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इतिहास और राजनीति >> क्रान्तिकारी आन्दोलन

क्रान्तिकारी आन्दोलन

शिवकुमार गोयल

प्रकाशक : हिन्दी साहित्य सदन प्रकाशित वर्ष : 2011
पृष्ठ :160
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 8041
आईएसबीएन :8188388807

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सशक्त क्रान्ति का इतिहास

Kratikari Aandolan (Shivkumar Goyal)

1857 के सशस्त्र विद्रोह में पहली आहुति वीर मंगल पाण्डे ने बैरकपुर में फांसी पर झूल कर दी। इसके बाद मेरठ में 10 मई से शुरू हुए इस क्रांति यज्ञ में रानी झांसी, नानाजी पेशवा, तात्या टोपे, कुँवरसिंह, उधम सिंह, भगत सिंह आदि न जाने कितने राष्ट्रभक्तों ने प्राणों की आहुतियाँ देकर इस क्रांति-ज्वाला को प्रज्जवलित किया। जिन्होंने अपना सर्वस्व समर्पित करके, अपने प्राणों की आहुति देकर हमारे राष्ट्र को स्वाधीन कराया, उनके विषय में हमारी युवा पीढ़ी कुछ जानती ही नहीं है। नई पीढ़ी को यह भी पता नहीं है कि भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का जन्मदाता वह अंग्रेज़ ह्मूम था, जिसने 1857 में इटावा के कलक्टर के नाते अपने हाथों से अनेक स्वाधीनता सेनानियों की हत्या की थी।

‘क्रांतिकारी आंदोलन’ पुस्तक में जाने-अनजाने राष्ट्रभक्त क्रांतिकारियों के व्यक्तित्व-कृतित्व को गूँथने का प्रयास किया गया है। आशा है पाठकों को इससे भारत के क्रांतिकारी आन्दोलन की प्रमुख घटनाओं के विषय में संक्षिप्त जानकारी मिल सकेगी।


भारत में ईस्ट इंडिया कम्पनी


अंग्रेजों ने व्यापार के नाम पर ईस्ट इण्डिया कम्पनी के माध्यम से भारत पर अपना साम्राज्य स्थापित करने के बाद बर्बरता और निर्ममता से जिस प्रकार भारत का आर्थिक शोषण किया उससे पूरा देश त्राहि-त्राहि कर उठा था। आर्थिक शोषण के साथ-साथ गोरे शासक भारतीय जनता पर अमानवीय जुल्म ढाने में भी पीछे नहीं रहे। उन्होंने भारतीय संस्कृति तथा देश की परंपराओं पर आघात पहुंचाने के लिए ईसाई मिशनरियों को पूरी छूट दी थी।

ईस्ट इण्डिया कम्पनी ने हिन्दुओं और मुसलमानों को नौकरियों व धन का लालच देकर ईसाई बनाने की योजना बनानी शुरू कर दी थी। सन् 1850 तक पूरे भारत में लगभग 300 चर्च बनाकर एक हजार पादरियों को हिन्दू-मुसलमानों के धर्मान्तरण का कार्य सौंप दिया गया था। अंग्रेज प्रशासनिक अधिकारी तथा सैन्य अधिकारी तक ईसाईकरण के काम में लग गये थे।

मेजर एडवर्ड ने अपनी डायरी में लिखा था-‘भारत पर हमारा अधिकार का एक उद्देश्य देश को ईसाई बनाना है। अंग्रेजी शिक्षा का माध्यम बनाकर हम ईसाईकरण के काम को अंजाम देंगे।’

ईसाई पादरी सेना की छावनियों में पहुँचकर हिन्दुस्तानी सिपाहियों से धर्मपरिवर्तन कर ईसाई बनने का आग्रह करते थे। उन्हें पदोन्नति व वेतनवृद्धि का लालच भी दिया जाता था।

ईस्ट इण्डिया कम्पनी ने मंदिरों और मस्जिदों की सम्पत्ति पर कर लगा दिया। चाहे जिसकी भूमि अर्जित कर चर्च व ईसाई स्कूल बनाये जाने लगे।

इसी बीच भारतीय परम्परा को ठुकराकर कानून बना दिया गया कि गोद लिए हुए बच्चे को पैतृक सम्पत्ति में अधिकार नहीं मिलेगा। अनेक भारतीय राजाओं, नवाबों व विधवा रानियों को उनके अधिकारों से वंचित करना शुरु कर दिया गया।...


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