लोगों की राय

गजलें और शायरी >> आह

आह

सुधीर मौर्य

प्रकाशक : भारतीय साहित्य सेवक संघ प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2011
पृष्ठ :64
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 8780
आईएसबीएन :00000000

Like this Hindi book 5 पाठकों को प्रिय

256 पाठक हैं

ये जो बोझल लगती है आज आंखे तेरी, तूने भी किया है शायद आज इश्क में रतजगा..

Ek Break Ke Baad

न होते अगर तुम मस्जूद मेरे हमे भी तुम्हारी परवाह न होती।
जो नजरें इनायत फरमाते हम पे तो जीस्त हमारी तबाह न होती।


तुम्हारा एजाज तुम्हारी शुजाअत का कायल है जमाना ये सारा,
विभीषन को मिलती सुलतानी कैसे जो उस पर तुम्हारी निगाह न होती।


प्रथम पृष्ठ

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book