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बाबा रामदेव के सपनों का भारत

के सी महेन्द्रू

प्रकाशक : डायमंड पॉकेट बुक्स प्रकाशित वर्ष : 2010
पृष्ठ :286
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 7927
आईएसबीएन :978-81-288-2631

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भारतीयों को वास्तविक स्वतंत्रता दिलाने के लिए बाबा रामदेव का भारत स्वाभिमान मिशन

Baba Ramdeo Ke Sapnon Ka Bharat - A Hindi Book - by K. C. Mahendru

भारत में योग युग की शुरुआत हो चुकी है। सदियों पहले जिस प्रकार बुद्ध ने ‘बुद्धम शरणं गच्छामि’ का मंत्र जन-जन को दिया है, उसी प्रकार आज योग ऋषि बाबा रामदेव ने ‘‘योगम शरणं गच्छामि’’ का मंत्र भारत के कोने-कोने तक पहुँचा दिया है।
और इसी के साथ शुरुआत की है भारतीयों के सोए स्वाभिमान को जगाने की। 5 जनवरी 2009 को भारत स्वाभिमान मिशन की शुरुआत कर बाबा ने देश में फैले, भ्रष्टाचारियों, कालाबाजारियों के साथ गरीबों को हटाने का बीड़ा उठा लिया है।

ये दुर्भाग्यपूर्ण बात है कि 1947 में पाई राजनीतिक आजादी के बाद गैरजिम्मेदार सरकार की नीतियों के कारण आज 63 साल बाद भी यह भारतीयों को वास्तविक स्वतंत्रता नहीं मिली है। भारतीयों को वास्तविक स्वतंत्रता दिलाने के लिए ही बाबा रामदेव ने भारत स्वाभिमान मिशन चलाया है जिसके जरिए वे भारत को नई स्वतंत्रता नया सिस्टम देकर सुपर पावर में बदल देना चाहते हैं।

बाबा रामदेव के सपनों के भारत में भ्रष्टाचार, गरीबी, बेकारी, बीमारी को कहीं स्थान नहीं मिलेगा। स्थान मिलेगा तो सिर्फ स्वस्थता, साक्षरता तथा उन्नति को, जिससे होगा एक नए भारत का निर्माण। आज बड़ी संख्या में बाबा के इस सपने को पूरा करने में लोग इस मिशन से जुड़ चुके हैं जिन्हें आशा है कि बाबा के सपनों के भारत से ही नए भारत का नवोदय होगा।

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भाग्य पुरुष बाबा रामदेव

नई क्रांति

भाग्य-पुरुष योगऋषि बाबा रामदेव ने 5 जनवरी 2009 को भारत स्वामिभान ट्रस्ट की स्थापना द्वारा देश के इतिहास में एक नई राष्ट्रीय क्रान्ति का शुभारंभ कर दिया! यह क्रान्ति व्यक्ति, समाज और राष्ट्र के पूर्ण परिवर्तन और विकास की क्रान्ति होगी, जिसके चलते नई स्वतंत्रता, नई व्यवस्था और नये भारत का उदय होगा! इसके साथ ही भारत की खोई हुई गौरवशाली गरिमा पुनः स्थापित होगी! ऐसा बाबा रामदेव और समस्त देशवासियों का विश्वास है।

भाग्य पुरुष बाबा रामदेव

1763 से 1947 के 184 वर्षों तक चलने वाले स्वतंत्रता संग्राम के पहले चरण के फलस्वरूप हमें मिला खंडित भारत, और इसके साथ ही पूर्ण स्वराज्य का स्वप्न भी टूटने लगा। 1929 (लाहौर) 1931 (कराची) कांग्रेस में पारित प्रस्तावों में व्यक्ति की स्वतंत्रता और आर्थिक अधिकारों को मुख्य रखा गया था। यह सभी भारत के नये संविधान की प्रस्तावना, मौलिक अधिकारों, राज्य नीति के निर्देशक सिद्धान्तों के रूप में संवैधानिक मान्यता देकर अपना लिए गये थे।

परन्तु स्वतंत्र भारत में व्यक्ति की स्वतंत्रता का हनन हुआ और उसके अधिकार केवल नाम मात्र बन के रह गये। राजनीतिक दलों की गुटनीति और नेताओं के झूठे आश्वासनों के कारण नागरिक अधिकार मृग तृष्णा की तरह छलावा बन गये। पिछले 63 वर्षों में व्यक्ति की क्षमता का हास करने का षडयंत्र कुछ इस प्रकार चला कि उसकी स्वतंत्रता उससे छिनती रही और वह सत्ताधारी नेताओं और भ्रष्ट नौकरशाही के अत्याचारों और व्यवस्था की विफलताओं का विरोध न कर पाने में असमर्थ, निस्सहाय और लाचार खड़ा देखता रहा। वास्तव में जिन लोगों के हाथों में सत्ता का एकाधिकार आया, उन्होंने भारत के जन-जन को विकास के मार्ग का रोड़ा मान कर उसकी भरसक अवहेलना की। परिणाम स्वरूप देश में गरीबी भूख, बेरोजगारी, बीमारी, शोषण, अत्याचार, भय और भ्रष्टाचार चारों ओर फैलते रहे, और हम एक के बाद एक पश्चिमी प्रणाली पर आधारित पंचवर्षीय योजनायें बनाते रहे। योजनायें बनती गई, गरीब, भूख और अभाव बढ़ते गये। विकास की पद्धति में आज भारत विश्व भर में 134वें स्थान पर आन खड़ा हो गया। उधर राजनेता और नौकरशाही आरोप-प्रतिआरोप लगा कर तथा बढ़ती हुई जनसंख्या के माथे पर अपनी असफलताओं का ठीकरा फोड़ते रहे। अब भी चारों ओर अंधकार और निराश व्यापक है।

नई सोच

धीरे-धीरे भारत में एक नई सोच उदित हुई। यह विदित होने लगा कि स्वतंत्रता और स्वराज्य जनता के जीवन से प्रत्यक्ष रूप से जुड़े हुए मूलभूत प्रश्न हैं, जो दलगत राजनीति, राजनेताओं के शक्ति-संघर्ष, वोट-बैंक की राजनीति के प्रभाव से यदि मुक्त रहेंगे, तो सार्थक हो पायेंगे। वास्तव में लोगों को राजनेताओं की किसी बात से सत्य दिखाई नहीं देता। इन प्रश्नों का समाधान तो कोई गैर-राजनीतिक व्यक्ति-कोई योगी, सन्त-सन्यासी, फकीर, बाबा या ऋषि-मुनि-ही कर सकता है, जो ईश्वर-प्रेरणा से परिपूर्ण हो, पूर्णतः निस्वार्थ हो और भारत माता के प्रति पूर्णतः समर्पित हो और जो सत्यमेव जयते में अटूट विश्वास रखता हो।

आज का सत्य तो यह है कि वास्तव में लोगों का विश्वास राजनेताओं से उठ गया है। भारत के 97-98 प्रतिशत लोग देश भक्त, चरित्रवान, ईमानदार, न्याय-प्रिय और मूल्यों का पालन करने वाले हैं। यही लोग तो वास्तव में जन शक्ति हैं। इसी में से भारत का नया कर्णधार-नेतृत्व पैदा होगा और वह सम्भवतः गांधी की मिट्टी से जुड़ा हुआ होगा ऐसा प्रतीत होने लगा था। वह कौन होगा? गांधी (1948), जय प्रकाश नारायण (1979), और विनोबा (1982), के चले जाने के बाद पिछले 31 वर्षों से भारत को ऐसे भाग्य-विधाता, ऐसे राष्ट्र निर्माता, ऐसे रक्षक और ऐसे नेतृत्व की तलाश थी।

बाबा रामदेव का आगमन

भाग्यवश लोगों की यह तलाश उस समय पूरी हुई जब गांधी, विनोबा, जय प्रकाश नारायण और हजारों अमर शहीद मानों एक ऐसे व्यक्ति के रूप में पुनः जीवित हो उठे, जब हरियाणा के गाँव सइदपुर में राम कृष्ण नामक बालक ने 1965 में एक कृषक परिवार में जन्म लिया, और वही बालक आज का स्वामी रामदेव बाबा बन कर जन-जन के सामने आया। आठवीं कक्षा तक के अपने शिक्षण काल में, अधरंग से पीड़ित हुये रामकृष्ण ने योग-आसनों एवं जड़ी-बूटी से अपना उपचार कर लिया, तो इस पद्धति को और गहराई से समझने के लिये वह चुपके से घर छोड़ कर आचार्य बलदेव के खानपुर स्थित गुरुकुल पहुँच कर लेने के पश्चात स्नातक रामकृष्ण ने सन्यास ग्रहण करते ही अपना नाम स्वामी रामदेव रख लिया। आचार्य धर्मवीर की जीन्द स्थित गुरुकुल पहुँचकर वे...गाँव-गाँव योग सिखाने लगे! इसी बीच आत्म ज्ञान हेतु हिमालय की गुफाओं में 1993 तक तपस्या करते रहे! 1995 में हरिद्वार में रामदेव कृपालु बाग आश्रम के संचालक स्वामी शंकरदेव (जो पहले क्रान्ति कारी केशव देव थे) के अनुयायी बन गये वहाँ गली-मुहल्लों में जाकर लोगों को योग सिखाना शुरू किया! मनुष्य के शरीर और स्वास्थ्य पर योग-क्रियाओं के प्रभाव का भी बाबा रामदेव ने अनुसंधान किया, और कपालभाति तथा अनुलोम-विलोम जैसी अद्भुत क्रियाओं का विकास किया। 2003 में बाबा ने पहला योग उपचार शिविर लगाया। यह कार्यक्रम निरन्तर बढ़ता गया तथा योग-चिकित्सा शिविर योग विज्ञान शिविर बन गये। बाबा ने योग को विज्ञान की कसौटी पर परखते हुए, योग के प्रति लोगों की आस्था को उजागर किया! करोड़ों लोग उनके अनुयायी बन गये मानों कि एक योग-क्रांति आ गई हो, और एक नया युग योग-युग आरम्भ हो गया हो। बाबा रामदेव की यह एक बहुत बड़ी उपलब्धि है!

स्वतंत्रता संग्राम का दूसरा चरण

योग के साथ-साथ बाबा का ध्यान देश की विफल हुई व्यवस्थाओं की ओर खिंचने लगा और वह इन्हें सुधारने या पूर्णतः बदलने के लिए विवश हो उठे। व्यक्ति की स्वतंत्रता को सार्थक बनाने के लिए, बाबा ने भारत स्वाभिमान के अन्तर्गत मानों स्वतंत्रता संग्राम का दूसरा चरण आरम्भ कर दिया! 1920-1947 तक का स्वतंत्रता संग्राम का पहला चरण गांधी-युग के नाम से जाना जाता है। 2009 से आरम्भ हुआ स्वतंत्रता का यह दूसरा संग्राम बाबा रामदेव-युग के नाम से जाना जाने लगा है। इसके अन्तर्गत बाबा रामदेव लोगों को भूख, बेकारी, बीमारी, भय, अज्ञानता, शोषण, भ्रष्टाचार, अविश्वास, निष्कर्मण्यता, निराशा और अज्ञानता से मुक्त कराने के लिए कटिबद्ध है। और साथ ही देश को सामाजिक अन्याय, आर्थिक विषमताओं और राजनैतिक षडयन्त्रों से भी स्वतंत्र करवाने का प्रयास कर रहे हैं। स्वतंत्रता संग्राम का यह दूसरा चरण उन सब अवरोधों को हटाने का प्रयास है जिनके कारण स्वतंत्रता पनप नहीं पाती, और साथ ही यह उन परिस्थितियों को स्थापित करने का प्रयत्न है जो इसके लिये अति आवश्यक है। बाबा रामदेव का यह संग्राम न केवल भ्रष्टाचार, शोषण और अव्यवस्था के अन्धेरे दूर करने वाला होगा बल्कि ज्ञान की रोशनी की लौ को प्रज्वलित करते हुए लोगों के जीवन में नेतृत्व, आत्मविश्वास, आत्म निर्भरता, साहस और शक्ति का संचार करने वाला होगा, जिससे व्यक्ति और समाज के जीवन में सद्गुणों का प्रसार होगा। बाबा के इस स्वतंत्रता संग्राम का लक्ष्य पूर्ण स्वराज्य स्थापित करना है ताकि 1947 में प्राप्त अधूरी आजादी पूर्णतः सम्पन्न हो, पिछले 63 वर्षों से चल रही दासता की मानसिकता समाप्त हो, बहुराष्ट्रीय कम्पनियों द्वारा भारत की खुलम खुला लूट बन्द हो और उन के द्वारा हमारे राष्ट्रीय हितों को हानि पहुँचाना और नीतियों आदि में उन का हस्तक्षेप भी समाप्त होगा स्वदेशी के प्रचार-प्रसार से भारत फिर से एक आर्थिक शक्ति बन सकें। बाबा रामदेव के स्वतंत्रता संग्राम के दूसरे चरण में गांधी के सर्वोदय का लक्ष्य पूरा होगा; देश के 115 करोड़ लोगों को वास्तविक स्वतंत्रता मिल पायेगी, उनके अधिकार सुनिश्चित होंगे, भारत पूर्णतः प्रभुता सम्पन्न स्वतंत्र राष्ट्र होगा और एक महान शक्ति बनेगा!

इस प्रकार हम देखते हैं कि बाबा रामदेव एक योग ऋषि होते हुए एक राजऋषि की भूमिका निभाने को विवश हो गये। जिस प्रकार सत्य और अहिंसा के मूल सिद्धांतों से प्रेरित होकर गांधी ने स्वतंत्रता संग्राम के पहले चरण का नेतृत्व अपने हाथों में ले लिया था, उसी प्रकार योग-प्राणायाम के मूल सिद्धांतों को आधार मान कर और इन्हीं से प्रेरित होकर स्वतंत्रता संग्राम के इस दूसरे चरण का शुभ आरम्भ बाबा रामदेव ने किया है। बाबा रामदेव ने योग-आधारित राजनीति, राष्ट्रनीति तथा राष्ट्र पुर्नजागरण, और राष्ट्रीय आंदोलन के स्वरूप में स्थापित कर दिया है।

नौ क्रांतिया एक साथ
 
नौ क्रांतियां


इतना विशाल और सर्वतोमुखी कार्य जिस में योग क्रान्ति, व्यक्तिगत क्रान्ति, सामाजिक क्रांति, आर्थिक क्रांन्ति, राजनीतिक क्रांति, राष्ट्रीय क्रांति, ग्रामीण क्रांति, कृषि क्रांति और मानवीय क्रांति एक साथ जुड़ी हों, कोई असाधारण व्यक्ति, अवतरित पुरुष ही कर सकता है, जिसे स्वयं ईश्वर ने इस भागीरथ कार्य के लिए भेजा हो। बाबा रामदेव का आगमन कुछ ऐसा ही प्रतीत होता है। भगवान श्री कृष्ण का गीता में दिया गया वह वचन भी पूरा होता दिखाई देता है।

बाबा रामदेव का व्यक्तित्त्व

बाबा रामदेव के व्यक्तित्व में इस कठिन कार्य को करने और उसे सफल बनाने की सभी योग्यतायें प्रयाप्त मात्रा में विद्यमान है! पक्का संकल्प, सुदृढ़ इच्छा शक्ति, स्पष्ट विचार, विशिष्ठ संगठनात्मक कौशल, निपुण शासकीय प्रबंधन, अटूट निष्ठा, अपार आत्म-विश्वास, कुशल समय प्रबंधन, 18 घण्टे तक निरन्तर काम करने का सामर्थ्य, सकारात्मक दृष्टिकोण, धैर्य, उत्साह, पवित्र हृदय साधारण और सादा जीवन बाबा की विशेषतायें हैं। ऐसे गुणों को धारण करने वाला बाबा रामदेव एक सिद्धपुरुष, भविष्य दृष्टा, महाज्ञानी, राष्ट्रप्रेम से परिपूर्ण, करोड़ों लोगों का स्वास्थ्य-वर्द्धक, उनमें आत्म-विश्वास उत्पन्न करने वाला, उन्हें जीवन जीने की कला सिखाने वाला, राष्ट्रीय हितों का सतर्क रक्षक, घातक देशद्रोहियों को पछाड़ने वाला, बहुराष्ट्रीय कम्पनियों को चुनौती देने वाला, स्वदेशी का प्रचण्ड प्रवक्ता एक ऐसा क्रान्तिकारी युग निर्माता है जिसमें हमें दयानन्द, विवेकानन्द, गांधी, विनोबी और जय प्रकाश नारायण की झलक दिखाई देती है। बाबा के चरित्र में अपार पारदर्शिता, असीमित मानवीय सेवा, अनन्त नम्रता, दयाभाव, आत्म-सम्मान, स्वाध्यता और ईश्वर के प्रति समर्पित भाव उनकी अन्य विशेषतायें हैं। निश्चित ही बाबा रामदेव असाधारण व्यक्तित्व के स्वामी हैं और भारत माता के होनहार सपूत! वेदानुकूल आचरण और योग प्राणायाम से उत्पन्न हुई बेहिसाब आत्मिक शक्ति, ईमानदारी और सत्यनिष्ठा उनकी पहचान हैं।

इन सभी गुणों और शक्तियों से युक्त बाबा रामदेव ने व्यवस्था परिवर्तन का बीड़ा उठाया है। उनका मानना है कि ‘‘बीमारियों व बुराई पर तो योग और प्राणायाम से विजय मिल रही है, लेकिन भ्रष्टाचार रूपी कैंसर के खात्मे के लिए तो एक बड़े आन्दोलन की ज़रूरत है।’’ यहीं भारत स्वाभिमान होगा, जिस का लक्ष्य व्यवस्था परिवर्तन करना अनिवार्य हो चुका है।

बाबा राम देव ने इस महान कार्य को लिये योग को आधार और माध्यम माना और प्रत्येक व्यक्ति को योग करने और योग कराने का परामर्श दिया।

योग की महिमा

यदि योग वास्तव में ही चरित्र निर्माण और व्यवस्था परिवर्तन का साधन है, तो निश्चित ही योग के चमत्कारी रहस्य को जानना चाहेंगे। योग आसन क्रियाओं व शारीरिक व्यायाम तक सीमित न रह कर, एक विज्ञान, कला और जीवन पद्धति है जो व्यक्ति के अन्दर निहित क्षमताओं को उजागर करता है। यह व्यक्ति को आत्म ज्ञान देता है और उसे उसकी आत्मा से जोड़ता है। योग आध्यात्मक मुक्ति का भी साधन है। इस से व्यक्ति और समाज दोनों का रूपान्तरण होता है। योग समाज सुधार और व्यक्ति के सम्पूर्ण विकास का एक मात्र माध्यम है।

सामाजिक उन्नति के परिपेक्ष में योग की इस महत्वपूर्ण भूमिका को योग विकास के लिये अपनाया।

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