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अनुभव प्रकाश

श्री स्वामी जीवाराम जी महाराज

प्रकाशक : क्रियेटिव पब्लिकेशन प्रकाशित वर्ष : 2010
पृष्ठ :144
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 8735
आईएसबीएन :81-7681-021-5

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अनुभव प्रकाश

Anubhav Prakash - Shri Swami Jivaram ji Maharaj

अनुभव प्रकाश


वेदांत ज्ञान क्या है ? और उसे कैसे प्राप्त किया जा सकता है ?
ईश्वर भक्ति क्या है ? और मानव प्राणी को उसकी क्या आवश्यकता है ? इन सब प्रश्नों का उत्तर-ब्रह्मज्ञान भक्ति प्रकाश ही दे सकता है ? क्योंकि मनुष्य को मनन करने की शक्ति दी गई है ? जो अन्य प्राणियों में नहीं है। मनुष्य अपने त्याग, विवेक एवं बुद्धि द्वारा अपनी आत्मा का इतना ऊंचा विकास कर सकता है कि वह ब्रह्म साक्षात्कार होकर उस पारब्रह्म परमेश्वर के स्वरूप में विलीन हो जाता है। यह तभी सम्भव है यदि आप भक्ति ज्ञान, वेदान्त सम्बन्धी ब्रह्मज्ञान से परिपूर्ण पुस्तकों का अध्ययन करें। यह पुस्तक श्री स्वामीजीवदास की तीन पुस्तकों का (ब्रह्मज्ञान भक्ति प्रकाश, ज्ञान वैराग्य प्रकाश, मनुष्य बोध भजनमाला) का संकलित रूप है।

भूमिका

गत वर्षों से मेरी अभिलाषा थी कि जन समुदाय के विभिन्न भ्रमों के निवारण के लिए एक प्रामाणिक वंश इतिहास की रचना की जाये।

प्रस्तुत पुस्तक इसी उद्देश्य की पूर्ति के लिए पिछले 25 वर्षों के कठिन परिश्रम एवं अकथनीय प्रयत्नों का प्रति फल है। बहुत सी जातियों का इतिहास इस भूतकाल के गर्द में इस प्रकार बिखरा पड़ा है कि आज भी उसके स्वरूप का ज्ञान कर लेना अत्यन्त दुःसाध्य है।

प्रस्तुत पुस्तक भूले भटके मनुष्य को ज्ञानी-रूपी मार्ग बताने वाला प्रकाशमय दीपक है। इस पुस्तक से लाखों समाज सुधारक प्रेमियों एवं शिक्षित व्यक्तियों को एक नई प्रेरणा एवं जागृति का सन्देश मिलेगा। मानव की महत्वा और स्वयं गरिमा जागृत करने का जो भी प्रयत्न देश में किसी भी स्थान पर किया जाये वह वंदनीय है।

आज के युग में जब कि मानव समाज निरन्तर प्रगति एवं उन्नति पथ की ओर अग्रसर होता जा रहा हो, और हम अपने आदर्शों को भूलकर अपना सन्तुलन खो बैठे हों, ऐसे समय में जातीय इतिहास और उसके आदर्श नियमों का महत्व और भी अधिक हो जाता है।

पिछड़ी हुई जातियों का इतिहास निःसन्देह गौरवशाली है, अतीत के उन बिखरे पन्नों को जो सदियों से गुलामी के अन्धकारमयी जीवन में छिपे पड़े थे, गत 25 वर्षों के कठिन परिश्रम से खोज किया हुआ यह प्राचीन ‘‘प्राचीन वंश प्रदीप’’ आज आपके हाथों में है।

देश व मानव समाज के उत्थान का मूल आधार इतिहास ही है। किसी भी जाति को जीवित रखने तथा उसे उन्नति के मार्ग पर ले जाने के लिए संसार में जातीय इतिहास से बढ़कर अन्य कोई साधन नहीं है। वास्तव में इतिहास ही उस देश तथा समाज के पूर्वजों की अमूल्य निधि है।

जो कुछ भी मैं लिख सका हूं उस अमूल्य निधि को अपने समाज के पाठकों एवं हिन्दू समाज के महान उपदेश कों इतिहासकारों के सन्मुख रख रहा हूँ। जिससे जातीय सम्बन्ध में फैली हुई अनेक प्रकार की भ्रांत धारणाओं का समाधान हो सके, इसी उद्देश्य की पूर्ति के लिए इस पुस्तक की रचना की गई है।

यदि आज भी अपने गत जीवन के गौरवशाली इतिहास को पहचान लें तो निश्चय ही समाज की उन्नति को तीव्र करने में यह ‘‘प्राचीन इतिहास’’ अत्यधिक सहायक सिद्ध हो सकता है। वैसे तो यह एक विस्तृत शोध का विषय था फिर भी मैंने इस सम्बन्ध में विभिन्न मतों का विवेचन कर एक निश्चित मत प्रगट करने का पूर्ण प्रयास किया है।

मुझे आशा है कि पाठकगण इस इतिहास को पढ़ने के पश्चात् आलोचना करते समय सन्तुलित भाषा का प्रयोग कर मुझे कृतार्थ करेंगे। पुस्तक की सफलता पाठकों की उपयोगिता पर निर्भर है। यदि पाठकों ने इस अमूल्य निधि को अपनाया तो मुझे विश्वास है कि यह ग्रन्थ भारतवर्ष के प्रत्येक नागरिक के लिये उपयोगी सिद्ध होगा।


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