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बुंदेलखंड से पलायन की निरंतरता

चिन्मय मिश्र

प्रकाशक : विकास संवाद प्रकाशित वर्ष : 2012
पृष्ठ :96
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 8889
आईएसबीएन :000000000000

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क्या पलायन का मतलब सचमुच मुसीबत से भागना ही होता है? पलायन तो बस पलायन है।

Ek Break Ke Baad

प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश

पलायन तो बस पलायन है। आधुनिक मैनेजमेंट गुरुओं के अनुसार पलायन स्थितियों से भागना है। क्या पलायन का मतलब सचमुच मुसीबत से भागना ही होता है?

गौरतलब है मानव इतिहास में से यदि पलायन को निकाल दिया जाये तो विश्व और मानव समाज का चेहरा क्या होगा? कपड़ों में जो खास कलाकारी के विशेषज्ञ थे यदि वे देश के किसी एक हिस्से तक ही सीमित रहते तो कला का वह ज्ञान किस काम आता? यदि जल संसाधनों का निर्माण करने वाले अपने-अपने गाँव में ही रहते और उन्हें दूसरे इलाकों के राजाओं या समाज ने आमंत्रित नहीं कियी होता तो क्या महाकौशल और बुंदेलखंड में इतने खूबसूरत और इतनी बड़ी संख्या में तालाब और जल संरचनाएं बन पातीं?

नव-निर्माण, खोज, ज्ञान के विस्तार और समाज की बहुरूपता को समग्र रूप देने में पलायन महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

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