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पुरातन कथाएं

स्वामी अवधेशानन्द गिरि

प्रकाशक : मनोज पब्लिकेशन प्रकाशित वर्ष : 2013
पृष्ठ :160
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 8943
आईएसबीएन :978-81-310-0809

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पुराणों में कथाओं की प्रमुखता है। कहीं पर जब ये कथाएं किसी घटना विशेष का वर्णन करती हैं, तब इनका समावेश तत्कालीन इतिहास में होता है...

Puratan Kathein - A Hindi Book by Swami Avdheshanand

प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश

पुराणों में कथाओं की प्रमुखता है। कहीं पर जब ये कथाएं किसी घटना विशेष का वर्णन करती हैं, तब इनका समावेश तत्कालीन इतिहास में होता है। लेकिन कहीं पर अपनी बात को समझाने के लिए प्रतीक रूप में भी इन्हें कहा गया है। ऐसे स्थानों पर ये ’दर्शन’ का रूप हो जाती हैं। ये कथाएं व्यावहारिक सत्य को उजागर करने के साथ ही पारमार्थिक सत्य का भी विवेचन करती हैं। जीवन में दोनों ही महत्वपूर्ण हैं। जीवन यात्रा इन दोनों पंखों और दो पहियों पर ही आगे बढ़ती है।

भारतीय मनीषियों ने ’श्रुति’ अर्थात वेद को ही सर्वोच्च प्रमाण माना है। पुराणों को वे उसकी सरल व्याख्या कहते हैं। लेकिन खेद है कि कुछ विद्वानों ने इन्हें ’मनगढंत’ कह कर नकार दिया है। इसका परिणाम अत्यंत विपरीत हुआ। लोग वेदों का अध्ययन कर नहीं पाए और इस पारंपरिक आस्था से वे दूर चले गए। आज की ’नास्तिकता’ काफी हद तक इसी का परिणाम है। ऐसे में स्वामी विवेकानंद के ये शब्द स्मरणीय हैं-’नए घर का निर्माण कर लो, उसकी मजबूती को परख लो, तब पुराने को तोड़ो। कहीं ऐसा न हो कि पुराना तोड़ लो और नए का निर्माण ही न कर पाओ तथा जीवन बिना छत के निकल जाए। यह स्थिति जीवित मृत्यु सरीखी होगी।’

पुस्तक में दी गई कथाएं आपको संस्कृति की झलक देने के साथ ही जीवन के संदर्भ में कुछ नया सोचने को विवश करेंगी, ऐसा विश्वास है।

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