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गजलें और शायरी >> संभाल कर रखना

संभाल कर रखना

राजेन्द्र तिवारी

प्रकाशक : उत्तरा बुक्स प्रकाशित वर्ष : 2012
पृष्ठ :120
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 8809
आईएसबीएन :9788192413822

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तुम्हारे सजने-सँवरने के काम आयेंगे, मेरे खयाल के जेवर सम्भाल कर रखना....

तुम्हारे सजने-सँवरने के काम आयेंगे,
मेरे खयाल के जेवर सम्भाल कर रखना....

 

संभाल कर रखना

जैसा उन्होंने कहा...

पं. कृष्णानन्द चौबे
ऐसे रचनाकारों की संख्या बहुत कम होगी जिन्हें शुरू से ही शोहरत की कोई लालसा नहीं रही हो, न मंचों के माध्यम से और न प्रकाशनों के। लेकिन आम तौर से ऐसे लगनशील रचनाकारों के साथ होता यह है कि शोहरत स्वयं इनके पीछे-पीछे चलने लगती है। ऐसे ही रचनाकारों में शुमार किये जाते हैं राजेन्द्र तिवारी।

ग़ज़लों के इस सशक्त हस्ताक्षर ने ग़ज़ल प्रेमियों के दिलों में अपना एक विशिष्ट स्थान बना लिया है। शोहरत के लिये वह ग़ज़लों को लेकर किसी अवांछित विवाद में कभी नहीं पड़े, चाहे भाषा का हो या व्याकरण का। फिक्र और फ़न के सम्यक सामंजस्य के कारण उनकी ग़ज़लें अपनी एक अलग छाप छोड़ती हैं। मुझे पूर्ण विश्वास है कि पाठकगण संग्रह का भरपूर स्वागत करेंगे। मेरी शुभकामनायें एवं आशीर्वाद सदैव उनके साथ हैं।


अंसार क़ंबरी
चेहरे पर मुस्लिम सभ्यता को दर्शाती दाढ़ी, नहीफ़ आवाज़, आकर्षक लहजा, लहजे में ग़ज़ब का आत्मविश्वास लिये भाई राजेन्द्र तिवारी मुझसे पहली बार यह कहते हुए मिले-
आज जो कुछ हैं सो हैं, कल नम्बरी हो जायेंगे।
लिखते-लिखते हम भी इक दिन क़ंबरी हो जायेंगे।

आज मुझे बहुत हर्ष हो रहा है कि उनकी ग़ज़लों का गुलदस्ता ‘संभाल कर रखना’ आपके हाथों में है।

यह संकलन इस बात का प्रमाण है कि राजेन्द्र तिवारी, क़ंबरी नहीं बल्कि उससे भी आगे हैं।

उनके इस स्तरीय संग्रह के लिये बहुत-बहुत बधाई! ईश्वर से उनकी दीर्घायु एवं प्रगति की कामना के साथ।


आर. पी. शर्मा ‘महर्षि’
राजेन्द्र तिवारी निस्संदेह एक परिपक्व, अनुभवी एवं कुशल ग़ज़लगो शायर हैं। उनके ग़ज़ल संग्रह ‘‘संभाल कर रखना’’ में सम्मिलित उनकी प्रभावी ग़ज़लें इस तथ्य का अकाट्य प्रमाण हैं। उनकी काव्य रसिकता उत्कृष्ट कोटि की है, उन्हें शे’र कहने का फ़न आता है। उनकी ग़ज़लें सहज भाव से सृजित, सरस और सुरुचिपूर्ण हैं। इसमें उनकी निजी शैली एवं प्रभावी प्रस्तुतीकरण की महत्वपूर्ण भूमिका रही है, जो उनकी अलग पहचान बनाती है। उनके शे’रों में नवीनता है, ताज़गी है। उनमें कोई न कोई अनकही एवं अनछुई बात कही गई है। उनकी ग़ज़लों में सम्पूर्ण जीवन-जगत आबाद है।

‘‘संभाल कर रखना’’ जो उनकी 32वीं ग़ज़ल की रदीफ़ है, इस ग़ज़ल संग्रह के शीर्षक को पूर्णतया चरितार्थ करती है। तिवारी जी की ऊर्जावान लेखनी आगे भी ऐसी ही गुलफ़िशानी करती रहेगी ऐसा अपेक्षित है। हार्दिक अभिनंदन सहित.....

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