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जीवन संध्या

आशापूर्णा देवी

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2011
पृष्ठ :230
मुखपृष्ठ :
पुस्तक क्रमांक : 8492
आईएसबीएन :0

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Jeevan Sandhya - A Hindi Ebook By Ashapurna Devi


साहब अस्वस्थ हैं, वह तो सुबल समझ गया लेकिन ये लोग हैं कौन, यह उसकी समझ में नहीं आया। इतने दिन काम करते हो गये, लेकिन पहले कभी उसने इन्हें नहीं देखा था।

लड़की के दबंग स्वभाव को समझने में सुबल को कतई देर नहीं लगी, क्योंकि उसने बिना किसी संकोच के आदेशात्मक स्वर में सुबल से कहा था, ‘‘एक सूटकेस और बैंडिग है उसे ले आओ। और—’’ दस रुपये का एक नोट उसकी ओर बढ़ाते बोली थी, ‘‘मीटर देखकर भाड़ा भी चुका देना। माँ जी तो अन्दर ही होंगी।’’

मुँह से कुछ न कहकर सुबल ने स्वीकरात्मक भाव से सिर हिला दिया। लड़की अपने पिता का हाथ पकड़कर बिना किसी निर्देश के आगे बढ़ आयी औऱ सीढ़ी से चढ़कर ऊपर चली गयी। अपने हाथ में सूटकेस और बैंडिंग थामें सुबल चकित होकर उन्हें देखता रह गया।
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