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कविता संग्रह >> टुकड़ा कागज का

टुकड़ा कागज का

अबनीश सिंह चौहान

प्रकाशक : विश्व पुस्तक प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2012
पृष्ठ :120
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 8810
आईएसबीएन :9788189022276

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कल्पना, भाव, संवेदना, यथार्थ - सब कुछ संजोता है - टुकड़ा कागज का

Ek Break Ke Baad

इस काव्य संग्रह की रचनाओं के मुख्य दो छोर दिखायी पड़ते हैं, जिसका एक सिरा टुकड़ा कागज का शीर्षक गीत तथा दूसरा अपना गाँव समाज है। दोनों के बीच राजमार्ग का सुहाना किन्तु असुरक्षित सफर, पगडंडियां बनाने और उन पर चलने अर्थात् नई राहों की खोज, अँजुरी में भरे शीतल मीठे जल की मानिन्द अँगुलियों की फाँक से रिसते जाते सामाजिक रिश्ते और आँखों की कोरों में बूँद बनकर थमी-थमी सी पारिवारिक आत्मीयता, सम्मोहित करने वाली प्राकृतिक झाँकियां, यांत्रिक और मशीनी जीवन की आत्मकेन्द्रीयता, विज्ञान की उपयोगी और तल्ख उपलब्धियाँ - जैसे जगत और जीवन के विविध परिदृश्य और नवगीत के रूप में उन सब की विन्यस्ति दिखायी पड़ती है। कल्पना, भाव, संवेदना, यथार्थ - सब कुछ संजोता है - टुकड़ा कागज का ।-

कभी पेट की चोटों को
आँखों में भर लाता
कभी अकेले में भीतर की
टीसों को गाता

अंदर-अंदर लुटता जाए
टुकड़ा कागज का।

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