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धर्म एवं दर्शन >> हमारे पूज्य देवी-देवता

हमारे पूज्य देवी-देवता

स्वामी अवधेशानन्द गिरि

प्रकाशक : मनोज पब्लिकेशन प्रकाशित वर्ष : 2013
पृष्ठ :207
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 8953
आईएसबीएन :9788131010860

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’देवता’ का अर्थ दिव्य गुणों से संपन्न महान व्यक्तित्वों से है। जो सदा, बिना किसी अपेक्षा के सभी को देता है, उसे भी ’देवता’ कहा जाता है...

 

चित्रगुप्त

भगवान सूर्य के पुत्र और यमुना जी के भाई यमराज दक्षिण दिशा के लोकपाल हैं। यमराज सब जीवों के शुभाशुभ कर्मों के निर्णायक हैं। 84 लाख योनियों में उत्पन्न असंख्य प्राणियों के शुभाशुभ कर्मों का हिसाब-किताब रखने के कारण अकेले यमराज परेशान थे। अतः उन्होंने सृष्टिकर्ता ब्रह्मा जी को अपनी परेशानी बताई। ब्रह्मा जी ने धर्मराज की परेशानी दूर करने के लिए 11,000 वर्ष तक एकाग्रचित्त होकर नेत्र बंद करके विचार किया।

जब वे विचारमग्न थे, तभी उनकी काया से विचित्र वर्ण का एक पुरुष उत्पन्न हुआ। उसके एक हाथ में कमल और दूसरे हाथ में दवात थी। ध्यान भंग होने पर ब्रह्मा जी ने जब नेत्र खोले तो वह पुरुष ब्रह्मा जी को प्रणाम करके बोला, "हे पिता जी! मेरा नाम क्या है? मैं कौन सा कार्य करूं? किस स्थान पर रहूं? मुझे आप आज्ञा प्रदान करें।"

ब्रह्मा जी बोले, "हे पुत्र! तुम मेरी काया से उत्पन्न हुए हो, इसलिए तुम कायस्थ हुए। तुम्हारा विचित्र वर्ण है, अतः यथा नाम तथा गुण के अनुसार तुम्हारा नाम चित्रगुप्त है। तुम प्राणियों के शुभाशुभ कार्यों को लिखने का कार्य करो और यमराज के मंत्री बनकर यमपुरी में निवास करो।'' ब्रह्मा जी के आदेश को शिरोधार्य कर चित्रगुप्त यमपुरी में जाकर रहने लगे। तब से वे यमराज के कार्य में सहयोग करते आ रहे हैं। प्राणियों के शुभाशुभ कर्मों का विवरण गुप्त रखने के कारण भी वे 'चित्रगुप्त' के नाम से विख्यात हैं।

‘गरुड़ पुराण के अनुसार यमलोक में याम्य और नैऋत्य के बीच वैवस्वत नामक पुर है जो 4000 कोस में बसा और ऊंचे परकोटे से घिरा है। यह इतना मजबूत है कि उसे सुर-असुर भी नहीं तोड़ सकते। उस पुर में चित्रगुप्त का भवन है जो 100 कोस लंबा-चौड़ा है। उस भवन के अंदर सभा में बैठकर चित्रगुप्त मनुष्यों के शुभाशुभ कर्मों को लिखते हैं और उनकी आयु की गणना करते हैं। असंख्य जीवों के शुभाशुभ कर्मों की गणना करने में वे कभी भूल नहीं करते। उनकी आज्ञा से जीव अपने शुभाशुभ कर्मों का फल भोगते हैं।

‘पद्म पुराण' के अनुसार चित्रगुप्त की दो पत्नियां हैं-एक, दक्षिणा नंदिनी और दूसरी, एरावती शोभावती। नंदिनी से भानु, विभानु, विश्वभानु और वीर्यभानु नामक चार पुत्र उत्पन्न हुए थे। फिर भानु से माथुर, विभानु से भटनागर, विश्वभानु से श्रीवास्तव और वीर्यभानु से सक्सेना नामक पुत्र उत्पन्न हुए थे। वर्तमान समय में माथुर, भटनागर, श्रीवास्तव और सक्सेना उन्हीं चारों के वंशज हैं। चित्रगुप्त की दूसरी पत्नी एरावती शोभावती से आठ पुत्र उत्पन्न हुए - सूर्यध्वजा, अंबष्ट, निगम, कुलश्रेष्ठ आदि। चित्रगुप्त के पुत्रों के इष्ट देवता भगवती दुर्गा, जयंती, लक्ष्मी एवं शाकुंभरी हैं।

चित्रगुप्त पहले प्राणी हैं जिन्होंने अक्षर दिए। चित्रगुप्त देवता हैं। हिंदू धर्म के लोग इनकी उपासना करते हैं और ॐ नमो चित्रगुप्ताय नम: बोलकर उनको तर्पण (जल-दान) करते हैं। हिंदू धर्म के अंतर्गत कायस्थ जाति के लोग चित्रगुप्त को अपना मूल पूर्वज मानते हैं और अपने को उनका वंशज। इसलिए चित्रगुप्त कायस्थ जाति वालों के विशेष आराध्य हैं। कांचीपुरम स्थित चित्रगुप्त का मंदिर विश्वविख्यात है।


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