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धर्म एवं दर्शन >> हमारे पूज्य देवी-देवता

हमारे पूज्य देवी-देवता

स्वामी अवधेशानन्द गिरि

प्रकाशक : मनोज पब्लिकेशन प्रकाशित वर्ष : 2013
पृष्ठ :207
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 8953
आईएसबीएन :9788131010860

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’देवता’ का अर्थ दिव्य गुणों से संपन्न महान व्यक्तित्वों से है। जो सदा, बिना किसी अपेक्षा के सभी को देता है, उसे भी ’देवता’ कहा जाता है...

 

यमराज

देवताओं के शिल्पकार विश्वकर्मा की पुत्री संज्ञा का विवाह भगवान सूर्य के साथ हुआ। संज्ञा से भगवान सूर्य को दो पुत्र और एक पुत्री प्राप्त हुई। एक पुत्र का नाम यमराज, दूसरे पुत्र का नाम श्राद्धदेव मनु तथा पुत्री का नाम यमुना रखा गया। यमराज भगवान विष्णु के परम भक्त हैं। द्वादश भागवताचार्यों में यमराज की गणना होती है। ये दक्षिण दिशा के लोकपाल और यमलोक के राजा हैं।

यमलोक को 'संयमनी पुरी' और 'यमपुरी' भी कहते हैं। यमपुरी पाप कर्म करने वाले लोगों के लिए बड़ी भयप्रद है। यमराज का वाहन भैंसा है और ये हाथ में दंड धारण करते हैं। यम, धर्मराज, मृत्यु, अंतक, वैवस्वत, काल, सर्वभूतक्षय, औदुंबर, दहन, नील, परमेष्ठी, वृकोदर, चित और चित्रगुप्त-ये चौदह नाम यमराज के हैं। इन्हीं नामों से उनकी पूजा-आराधना की जाती है। और इन्हीं नामों से उनको तर्पण दिया जाता है।

'गरुड़ पुराण के अनुसार यमपुरी के बीच में यमराज का दिव्य भवन है। जो रत्नों का बना हुआ है और उसकी चमक सूर्य के समान है। यह भवन दो सौ योजन लंबा-चौड़ा और पचास योजन ऊंचा है। उसमें हजारों खंभे हैं जो स्वर्ण और मणियों से सुशोभित हैं। यमपुरी में प्रवेश करने के लिए चारों दिशाओं में चार द्वार हैं। पुण्य कर्म करने वाले प्राणियों को पूर्व, पश्चिम और उत्तर के द्वारों से प्रवेश कराया जाता है जबकि पाप कर्म करने वाले प्राणियों को मरने के बाद यमपुरी में दक्षिण द्वार से ले जाया जाता है।

पूर्व, पश्चिम और उत्तर द्वारों से प्रवेश करने वाले पुण्यात्माओं को यमराज शंख, गदा, चक्र और पद्मधारी चतुर्भुज-नीलाभ भगवान विष्णु के रूप में रत्नसर पर बैठे हुए दर्शन देते हैं। दक्षिण द्वार से प्रवेश करने वाले पापियों को बड़ी-बड़ी प्रज्वलित आंखों वाले, काले रंग के दांत-नाखूनों वाले, टेढ़ी भौंहें।

और प्रलय काल के मेघ के समान गर्जना करने वाले भयंकर वेश में दिखाई देते हैं। पुण्यात्माओं को स्वर्ग और पापात्माओं को नरक में भेजा जाता है।

पाप करने वाले जीव को मृत्यु के बाद 13वें दिन यमदूतों द्वारा बांधकर यम मार्ग से यमलोक ले जाया जाता है। यम मार्ग 6,88,000 किलोमीटर लंबा है। मार्ग में 16 पुल पड़ते हैं। क्रमशः उन 16 पुलों और भयंकर वैतरणी नदी को पार करके जीव यमपुरी पहुंचता है। यहां यमराज चित्रगुप्त से पापी के पापों का विवरण पूछते हैं। सर्वज्ञ चित्रगुप्त पापी के पापों का लेखा-जोखा बताते हैं, फिर यमराज पापी के कर्मानुसार उसे नरक में ले जाने की आज्ञा देते हैं। यमराज की आज्ञानुसार यमदूत उसे नरक में ले जाकर भयानक यातना देते हैं। पुराणों के अनुसार सैकड़ों नरक हैं।'गरुड़ पुराण के अनुसार 84 लाख नरक बताए गए हैं किंतु 21 नरक मुख्य माने गए हैं।

नित्य पितर अमर होते हैं, इसलिए इन्हें देव भी कहा जाता है। नित्य पितरों में यम प्रथम पितर हैं। वे मृत प्राणियों के मार्गदर्शक हैं और उनके कर्मानुसार उनकी व्यवस्था करते हैं। कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी यानी दीपावली से एक दिन पूर्व यमराज को दीपदान कर तथा अन्य पर्वो पर उनका पूजन कर मनुष्य उनकी प्रसन्नता और कृपा प्राप्त करते हैं। यमराज जीवों से सदा शुभ कर्म की आशा करते हैं। पापियों को दंड देकर पाप कर्म से उन्हें हटाकर शुभ कर्म के लिए प्रेरित करना यमराज का मुख्य कर्म है।

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