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नाटक-एकाँकी >> कबिरा खड़ा बजार में

कबिरा खड़ा बजार में

भीष्म साहनी

प्रकाशक : राजकमल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2010
पृष्ठ :128
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 8635
आईएसबीएन :9788126718818

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कबिरा खड़ा बज़ार में कबीर के मूल्यवान व्यक्तित्व को प्रस्तुत करनेवाली बहुमंचित और चर्चित नाट्यकृति है।

Kabira Khada Bazaar Main (Bhishm Sahni)

बेपरवाह, दृढ़ और उग्र-संक्षेप में मस्तमौला-कबीर का व्यक्तित्व सदियों से भारत मन और मनीषा को प्रभावित करता रहा है। यही कारण है कि पाँच सौ वर्षों से कबीर के पद भारतीयों की जबान पर हैं और उनके विषय में कितनी ही कहानियाँ लोकविश्रुत हैं। अपने युग की तानाशाही, धर्मान्धता, बाह्याचार और मिथ्या धारणाओं के विरुद्ध अनथक संघर्ष करनेवाला यह व्यक्ति हमारे बीच आज भी एक स्थायी और प्रेरक मूल्य की तरह स्थापित है।

कबिरा खड़ा बज़ार में कबीर के ऐसे ही मूल्यवान व्यक्तित्व को प्रस्तुत करनेवाली बहुमंचित और चर्चित नाट्यकृति है। सुविख्यात प्रगतिशील कथाकार भीष्म साहनी की हानूश के बाद यह दूसरी नाट्य-रचना है, जिसे हिन्दी रंगमंच पर व्यापक प्रशंसा प्राप्त हुई है।

कबीर की फक्कड़ाना मस्ती, निर्मम अक्खड़ता और युगप्रवर्तक सोच इस कृति में पूरी जीवन्तता के साथ मौजूद है। साथ ही इसमें यह भी उडागर हुआ है कि कबीर की साहित्यिकता सामाजिक जड़ता को तोड़ने का ही एक माध्यम थी, जिसके सहारे उन्होंने अनेकानेक मोर्चों पर संघर्ष किया। कृति से गुजरते हुए पाठक कबीर के इस संघर्ष को उसकी तमाम तत्कालीन सामाजिकता के बावजूद समकालीन भारतीय समाज की विभिन्न विकृतियों से सहज ही जोड़ पाता है।

संक्षेप में कहें तो भीष्म साहनी की यह नाट्यकृति मध्ययुगीन वातावरण में संघर्ष कर रहे कबीर को-उनके पारिवारिक और सामाजिक संदर्भों सहित-आज भी प्रासंगिक बनाती है।

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