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आलोचना और विचारधारा

नामवर सिंह

प्रकाशक : राजकमल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :284
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 8092
आईएसबीएन :9788126722532

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आलोचना और विचारधारा डॉ. नामवर सिंह के व्याख्यानों का संग्रह है।

Aalochana Aur Vichardhara by Namvar Singh

आलोचना और विचारधारा डॉ. नामवर सिंह के व्याख्यानों का संग्रह है। इन व्याख्यानों के केन्द्र में आलोचना है। संकलित 22 व्याख्यान किसी निश्चित परियोजना के तहत नहीं दिए गए हैं। इसीलिए इनमें कोई पूर्व निश्चित सिलसिला नहीं हैं। इन व्याख्यानों का समय भी दो दशकों से अधिक फैला हुआ है। बावजूद इसके इनमें एक आन्तरिक एकता और सुसम्बद्धता है।

नामवर सिंह के व्याख्यानों की यह दूसरी पुस्तक है। ये व्याख्यान नामवर जी के उत्तरवर्ती समय की वैचारिकता की स्पष्ट झलक देते हैं। पूर्ववर्ती लेखन में वैचारिक संघर्ष के क्रम में समय-समय पर वे आलोचना के बारे में अपनी राय रखते रहे हैं, परन्तु आलोचना में स्वीकृत अवधारणाओं की विस्तृत समीक्षा करने और हिन्दी आलोचना की पूरी परम्परा पर एक साथ विचार करने के अवसर कम आए हैं। इन व्याख्यानों में व्यक्त विचार वस्तुतः नामवर जी के सम्पूर्ण रचनात्मक जीवन के सार की तरह देखे जा सकते हैं। यह एक तरह से मधु कोष है।

पुस्तक चार खंडों में बँटी हुई है। पहले खंड में संकलित दोनों व्याख्यान नामवर के निमित्त के कार्यक्रमों में दिए गए थे। इधर के वर्षों में एक आलोचक के रूप में उनकी सभी प्रमुख चिन्ताएँ यहाँ एक साथ मौजूद हैं। दूसरे खंड के व्याख्यान नामवर जी आलोचना की मूल दृष्टि को स्पष्ट वैचारिक और अवधारणात्मक है।

तीसरे खंड के व्याख्यानों का सम्बन्ध हिन्दी की आलोचना विशेषतः उसके समकालीन परिदृश्य से है। आलोचना के समक्ष मौजूद संकटों को पहचानने की कोशिश करते ये व्याख्यान ज़रूरी विवादों के परिपेक्ष्य में अपना मजबूती से रखते हैं। चौथे खंड में आच्रार्य द्विवेदी पर एक श्रृंखला में दिए गए तीन व्याख्यानों में पहली बार उनकी रचनात्मकता की विशिष्टता का प्रकटन होता है।

नामवर जी की परवर्ती आलोचना में राहुल सांकृत्यायन के विचारों की एक अनुगूँज सुनी जा सकती है। डॉ. रामविलास शर्मा से संस्कृति सम्बन्धी विवादों का एक सिरा यहाँ तक भी जाता हुआ, स्पष्टतः देखा जा सकता है।


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