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उस स्त्री का नाम

इला प्रसाद

प्रकाशक : भावना प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2010
पृष्ठ :130
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 7955
आईएसबीएन :9788176672467

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अमेरिका में रिश्ते किस प्रकार बैमानी हो चुके हैं, इसी वास्तविकता को बखानती कहानियाँ...

Us Stri Ka Nam - A Hindi Book - by Ila Prasad

अपनी रचनात्मक वैविध्यता के कारण प्रवासी हिंदी साहित्यकारों में इला प्रसाद की अपनी एक अलग पहचान है। वह न केवल एक सक्रिय और सशक्त कहानीकार है, बल्कि एक कवयित्री के रूप में भी उन्होंने अपनी रचनात्मकता को सार्थकता प्रदान किया है। उनकी कहानियाँ जीवनानुभवों की सहज और स्वाभाविक अभिव्यक्ति है, जिनमें उनकी सूक्ष्म पर्यवेक्षक दृष्टि परिलक्षित है। छोटे वाक्य विन्यास और काव्यात्मक भाषा उन्हें आकर्षक बनाते हैं। संग्रह की एक मार्मिक कहानी ‘एक अधूरी प्रेमकथा’ जिसमें बिना विवाह जन्मी निमी की पीड़ा को इला ने गहनता से व्याख्यायित किया है, ये एक छोटा उदाहरण दृष्टव्य है–‘‘वह सहसा उठकर बैठ गई। दीवार से पीठ टिका ली। तकिया गोद में। आंखें झुकीं। मुँह से पहली बार बोल फूटे...थैंक्यू दीदी।’’

रचना में एक चुंबकीय पठनीयता होती है, पाठक जिससे अद्यांत गुजरे बिना मुक्त नहीं हो पाता। इला प्रसाद की कहानियों की यह विशेषता है। उनकी कहानियों की विशेषता यह भी है कि वे ऐसे विषयों को भी अपने कथानक का हिस्सा बना देती हैं, जिनकी ओर सामान्यता लेखकों का ध्यान आकर्षित नहीं हो पाता।

अमेरिका में रिश्ते किस प्रकार बैमानी हो चुके हैं, इसका दिल दहका देने वाला वृतांत है ‘उस स्त्री का नाम’। यह एक ऐसी भारतीय स्त्री की कहानी है जो पति की मृत्यु के पश्चात् दिल्ली की अपनी नौकरी छोड़कर अमेरिका में बसे बेटे के रियल एस्टेट के व्यवसाय में सहायता करने के लिए अमेरिका जा बसती है। रहस्य और रोमांच से आवेष्ठित इस कहानी में लेखिका अंत में यह उद्घाटित करती हैं कि जिस बेटे के लिए वह माँ दिल्ली की अपनी नौकरी और बिनव्याही पैंतालीस वर्षीया बेटी को छोड़ आई वह अमेरिकी जीवन-शैली जीता अपने व्यवसाय और अपने परिवार में डूबा, वृद्धा मां को ‘ओल्ड एज’ लोगों के रिटायरमेंट होम में रहने के लिए छोड़ देता है। संग्रह की अधिकांश कहानियां अमेरिकी पृष्ठभूमि पर आधारित हैं जो प्रवासी भारतीयों के जीवनचर्या को आधार बनाकर लिखी गई हैं।

इला प्रसाद ने अपनी कहानियों के माध्यम से जहां अमेरिकी संस्कृति (या अपसंस्कृति) से दो-चार होते और उसका हिस्सा बनते प्रवासी भारतीयों के सामाजिक, आर्थिक और धार्मिक जीवन का वास्तविक चित्रण किया है वहीं भारतीय परिवेश की उनकी कहानियों में जीवन की विसंगतियां, विद्रूपताएं और विश्रृंखलताएं अपनी संपूर्णता में उद्घाटित हुई हैं।

अनुक्रम


  • एक अधूरी प्रेमकथा
  • बैसाखियां
  • उस स्त्री का नाम
  • मेज
  • होली
  • चुनाव
  • हीरो
  • मिट्टी का दीया
  • आकाश
  • साजिश
  • कुंठा
  • रिश्ते
  • तलाश
  • मुआवजा
  • तूफ़ान की डायरी

  • एक अधूरी प्रेमकथा


    मन घूमता है बार-बार उन्हीं खंडहर हो गए मकानों में, रोता-तड़पता शिकायतें करता, सूने-टूटे कोनों में ठहरता, पैबंद लगाने की कोशिशें करता...मैं टुकड़ा-टुकड़ा जोड़ती हूं लेकिन कोई ताजमहल नहीं बनता!
    ये पंक्तियां मेरी नहीं, निमिषा की हैं। मैंने जब पहली बार उसकी डायरी के पन्ने पर ये पंक्तियां पढ़ीं तो चकित रह गई थी। यह लड़की इतना सुंदर लिख सकती है! उसका उत्साह और बढ़ा था, उसने कुछ और पन्ने चुन-चुनकर मुझे पढ़ाए थे–

    हम तो डूबने चले थे मगर
    सागरों में ही अब गहराइयां नहीं रहीं!

    ‘‘कैसे लिख लेती हो तुम ऐसा?’’ मैंने प्रशंसा की थी। उसने कुछ शरमाकर अपनी डायरी बंद कर दी थी। लेकिन तब मैं बिलकुल नहीं सोच पाई थी कि किस संदर्भ में ये पंक्तियां उसके मन में उपजी होंगी! किसी से प्रेम किया होगा और क्या! ऐसा ही तो हम सोच लेते हैं न! तब एक पूरा समय-चक्र बाकी था जो मुझसे उसकी पहचान कराता।

    जब मैं हॉस्टल में उसकी रूममेट बनकर उसके कमरे में आई तो शुरू-शुरू में बस इतना ही जान पाई थी कि वह अपनी मां से बेहद प्यार करती है। अपनी टेबल पर उसने मां की तस्वीर सजा रखी थी जिसमें वह अपनी मां के बराबर में खड़ी हंस रही थी। उसकी शक्ल अपनी मां से बेहद मिलती थी। मां की ही तरह सुंदर थी वो!

    वह अपनी मां से किस हद तक जुड़ी थी और अपने पिता से कितनी नफ़रत रखती थी यह मैंने तब जाना जब उसने एक रात अपना एलबम मुझे दिखाया। अजीब बात थी! उसके एलबम में उसके पिता का एक भी चित्र नहीं था। बस मां और वह! छोटी-सी निमी मां की गोद में, खेलती निमी मां के पास बैठी, मां के साथ किसी पिकनिक स्पाट पर, यात्रा में, कहीं भी। बस मां हर जगह, पिता अनुपस्थित। लेकिन वह पिता की बातें करती थी! पिता बहुत बड़ी कंपनी में मैनेजर हैं। वह उनके साथ रही थी, दो बरस पहले। मां की मौत के बाद पापा साथ ही लिवा ले गए थे, हालांकि वह बिलकुल नहीं चाहती थी। वह उनसे मिलने गई थी, पिछली छुट्टियों में। इसी तरह की तमाम बातें वह करती। मैंने अनुमान लगाया कि शायद ऐसा इसलिए है कि इसकी मां अब दुनिया में नहीं हैं और पिता से उनका शायद डाइवोर्स हो चुका होगा। पूछने का साहस नहीं हुआ। यूं भी मैं उसे पूरा समय देना चाहती थी कि वह कभी अगर खुद चाहे तो मुझे बतलाए, जैसे उस दिन उसने मुझे अपना एलबम दिखाया था, डायरी के कुछ पन्ने पढ़ाए थे।...


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