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पुराण एवं उपनिषद् >> गणेश पुराण

गणेश पुराण

जगन्नाथ शर्मा

प्रकाशक : स्वास्तिक प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2010
पृष्ठ :292
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 8271
आईएसबीएन :81-7681-072-X

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गणेश पुराण

Ganesh Puran - A Hindi Book - by Jagannath Sharma

श्री गणेश जी की विभिन्न पुराणों में वर्णित बाल कथाएँ, शौर्य और पराक्रम का यथोचित वर्णन इस पुराण में करने की चेष्टा की गई है। रिद्धि-सिद्धि दायक संकट नाशक अग्रपूजनीय भगवान् गणेश की महिमा अपरम्पार है। वे सर्व देव व सर्व व्यापक हैं।

श्री गणेश पुराण
आरम्भ :

श्री गणेश जन्म कथा वृतांत

एक समय नैमिषारण्य में बैठे हुए अट्ठासी हजार सौनकादि ऋषियों ने अत्यंत आग्रह के साथ श्री सूत जी से निवेदन किया कि हे सूत! आप श्री व्यास जी के शिष्य हो, श्री व्यास जी ने चारों वेदों का उपदेश जहां दूसरे ऋषियों को दिया वहां पुराण और इतिहास आपको सौंपा, इसलिए आप सब पुराणों की कथाओं को भली-भांति जानते हैं। आपने अनेक पुराण तथा इतिहास की कथा रूपी अमृत का पान हम सब को पहले भी कराया है, आप सदैव परोपकार में ही लगे रहते हैं, भगवान् की कथा और पुणों के बखान करने में आप अद्वितीय हैं, अतः आप कृपा करके, सब विघ्नों के नाश करने वाले, मनुष्यों के संकट तथा दुःखों को दूर करने वाले, सब प्रकार की सिद्धियों के दाता, गणों के नायक, उमा महेश्वर के पुत्र, श्री गणेश जी का वर्णन, उनके जन्म और कर्मों का रहस्य, उनके व्रत तथा उपासना आदि का विवरण, विस्तार पूर्वक सुनाइये, हमारी यहीं इच्छा है। आपके वचनों को सुनकर कभी तृप्त नहीं होती तथा आपके उपदेशों को सुनते रहें, सदैव यही इच्छा बनी रहती है।

सौनकादि ऋषियों के ऐसे वचन सुनकर और उनकी इच्छा ऐसी ही जान कर, सब पुराणों के ज्ञाता, भगवान वेद व्यास जी के शिष्य श्री सूत जी कहने लगे कि हे ऋषियों आप लोग सब धन्य हैं। भगवान के चरणों में आपकी अत्यंत दृढ़ भक्ति देख कर मुझकों अत्यंत प्रसन्नता होती है और जो कथाएं मैंने अपने परम् पूजनीय गुरु श्री वेद व्यास जी से सुनी हैं, सब ही आप को सुनाता हूं। आप एकाग्रचित्त होकर सुनिये।

सूत जी कहने लगे कि हे ऋषियों! तारका सुर दैत्य के अद्भुत तथा उत्तम चरित्र को सुनकर नारद जी को बहुत ही प्रसन्नता हुई और ब्रह्मा जी का चित्त भी नारद जी को यह कथा सुनाकर हर्ष से गद्गद् हो गया। फिर वह शिव जी का स्मरण करके, प्रेम पूर्वक ब्रह्मा जी से पूछने लगे।

नारद जी कहने लगे कि हे देवताओं के देवता! आप तो शिवजी के ज्ञान और उनके चरित्रों के अथाह समुद्र हैं। हे प्रजा के नाथ! मैंने स्वामी कार्तिकेय के अद्भुत और उत्तम चारित्रों को, जो कि अमृत से भी अधिक लाभ देने वाले हैं, अति सावधानी से सुना है, अब आप कृपा करके श्री गणेश जी का चरित्र सुनाइये, मेरी यह प्रबल इच्छा है। उनके जन्म का सब वृतांत, तथा उनके दिव्य कार्य, जो कि सब मंगलों के लिये भी मंगल स्वरूप हैं, वर्णन कीजिये।

सूत जी कहने लगे कि हे ऋषियों! श्री नारद जी के ऐसे बचन सुनकर तथा श्री शिव जी के प्रति उनकी ऐसी श्रद्धा और भक्ति देखकर श्री ब्रह्मा जी का चित्त बहुत ही प्रसन्न हुआ और वह शिव जी का स्मरण करके कहने लगे कि मैंने जो तुम को पूर्व काल में गणेश जी के जन्म का वृत्तांत सुनाया था जो कि शनि की दृष्टि के पड़ने से गणेश जी का सिर कट गया था, तो उस समय उनपर हाथी का मुख लगा दिया गया था, वह कथा कल्पांतर की है। अब इस श्वेत कल्पा में घटित हुई श्री गणेश जी के जन्म की कथा उनके अनेक चरित्रों का वर्णन करता हूं। इस कथा में सारे संसार की रक्षा करने वाले श्री शिव जी महाराज ने उनका सिर काट लिया था। हे मुने इसमें तुम को किसी प्रकार का संदेह नहीं करना चाहिये; क्योंकि भगवान शंम्भु सारी सृष्टि के कर्ता, सब के लिये कल्याण कारी और सारे जगत के स्वामी हैं। सुनाया और निर्गुण भी वही हैं, उन्हीं की माया से अथवा लींला से यह सारा जगत उत्पन्न होता है और विनाश को भी प्राप्त हो जाता है तथा सारे जगत के रक्षा पालन और पोषण करने वाले भी वहीं हैं। हे मुनी श्रेष्ठ अब उस विषय की आप आदर वाले भी वही हैं। हे मुनी श्रेष्ठ अब उस विषय को आप आदर पूर्वक और श्रद्धा से सुनिये।

ब्रह्मा जी कहने लगे कि हे नारद! एक समय पार्वती जी की दो सखियां जिनका नाम जया और विजया था, उनके पास जाकर कहने लगी कि हे सखी! यहां पर कैलाश में जितनें भी गण हैं नदी, भृंगी आदि यह सब हमारे होते हुए भी सब-के-सब श्री शिव जी के ही सेवक और आज्ञा पालन करने वाले हैं। असंख्य प्रमथ गण हैं, उनमें भी हमारा कोई नहीं है, वह सब ही शिव जी की आज्ञा का पालन करते हैं और उन्हीं के द्वार पर खड़े रहते हैं। यद्यपि वह सब हमारे ही हैं परन्तु फिर भी उनका और हमारा मन नहीं मिलता है। इसलिये हे पापों के नाश करने वाली, आपको भी हमारे लिये एक गण की रचना अवश्य करनी चाहिये।

ब्रह्मा जी कहने लगे कि हे नारद! जब सखियों ने पार्वती जी से ऐसे-ऐसे वचन कहे तो उन्होंने भी उन वचनों को हितकारक समझकर, वैसा ही करने का विचार किया। उसके पश्चात् किसी समय में पार्वती जी स्नान कर रही थीं, तब सदाशिव श्री शिवजी महाराज, नन्दी को डरा धमकाकर घर के अन्दर चले आये। श्री शिवजी को इस प्रकार अचानक अन्दर आया देखकर स्नान करती हुई श्री पार्वती जी, जगज्जननी लज्जा को प्राप्त होकर उठकर खड़ी हो गईं। उस समय उनको बड़ी लज्जा प्राप्त हुई और उस समय उनकी सखियों के कहे हुए हितकारक वचन उनको याद आये। इस समय ऐसी घटना घटित होने पर महामाया, परमेश्वरी, शिवपत्नी, श्री पार्वती जी ने अपने मन में ऐसा विचार किया कि मेरा कोई ऐसा सेवक होना चाहिये, जो परम शुभ, कार्य कुशल और मेरी आज्ञा में सदैव तत्पर रहने वाला हो। मेरी आज्ञा से कभी भी विचलित न होने वाला हो। ऐसा विचार कर श्री पार्वती जी ने अपने शरीर के मैल से एक ऐसे चेतन पुरुष का निर्माण किया, जो कि सम्पूर्ण शुभ लक्षणों से युक्त था। उसका वह विशाल शरीर, उसके सभी अंग सुन्दर तथा दोष रहति थे, वह अति शोभायमान् और महान् बल और पराक्रम से सम्पन्न था। महादेवी ने उसको अनेक प्रकार के वस्त्र, नाना प्रकार के आभूषण तथा अनेक प्रकार के उत्तम वरदान देकर कहा कि तुम मेरे पुत्र हो, मेरे अपने ही हो, तुम्हारे समान मेरा प्यारा यहां पर और कोई भी नहीं है। ब्रह्मा जी कहने लगे कि हे नारद! पार्वती जी के ऐसे वचन सुनकर, वह पुरुष उनको नमस्कार करके कहने लगा कि माता जी मैं सदैव आपका आज्ञाकारी रहूँगा, आपकी आज्ञा का कभी भी उल्लंघन नहीं करुंगा। आज आपको कौन-सा कार्य आन पड़ा है, मैं आपकी आज्ञानुसार अवश्य ही उसे पूर्ण करुंगा। उसके ऐसा पूछने पर श्री पार्वती जी, अपने पुत्र से कहने लगी कि हे तात्! तुम मेरे पुत्र हो, मेरे अपने हो, इस लिये तुम मेरी बात सुनों। आज से तुम मेरे द्वार पाल हो जाओ, हे सत् पुत्र! मेरी आज्ञा के बिना, हठपूर्वक, कोई भी मेरे महल के अन्दर घुसने नहीं पाये, चाहे वह कहीं से भी आया हो और कोई भी हो। हे पुत्र! यह बात मैंने तुमसे सत्य कही है।


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