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धर्म एवं दर्शन >> हमारे पूज्य देवी-देवता

हमारे पूज्य देवी-देवता

स्वामी अवधेशानन्द गिरि

प्रकाशक : मनोज पब्लिकेशन प्रकाशित वर्ष : 2013
पृष्ठ :207
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 8953
आईएसबीएन :9788131010860

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’देवता’ का अर्थ दिव्य गुणों से संपन्न महान व्यक्तित्वों से है। जो सदा, बिना किसी अपेक्षा के सभी को देता है, उसे भी ’देवता’ कहा जाता है...

ब्रह्मचारिणी

मां दुर्गा की नव शक्तियों का दूसरा स्वरूप 'ब्रह्मचारिणी' का है। यहां ‘ब्रह्म' शब्द का अर्थ तपस्या है-ब्रह्मचारिणी अर्थात तप का आचरण करने वाली। ब्रह्मचारिणी देवी का स्वरूप पूर्ण ज्योतिर्मय एवं अत्यंत भव्य है। उनके दाएं हाथ में जप की माला एवं बाएं हाथ में कमंडल रहता है।

अपने पूर्वजन्म में जब वे हिमालय के घर पुत्री के रूप में उत्पन्न हुई थीं, तब नारद के उपदेश से उन्होंने भगवान शंकर को प्राप्त करने के लिए अत्यंत कठिन तपस्या की थी। इसी दुष्कर तपस्या के कारण उन्हें तपश्चारिणी अर्थात ब्रह्मचारिणी नाम से अभिहित किया गया। उन्होंने एक हजार वर्ष तक केवल फल खाकर व्यतीत किए थे। सौ वर्षों तक केवल शाक पर निर्वाह किया था। कुछ दिनों तक कठिन उपवास रखते हुए खुले आकाश के नीचे वर्षा और धूप के भयावह कष्ट सहे। इस कठिन तपस्या के पश्चात तीन हजार वर्षों तक केवल जमीन पर टूटकर गिरे हुए बेलपत्रों को खाकर वह अहर्निश भगवान शंकर की आराधना करती रहीं। इसके बाद उन्होंने सूखे बेलपत्रों को भी खाना छोड़ दिया। कई हजार वर्षों तक वह निर्जल और निराहार तपस्या करती रहीं। पत्तों को भी खाना छोड़ देने के कारण उनका एक नाम 'अपर्णा' भी पड़ गया था।

कई हजार वर्षों की इस कठिन तपस्या के कारण ब्रह्मचारिणी देवी का वह पूर्वजन्म का शरीर एकदम क्षीण हो उठा। वह अत्यंत कृशकाय हो गई थीं। उनकी यह दशा देखकर उनकी माता मैना अत्यंत दुखी हो उठीं। उन्होंने कठिन तपस्या से विरत करने के लिए उन्हें आवाज दी, "उमा, अरे नहीं, ओ नहीं।" तब से देवी ब्रह्मचारिणी का पूर्वजन्म का एक नाम 'उमा' पड़ गया था। उनकी उस तपस्या से तीनों लोकों में हाहाकार मच गया था।

देवता, ऋषि, सिद्धगण और मुनि-सभी ब्रह्मचारिणी देवी की उस तपस्या को अभूतपूर्व पुण्यकृत बताते हुए उनकी सराहना करने लगे। अंत में पितामह ब्रह्मा ने आकाशवाणी द्वारा उन्हें संबोधित करते हुए प्रसन्न स्वरों में कहा, “हे देवी! आज तक किसी ने ऐसी कठोर तपस्या नहीं की थी। ऐसी तपस्या तुम्हीं से संभव थी। तुम्हारे इस अलौकिक कृत्य की चतुर्दिक् सराहना हो रही है। तुम्हारी मनोकामना सर्वतोभावेन पूर्ण होगी। भगवान चंद्रमौलि शिवजी तुम्हें पति के रूप में प्राप्त होंगे। अब तुम तपस्या से विरत होकर घर लौट जाओ। तुम्हारे पिता शीघ्र ही तुम्हें बुलाने आ रहे हैं।"

मां दुर्गा का दूसरा स्वरूप भक्तों और सिद्धों को अनंत फल देने वाला है। उनकी उपासना से मनुष्य में तप, त्याग, वैराग्य, सदाचार और संयम की वृद्धि होती है। जीवन के कठिन संघर्षों में भी उसका मन कर्तव्य-पथ से विचलित नहीं होता। मां ब्रह्मचारिणी देवी की कृपा से उसे सर्वत्र सिद्धि और विजय की प्राप्ति होती है। दुर्गा पूजा के दूसरे दिन इसी स्वरूप की उपासना की जाती है। इस दिन साधक का मन स्वाधिष्ठान चक्र में स्थित होता है। इस चक्र में अवस्थित मन वाला योगी उनकी कृपा और भक्ति प्राप्त करता है।

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