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गीता प्रेस, गोरखपुर >> श्रीभगवन्नाम

श्रीभगवन्नाम

हनुमानप्रसाद पोद्दार

प्रकाशक : गीताप्रेस गोरखपुर प्रकाशित वर्ष : 2005
पृष्ठ :48
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 889
आईएसबीएन :00000

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भगवान के नामों का जप, तप कैसे करना चाहिए...

Shri Bhagvannam A Hindi Book by Hanuman Prasad Poddar - श्रीभगवन्नाम - हनुमानप्रसाद पोद्दार

प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश

श्रीभगवन्नाम

पापानलस्य दीप्तस्य मा कुर्वन्तु भयं नराः।
गोविन्दनाममेघौघैर्नश्यते नीरविन्दुभिः।।

(गरुड़ पुराण)

‘हे मनुष्यों ! प्रदीप्ति पापाग्नि को देखकर भय न करो। गोविन्दनामरूप मेघों के जलविन्दुओं से इसका नाश हो जायगा।’

पापों से छूटकर परमात्मा के परमपद को प्राप्त करने के लिये शास्त्रों में अनेक उपाय बतलाये गये हैं। दयामय महर्षियों ने दुःखकातर जीवों के कल्याणार्थ वेदों के आधार पर अनेक प्रकार की ऐसी विधियाँ बतलायी हैं, जिनका यथाधिकार आचरण करने से जीव पापमुक्त होकर सदा के लिये निरतिशयानन्द परमात्मसुख को प्राप्त कर सकता है। परन्तु इस समय कलियुग है। जीवन की अवधि बहुत थोड़ी है।

मनुष्यों की आयु प्रतिदिन घट रही है। आध्यात्मिक, आधिभौतिक और आधिदैविक  तपों की वृद्धि हो रही है। भोगों की प्रबल लालसाने प्रायः सभी को विवश और उन्मत्त बना रखा है।
कामनाओं के अशेष कलंक से बुद्धि पर कालिमा छा गयी है। परिवार, कुटुम्ब, जाति या देश के नाम पर होनेवाली विविध भाँति की मोहमयी क्रियाओं के तीव्र धार-प्रवाह में जगत् बन रहा है
 देश और उन्नति के नाम पर, अहिंसा सत्य मनुष्यत्व तक का विसर्जन किया जा रहा है। सारे जगत् में कुवासनामय कुप्रवृत्तियों का ताण्डव नृत्य हो रहा है। शास्त्रों के कथनानुसार युगप्रभाव से या हमारे दुर्भाग्यदोष से धर्म का एक पाद भी इस समय केवल नाममात्र को रहा है। आजकल के जीव धर्मानुमोदित सुखसे सुखी होना नहीं चाहते।


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