लोगों की राय

धर्म एवं दर्शन >> हमारे पूज्य देवी-देवता

हमारे पूज्य देवी-देवता

स्वामी अवधेशानन्द गिरि

प्रकाशक : मनोज पब्लिकेशन प्रकाशित वर्ष : 2013
पृष्ठ :207
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 8953
आईएसबीएन :9788131010860

Like this Hindi book 9 पाठकों को प्रिय

243 पाठक हैं

’देवता’ का अर्थ दिव्य गुणों से संपन्न महान व्यक्तित्वों से है। जो सदा, बिना किसी अपेक्षा के सभी को देता है, उसे भी ’देवता’ कहा जाता है...

भगवती दुर्गा

वेदांत शास्त्रों के अनुसार संपूर्ण विश्व की सबसे बड़ी सत्ता ब्रह्म है। उस सच्चिदानंद ब्रह्म की अंतरात्मा ही 'दुर्गा' हैं। दुर्गा ही जगत की सृष्टि, पालन और संहार करती हैं। ये सब उन्हीं की माया है। प्रत्येक जड़-चेतन पदार्थ में उन्हीं की झलक दिखाई दे रही है। वही विश्व में सर्वत्र व्याप्त हैं और उन्हीं में संपूर्ण विश्व समाया हुआ है। जगत की सृष्टि करने के कारण ही दुर्गा जगज्जननी जगदंबा हैं। जैसे मकड़ी अपने मुख से तार उगलकर जाल बुनती है, वैसे ही मां दुर्गा अपने से पांच तारों (पंचभूत-आकाश, वायु, अग्नि, जल और पृथ्वी) को उत्पन्न करके इस जंजाल (संसार) की रचना करती हैं। वही विश्व मंच की चतुर चितेरी और नटी हैं। उन्हीं महान चितेरी ने इसे विविध रंगों से सजाया है। और वही विभिन्न रूप धारण कर रात-दिन नाटक कर रही हैं।

भगवती दुर्गा ही आद्याशक्ति हैं। पृथ्वी में धारणा शक्ति, जल में शीतलता, अग्नि में दाहकता और सूर्य में प्रकाश रूप में वही बैठी हैं। वही चराचर में रहने वाली चेतना शक्ति हैं। वही घट-घट में आसन जमाए हैं। यदि वे जीव के हृदय से अपना आसन हटा लें तो जीव हिल-डुल भी नहीं सकते। जीवों की तो बात ही क्या, बिना शक्ति के शिव भी शव हैं। शक्ति के बिना संसार में एक पत्ता तक नहीं हिलता। संपूर्ण संसार का संचालन वही कर रही हैं। हम सब उन्हीं की कठपुतली हैं। हमारी जीवन डोर उन्हीं के हाथ में है। वही हमारी कर्म डोर को हिला-हिलाकर नचा रही हैं। वही भाग्य विधाता हैं।

भगवती दुर्गा नित्य होते हुए भी देवों का मनोरथ पूर्ण करने के लिए समय-समय पर प्रकट होती हैं। असुरों द्वारा स्वर्ग से ठुकराए देवगण दुखी होकर जब-जब श्रद्धा-भक्ति से मां दुर्गा की स्तुति करते हैं, तब-तब वे अपने भक्तों का दुख दूर करने के लिए अजन्मा होकर भी जन्म लेती हैं और युद्ध में असुरों का संहार कर भक्तों के कल्याण के लिए विभिन्न प्रकार की परम पावन मनोहारी मधुर लीलाएं करती हैं। वही भक्तों की आराधना से प्रसन्न होकर उन्हें भोग, स्वर्ग और मोक्ष प्रदान करती हैं। ऐसी करुणामयी हैं-मां दुर्गा।

भगवती दुर्गा जगत के कण-कण में व्याप्त हैं, अत: वे कहीं से भी प्रकट हो सकती हैं। एक बार सृष्टि के आदिकाल में मधु-कैटभ का संहार करने के लिए भगवान विष्णु के अंगों से प्रकट हुईं। एक बार महिषासुर के कहर से दुखी देवगणों की विनती पर देवों के शरीर से तेज के रूप में देवी का प्रादुर्भाव हुआ और महिषासुर का वध कर देवों को सुख प्रदान किया। एक बार शुंभ-निशुंभ से त्रस्त देवों की स्तुति से प्रसन्न होकर वे पार्वती के शरीर से प्रकट हुईं।

वैसे तो मां दुर्गा के विभिन्न रूप और नाम हैं किंतु नवरात्रों में शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा, कूष्मांडा, स्कंदमाता, कत्यायनी, कालरात्रि, महागौरी और सिद्धिदात्री-इन नौ रूपों में उनकी आराधना होती है। भगवती दुर्गा की महिमा से धर्मशास्त्र भरे पड़े हैं किंतु ‘देवी भागवत पुराण' में दुर्गा की ही महिमा का विशुद्ध वर्णन है। उनकी उपासना युगों से होती आ रही है। वे अपने भक्तों की मनोकामनाएं पूर्ण करती हैं और विश्व का कल्याण करती हैं।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book