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धर्म एवं दर्शन >> हमारे पूज्य देवी-देवता

हमारे पूज्य देवी-देवता

स्वामी अवधेशानन्द गिरि

प्रकाशक : मनोज पब्लिकेशन प्रकाशित वर्ष : 2013
पृष्ठ :207
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 8953
आईएसबीएन :9788131010860

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’देवता’ का अर्थ दिव्य गुणों से संपन्न महान व्यक्तित्वों से है। जो सदा, बिना किसी अपेक्षा के सभी को देता है, उसे भी ’देवता’ कहा जाता है...

स्कंदमाता

मां दुर्गा के पांचवें स्वरूप को 'स्कंदमाता' के नाम से जाना जाता है। भगवान स्कंद कुमार कार्तिकेय के नाम से भी जाने जाते हैं। ये प्रसिद्ध देवासुर संग्राम में देवताओं के सेनापति बने थे। पुराणों में इन्हें कुमार और शक्तिधर कहकर इनकी महिमा का काफी बखान किया गया है। इनका वाहन मयूर है। अतः इन्हें 'मयूरवाहन' के नाम से भी अभिहित किया गया है। इन्हीं भगवान स्कंद की माता होने के कारण मां दुर्गा के पांचवें स्वरूप को स्कंदमाता के नाम से जाना जाता है। इनकी साधना-उपासना नवरात्र के पांचवें दिन की जाती है। इस दिन साधक का मन विशुद्ध चक्र में अवस्थित होता है। इनके विग्रह में भगवान स्कंद बालरूप में इनकी गोद में बैठे होते हैं।

स्कंद मातृस्वरूपिणी देवी की चार भुजाएं हैं। ये दाईं तरफ की ऊपर वाली भुजाओं से भगवान स्कंद को गोद में पकड़े हुए हैं और दाईं तरफ की नीचे वाली भुजा ऊपर की ओर उठी हुई है जिसमें कमल-पुष्प है। बाईं तरफ ऊपर वाली भुजा वरमुद्रा में तथा नीचे वाली भुजा जो ऊपर की ओर उठी हुई है, उसमें भी कमल-पुष्प है। इनका वर्ण पूर्णत: शुभ्र है। ये कमल के आसन पर विराजमान रहती हैं। इसी कारण इन्हें 'पद्मासना देवी' भी कहा जाता है।

नवरात्र के पांचवें दिन का शास्त्रों में पुष्कल महत्व बताया गया है। विशुद्ध चक्र में अवस्थित मन वाले साधक की समस्त बाह्य क्रियाओं एवं चित्तवृत्तियों का लोप हो जाता है। वह विशुद्ध चैतन्य स्वरूप की ओर अग्रसर होता है। उसका मन समस्त लौकिक, सांसारिक एवं मायिक बंधनों से विमुक्त होकर पद्मासना मां स्कंदमाता के स्वरूप में पूर्णत: तल्लीन हो जाता है। इस समय साधक को पूर्ण सावधानी के साथ उपासना की ओर अग्रसर होना चाहिए।

साधक को अपनी समस्त ध्यान-वृत्तियों को एकाग्र रखते हुए ही साधना के पथ पर आगे बढ़ना चाहिए। मां स्कंदमाता की उपासना से भक्त की सभी इच्छाएं पूर्ण हो जाती हैं। उसे इस मृत्युलोक में ही परम शांति और सुख का अनुभव होने लगता है। उसके लिए मोक्ष का द्वार स्वयमेव सुलभ हो जाता है। स्कंदमाता की उपासना से बालरूप भगवान स्कंद की उपासना स्वयमेव हो जाती है। यह विशेषता केवल इन्हीं को प्राप्त है, अत: साधक को स्कंदमाता की साधना-उपासना की ओर विशेष ध्यान देना चाहिए।

सूर्यमंडल की अधिष्ठात्री देवी होने के कारण ही स्कंदमाता का उपासक अलौकिक तेज एवं कांति से संपन्न हो जाता है। एक अलौकिक प्रभामंडल अदृश्य भाव से सदैव उसके चतुर्दिक परिव्याप्त रहता है। यह प्रभामंडल प्रतिक्षण उसके योगक्षेम का निर्वहन करता है। अतः हमें एकाग्र भाव से मन को पवित्र रखकर मां की शरण में जाना चाहिए। इस घोर भव सागर के दुखों से मुक्ति पाकर मोक्ष का मार्ग सुलभ बनाने का इससे उत्तम उपाय दूसरा नहीं है।

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