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उपन्यास >> मरंग गोड़ा नीलकंठ हुआ (सजिल्द)

मरंग गोड़ा नीलकंठ हुआ (सजिल्द)

महुआ माजी

प्रकाशक : राजकमल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2012
पृष्ठ :404
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 8435
आईएसबीएन :9788126722358

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आदिवासियों की दशा, दुर्दशा और जीवन संघर्ष पर केन्द्रित उपन्यास

Manarg Goda Neelkanth Hua - A Hindi Book by Mahua Maji

प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश

महुआ माजी का उपन्यास ‘मरंग गोड़ा नीलकंठ हुआ’ अपने नये विषय एवं लेखकीय सरोकारों के चलते इधर के उपन्यासों में एक उल्लेखनीय पहलकदमी है। जब हिन्दी की मुख्य धारा के लेखक हाशिए के समाज को लेकर लगभग उदासीन हों, तब आदिवासियों की दशा, दुर्दशा और जीवन संघर्ष पर केन्द्रित यह उपन्यास एक बड़ी रिक्ति की भरपाई है।

इस उपन्यास में महुआ माजी यूरेनियम की तलाश से जुड़ी जिस सम्पूर्ण प्रक्रिया को उजागर करती हैं वह हिन्दी उपन्यास का जोखिम के इलाके में प्रवेश है। महुआ माजी ने गहरे शोध, सर्वेक्षण और समाजशास्त्रीय दृष्टि का सहारा लेकर इस उपन्यास के माध्यम से एक जरूरी हस्तक्षेप किया है।

उपन्यास का केन्द्रीय पात्र सगेन प्रतिरोध की स्थानिकता को बरकरार रखते हुए विकिरणविरोधी वैश्विक आन्दोलन के साथ भी संवाद बनाता है। हिरोशिमा की दहशत और चेरनोबिल व फुकुशिमा सरीखे हादसे उसकी चेतना को लगातार प्रतिरोधी दिशा देते हैं। अच्छा यह भी है कि यह सबकुछ मानवीय सम्बन्धों की ऊष्मा एवं अन्तर्द्वन्द्व में घुलमिल कर प्रस्तुत हुआ है। सचमुच उपन्यास में वर्णित बहुत से तथ्य व मुद्दे अभी तक गम्भीर चर्चा का विषय नहीं बन सके हैं। इस रूप में यह उपन्यास एक नई भूमिका के रूप में भी प्रस्तुत है।

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