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हक की बात

रोली शिवहरे, प्रशांत दुबे

प्रकाशक : विकास संवाद प्रकाशित वर्ष : 2011
पृष्ठ :84
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 8890
आईएसबीएन :000000000000

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जहाँ एक ओर राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारण्टी कानूून अपने आप में अधिकारो और हकों की बातों से भरा हुआ है...

Ek Break Ke Baad

प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश

यह तो हम सब मान ही रहे हैं कि ग्रामीण रोजगार गारण्टी कानूून और योजना से गाँव के लोगों को अब रोजगार का कानूनी अधिकार मिल गया है, पर उपलब्धि केवल इतनी सी ही नहीं है।

जिस संघर्ष और जन अभियान के बाद हमें यह कानून मिला उससे यह बात भी सिद्ध हुई कि जन संघर्ष से ही जीवन के अधिकार और संविधान की भावनाओं को संरक्षित किया जा सकता है।

आज के दौर में जबकि लोक अधिकारो का दायरा लगातार सीमित किया जा रहा है, भूमण्डलीकरण के दबाव के बावजूद भारतीय राज्य को रोजगार को एक अधिकार का दर्जा देना पड़ा।

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