाता है कि अमुक व्यक्ति ने इससे पूर्व भी कोई-न-कोई अपराध अवश्य किया था। भूचाल, बाढ़ वायुयान दुर्घटना, अज्ञात शवों आदि की पहचान के लिए भी अंगुली-चिन्हों की सहायता ली जा सकती है। अधूरे अंगुली-चिन्हों से भी अज्ञात व्यक्ति या अपराधी की पहचान की जा सकती है।

कत्ल के मुकदमे को अंगुली-चिन्हों के आधार पर सुलझानेवाला पहला मामला अर्जेंटीना का है। वहाँ एक महिला के दो बच्चों का कत्ल कर दिया गया था, जिसका आरोप उसने अपने तलाकशुदा पति पर लगाया था। अन्वेषण अधिकारी ने दरवाजे पर खून का निशान देखा और उस हिस्से को काटकर ले गया और जाँच करने पर औरत के अँगूठे के निशान भी उससे मैच कर गए। बाद में उसने स्वीकारा कि वह अपने एक प्रेमी से शादी करना चाहती थी और अपने बच्चों को रास्ते से हटाने के लिए उसने उन्हें स्वयं मारा था।

अंगुली की त्वचा पर कुछ रेखाएँ पाई जाती हैं, जिनके कारण वस्तुओं को पकड़ा जा सकता है, अन्यथा वस्तुएँ फिसल सकती हैं। इन रेखाओं को ‘पैपिलरी रिज’ कहते हैं। इन रिजिज की श्रेणी में छोटे-छोटे छिद्र होते हैं। इन्हीं छिद्रों से अल्प मात्रा में पसीना निकलता रहता है, जो वस्तु पर लग जाता है और मोहर या ठप्पे की भाँति चिन्ह उत्पन्न करता है। हैनरी पद्धति के अनुसार चिन्हों को 2024 वर्गों में वर्गीकृत किया जा सकता है।

जो चिन्ह आँखों से दिखाई देते हैं, उनके फोटो लिये जा सकते हैं। अदृश्य चिन्हों के भी फोटो लिये जा सकते हैं, परंतु इन्हें विकसित करना अनिवार्य होता है। अदृश्य चिन्ह दरवाजे, खिड़की, दीवार, तिजोरी, ताला, कुंडी, दस्तावेज, औजार, हथियार, टेलीफ़ोन, रेफ्रिजरेटर, टेलीविजन, कुरसी, मेज, कार, की स्टीयरिंग, डैश-बोर्ड, स्विच, गिलास, काँच की बोतलों आदि पर पाए जा सकते हैं। अपराधी द्वारा यदि किसी भी वस्तु को छुआ नहीं गया हो, दस्ताने पहने गए हों या चिन्ह मिटा दिए गए हों तो अपराध-स्थल पर अंगुली-चिन्ह नहीं मिलते।

अंगुली–चिन्ह यदि प्राप्त हों तो जाँच के लिए उनका संग्रह किया जाना आवश्यक होता है। फोटोग्राफी की विधि के अतिरिक्त पारदर्शी टेप एक सिरे से दूसरे सिरे पर सावधानी से चिपका देते हैं। इस क्रिया के दौरान हवा का बुलबुला नहीं आना चाहिए। पाउडर विधि से भी एक बार अंगुली-चिन्हों को उठाया जा सकता है। रंगीन चिन्हों को सफेद रंग से तथा सफेद चिन्हों को काले रंग से उठाना अच्छा रहता है, ताकि चिन्ह स्पष्ट दिखाई दें। अंगुली-चिन्हों को काँच की प्लेट में रखकर विशेषज्ञों के पास भेजा जाना चाहिए। अंगुली-चिन्हों को पकड़ते समय इस बात का ध्यान रखना अत्यावश्यक है कि चिन्ह विकृत न हों अथवा किसी अन्य व्यक्ति के चिन्ह प्रकट न हों। वस्तुओं को छूते समय रूमाल या दस्ताने का प्रयोग किया जा सकता है। अचल वस्तुओं, जैसे दरवाजे, खिड़की टेबल, कुरसी, टेलीविजन, अलमारी आदि पर प्राप्त चिन्हों को विकसित करके फोटो लिये जा सकते हैं, परंतु ऐसी वस्तुओं को प्रयोगशाला नहीं भेजा जा सकता। औजार, बोतल, गिलास आदि छोटी वस्तुओं को फोटोग्राफी के पश्चात् पैक करके प्रयोगशाला भेजा जा सकता है। पैक करते समय चिन्हों के सुरक्षित रहने और काँच के पात्र को टूटने से बचाने का ध्यान रखते हुए सील कर देना चाहिए। पैक पर संपूर्ण विवरण, जैसे प्राप्त करने का स्थान, संग्रह का समय एवं तिथि, संग्रहकर्ता के हस्ताक्षर सहित विवरण, अपराध का क्रमांक आदि लिख देना चाहिए।

अदृश्य अंगुली-चिन्ह या लेटेंट चिन्हों को विभिन्न रंगों के पाउडर से विकसित किया जा सकता है। कैमल हेयर ब्रुश अथवा शुतुरमुर्ग के पंखों के ब्रुश को पाउडर से विपरीत दिशा में घुमाकर चिन्ह प्राप्त किए जा सकते हैं और माइक्रोस्कोप से देखा जा सकता है। फ्लोरोसेंट पाउडर का प्रयोग करके पराबैंगनी फोटोग्राफी द्वारा भी चिन्ह देखे जा सकते हैं। मैंगना ब्रुश अर्थात् चुंबकीय ब्रुश के प्रयोग से चिन्ह नष्ट होने की संभावना नहीं रहती, अतः मैगना ब्रुश का प्रयोग किया जाना चाहिए। आजकल कुछ प्रयोगशालाओं में एंटीमनी ऑक्साइड पाउडर से अदृश्य अंगुली-चिन्ह विकसित किए जा रहे हैं और माइक्रोस्कोप से अथवा मैगनीफाइंग ग्लास से जाँच करने पर संतोषजनक परिणाम प्राप्त हो रहे हैं।

अदृश्य अंगुली-चिन्हों पर लैड-पाउडर छिड़कर रेडियोग्राफी विधि का सहारा लिया जा सकता है। कागज, वस्त्र आदि पर वैक्यूम कोटिंग विधि से अर्थात् धातु की वाष्प से अंगुली-चिन्हों को देखा जा सकता है। आयोडीन गन से आयोडीन का धुआँ दरशाकर भी चिन्ह विकसित किए जा सकते हैं, परंतु इस प्रकार से विकसित चिन्ह अस्थायी होते हैं।

पुराने अदृश्य चिन्ह विकसित करने के लिए निहाइड्रिन विधि का प्रयोग किया जा सकता है। यह रसायन दस्तावेजों को नष्ट कर सकता है, अतः इस रसायन का प्रयोग दस्तावेजों पर नहीं करना चाहिए।
न्यायालय में अंगुली-चिन्हों की समानता देखने के लिए चिन्हों की कुछ विशेषताओं, जैसे द्वीप, बिंदु, सेतु आदि का सुमेलन किया जाता है।

निहाइड्रिन पाउडर या अन्य रसायनों के प्रयोग से यदि वांछित परिणाम प्राप्त न हों तो लेजर किरणों के प्रयोग से सफलता प्राप्त हो सकती है। इन किरणों से आंटेरिओ प्रांतीय पुलिस, टोरेंटो की सहायता से न्याय वैज्ञानिकों ने दस वर्ष पुराने कागज और मनुष्य के शरीर से अंगुलीछाप उठाने में सफलता प्राप्त की है। इन किरणों के प्रकाश में अंगुलीछाप अलग-अलग दिखाई देते हैं। लेजर किरणों से परीक्षण में बाधा पड़ती है। इस तकनीक का नमी और अधिक तापमानवाली सतहों पर भी प्रयोग किया जा सकता है।

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