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द्रौपदी की आत्मकथा

मनु शर्मा

प्रकाशक : प्रभात प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2011
पृष्ठ :136
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 8585
आईएसबीएन :9788173159961

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नारी की अस्मिता को सम्मान देनेवाली अत्यंत पठनीय कृति।

Draupadi ki Aatmakatha (Manu Sharma)

द्रौपदी का चरित्र अनोखा है। पूरी दुनिया के इतिहास में उस जैसी दूसरी कोई स्त्री नहीं हुई। महाभारत में द्रौपदी के साथ जितना अन्याय होता दिखता है, उतना अन्याय इस महाकथा में किसी अन्य स्त्री के साथ नहीं हुआ। द्रौपदी संपूर्ण नारी थी। वह कार्यकुशल थी और लोकव्यवहार के साथ घर-गृहस्थी में भी पारंगत। लेकिन द्रौपदी जैसी असाधारण नारी के बीच भी एक साधारण नारी छिपी थी, जिसमें प्रेम, ईर्ष्या, डाह जैसी समस्त नारी-सुलभ दुर्बलताएँ मौजूद थीं।

द्रौपदी का अनंत संताप उसकी ताकत थी। संघर्षों में वह हमेशा अकेली रही। पाँच पतियों की पत्नी होकर भी अकेली। प्रतापी राजा द्रुपद की बेटी, धृष्टद्युम्न की बहन, फिर भी अकेली। पर द्रौपदी के तर्क, बुद्धिमत्ता, ज्ञान और पांडित्य के आगे महाभारत के सभी पात्र लाचार नजर आते हैं। जब भी वह सवाल करती है, पूरी सभा निरुत्तर होती है।

महाभारत आज भी उतनी ही प्रासंगिक और उपयोगी है, वही समस्याएँ और चुनौतियाँ हमारे सामने हैं। राजसत्ता के भीतर होनेवाला षड्यंत्र हो या राजसत्ता का बेकाबू मद या फिर बिक चुकी शिक्षा व्यवस्था हो या फिर छल-कपट से मारे जाते अभिमन्यु। आज भी द्रौपदियों का अपमान हो रहा है। कर्ण नदी-नाले में रोज बह रहे हैं।

‘कृष्ण की आत्मकथा’ जैसी महती कृति के यशस्वी लेखक श्री मनु शर्मा ने महाभारत के पात्रों और घटनाओं की आज के संदर्भ में नई व्याख्या कर उपेक्षित द्रौपदी की पीड़ा और अडिगता को जीवंतता प्रदान की है। नारी की अस्मिता को सम्मान देनेवाली अत्यंत पठनीय कृति।

द्रौपदी को पढ़ने के बाद


उस दिन बनारस में उस बड़े और पुराने अस्पताल के आई. सी. यू. में भरती पिताजी ने मेरी हथेलियों को छूकर मेरी आँखों झाँकते हुए कहा था – मैं चाहता हूँ, उस किताब की भूमिका तुम लिखो। मैं आज तक समझ नहीं पाया, यह उनका आग्रह था या आदेश। मैंने उनसे पूछा भी नहीं। जब वे स्वस्थ होकर घर लौटे तो फिर कहा, तुम लिखो। मेरे सामने यक्षप्रश्न-पिता की किताब की भूमिका बेटा लिखे ? वह भी ऐसी किताब की भूमिका, जिसका चरित्र द्रौपदी जैसा जटिल हो। पत्रकारीय जीवन में अब तक न जाने कितने ऐसे जटिल चरित्रों से पाला पड़ चुका है। पर यह तो द्रौपदी है। द्रौपदी पर पिताजी की लिखी यह छोटी सी पुस्तक आद्योपांत पढ़ने के बाद मैं विचलित था। द्रौपदी की पीड़ा, उसका संताप, उसके भीतर जमा क्रोध, घृणा, अपमान और तिरस्कार की भावना मुझे कहीं अंदर तक आंदोलित करने लगी। सोचता रहा, पिताजी ने तो महाभारत के करीब-करीब सभी पात्रों पर जाने कितना लिखा। उनकी हर किताब का पहला पाठक और प्रूफरीडर मैं ही होता हूँ। कृष्ण की तो पूरी तीन हजार पन्नों की आत्मकथा लिखी, पर उनकी इस सृजनात्मक प्रक्रिया में मैं कहीं नहीं था। सिवाय पहले पाठक की भूमिका में मैं कहीं दूर खड़ा रहता था। लेकिन उस दिन द्रौपदी की भूमिका लिखने के लिए उन्होंने मुझे क्यों चुना ? अब जब मैं इस पुस्तक की भूमिका लिखने बैठा हूँ तो समझ सकता हूँ कि पिता ने यह जिम्मेदारी मुझे क्यों सौंपी होगी ?

द्रौपदी ! याज्ञसेना ! कृष्णा और पृषती !


इसका दूसरा नाम है बदला, प्रतिशोध और प्रतिहिंसा। अपने अपमान की आग में तपती द्रौपदी। कौरवों के दर्प को कुचलने का प्रण लेती द्रौपदी। युद्ध के लिए पांडवों के पौरुष को ललकारती द्रौपदी। उस वक्त की नारी मुक्ति आंदोलन की नींव बनती द्रौपदी। पाँच पतियों से असफल प्रेम करती द्रौपदी। महाभारत के विस्तृत कैनवास पर यह द्रौपदी के विभिन्न रूप हैं, जिसमें से हर रूप उपन्यास का विषय हो सकता है। ऐसी विराट् और जटिल द्रौपदी को एक सूत्र में पिरोया गया है इस उपन्यास में। दरअसल, यज्ञकुंड की आग से जन्मी द्रौपदी आजीवन उस आग से मुक्त नहीं हो पाई। वह हमेशा इसी प्रतिशोध की आग में जलती रही। उसी आग से दूसरों को जलाती रही। द्रौपदी महाभारत की धुरी है। पूरी महाभारत उसके इर्द-गिर्द घटित हुई। विडंबना है कि वह अपनों से भी लड़ी और दूसरों से भी। पर नितांत अकेले। महाराज दुपद की बेटी, प्रतापी पांडवों की पत्नी, धृष्टद्युम्न जैसे वीर की बहन और कृष्ण की सखी होने के बावजूद वह अपने संघर्ष में नितांत अकेली थी। जीवन की रणभूमि में अकेली खड़ी द्रौपदी ने अपने पतियों को हमेशा अधर्म के खिलाफ युद्ध के लिए प्रेरित किया। अपने केश खुले छोड़कर अगर वह अपनी ओर से एकतरफा युद्ध का ऐलान न करती तो शायद पांडव महाभारत की चुनौती को कभी स्वीकार न करते और इतिहास उनको भगोड़े चरित्र को ही जानता। पर यह रहस्य कृष्ण जानते थे। इसलिए युद्धभूमि में अर्जुन को गीता का ज्ञान देकर कृष्ण ने अपनी सखी कृष्णा की मदद की। कृष्ण ने अपनी जंघा पर ताल ठोककर भीम को भी उसकी प्रतिज्ञा याद दिलाई थी तब दुर्योधन मारा गया।

द्रौपदी का चरित्र अनोखा है। पूरी दुनिया के इतिहास में उस जैसी दूसरी कोई स्त्री नहीं हुई। लेकिन इतिहास ने उसके साथ न्याय नहीं किया। दरअसल, भारत की पुरुषप्रधान सामाजिक व्यवस्था उसके साथ तालमेल नहीं बिठा सकी। द्रौपदी को महाभारत के लिए जिम्मेदार माना गया। हालाँकि इसके लिए वह अकेली जिम्मेदार नहीं थी। मेरा मानना है कि द्रौपदी न भी रहती तो भी महाभारत का युद्ध होता, क्योंकि वह विवाद संपत्ति के बटवारे का था। द्रौपदी केवल कारण बनी।

मनु शर्मा का जीवन परिचय


मनु शर्मा ने साहित्य की हर विधा में लिखा है। उनके समृद्ध रचना-संसार में आठ खंडों में प्रकाशित ‘कृष्ण की आत्मकथा’ भारतीय भाषाओं का विशालतम उपन्यास है। ललित निबंधों में वे अपनी सीमाओं का अतिक्रमण करते हैं तो उनकी कविताएँ अपने समय का दस्तावेज हैं।

जन्म : सन् 1928 की शरत् पूर्णिमा को अकबरपुर, फैजाबाद में।
शिक्षा : काशी विश्वविद्यालय, वाराणसी।
किताबें : ‘तीन प्रश्न’, ‘राणा साँगा’, ‘छत्रपति’, ‘एकलिंग का दीवान’, ऐतिहासिक उपन्यास; ‘मरीचिका’, ‘विवशता’, ‘लक्ष्मणरेखा’, ‘गांधी लौटे’ सामाजिक उपन्यास तथा ‘द्रौपदी की आत्मकथा’, ‘द्रोण की आत्मकथा’, ‘कर्ण की आत्मकथा’, ‘कृष्ण की आत्मकथा’, ‘गांधारी की आत्मकथा’ और ‘अभिशप्त कथा’ पौराणिक उपन्यास हैं। ‘पोस्टर उखड़ गया’, ‘मुंशी नवनीतलाल’, ‘महात्मा’, ‘दीक्षा’ कहानी-संग्रह हैं। ‘खूँटी पर टँगा वसंत‘ कविता-संग्रह है, ‘उस पार का सूरज’ निबंध-संग्रह है।
सम्मान और अलंकरण : गोरखपुर विश्व-विद्यालय से डी.लिट. की मानद उपाधि। उ.प्र. हिंदी संस्थान का ‘लोहिया साहित्य सम्मान’, ‘केंद्रीय हिंदी संस्थान का ‘सुब्रह्यण्यम भारती पुरस्कार’, उ.प्र. सरकार का सर्वोच्च सम्मान ‘यश भारती’ एवं साहित्य के लिए म.प्र. सरकार का सर्वोच्च ‘मैथिलीशरण गुप्त सम्मान’।


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