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कुपोषित बचपन

सचिन कुमार जैन

प्रकाशक : विकास संवाद प्रकाशित वर्ष : 2011
पृष्ठ :32
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 8896
आईएसबीएन :000000000000

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हमारा समाज भूख की स्पष्ट अभिव्यक्ति की अपेक्षा रखता है। लेकिन वह बचपन के किसी भी चरण पर बच्चों की भाषा नहीं समझ पाता है....

Ek Break Ke Baad

प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश

हमारा समाज भूख की स्पष्ट अभिव्यक्ति की अपेक्षा रखता है। लेकिन वह बचपन के किसी भी चरण पर बच्चों की भाषा नहीं समझ पाता है। बच्चे अपनी आँखों से बोलते हैं, अपने हाथ पाँब पटक कर रोते हुए अपनी माँग रखते हैं, लेकिन जो बच्चे लगातार भूखे रहे आते हैं उनकी आँखे तक बोलना बंद कर देती हैं। वे अपने हाथ-पाँव इधर-उधर नहीं फेंक पाते हैं। भूख व भुखमरी की वेदी पर लगातार बलि चढ़ते ये बच्चे हमें इस बात पर पछताने को मजबूर करते हैं कि हम उनकी बोली न समझ सके, उनके अस्तित्व को ही नकार बैठे।

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