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गीता प्रेस, गोरखपुर >> परम साधन - भाग 1

परम साधन - भाग 1

जयदयाल गोयन्दका

प्रकाशक : गीताप्रेस गोरखपुर प्रकाशित वर्ष : 2005
पृष्ठ :187
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 899
आईएसबीएन :81-293-0700-6

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इस पुस्तक में शारीरिक, बौद्धिक, भौतिक, मानसिक, व्यावहारिक, समाजिक, नैतिक धार्मिक और आध्यात्मिक सब प्रकार की उन्नति का विवेचन किया गया है।

Param Sadhan Bhag-1-A Hindi Book by Jaydayal Goyandaka - परम साधन भाग-1 - जयदयाल गोयन्दका

प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश

नम्र निवेदन

समय-समय पर ‘कल्याण’ में जो मेरे लेख प्रकाशित होते हैं, उन्ही में से 26वें और 27वें वर्ष में आये हुए अधिकांश लेखों का संग्रह करके कई भाइयों का आग्रह होने के कारण यह पुस्तक प्रकाशित की जा रही है। इसमें शारीरिक, भौतिक, मानसिक, बौद्धिक, व्यावहारिक, सामाजिक, नैतिक, धार्मिक और आध्यात्मिक आदि सब प्रकार की उन्नति का विवेचन किया गया है, जो कि सभी के लिये लाभदायक है। इसके सिवा, भगवत्प्राप्ति में मनुष्य का अधिकार बतलाते हुए सत्यपालन, निष्काम कर्म, ज्ञान, वैराग्य सदाचार, बालकों और स्त्रियों के लिए कर्तव्य-शिक्षा और देश की उन्नति आदि सर्वसाधारण के लिए उपयोगी विषयों का भी प्रतिपादन किया गया है। साथ ही, शिक्षाप्रद कथा-कहानी भी दी गयी है एवं भजन-ध्यान रूप भगवद्भक्ति का विषय तो इसमें बहुत विस्तार से दिया ही गया है; समय की अमोलकता, साधन के लिए चेतावनी, सत्संग और महापुरुषों का प्रभाव तथा गोपी-प्रेम का रहस्य भी बतलाया गया है और गीता और गीता-रामायण की महत्ता एवं इनके मुख्य-मुख्य उपयोगी प्रसंगों का संकलन भी किया गया है।

 इन लेखों की बातों को यदि पाठकगण काम में लावें तो उनका कल्याण हो सकता है और मैं काम में लाऊँ तो मेरा कल्याण हो सकता है; क्योंकि ये ऋषि, महात्मा, शास्त्र और भगवान् के वचनों के आधार पर लिखे गये हैं। इनमें ऐसी-ऐसी सुगम बातें हैं, जिनको बिना पढ़े-लिखे साधारण पुरुष और स्त्री-बच्चे कामों में ला सकते हैं।
इनमें जो त्रुटियाँ रही हों, उनके लिए विज्ञजन क्षमा करें और कृपापूर्वक मुझे सूचित करें।
विनीत
जयदयाल गोयन्दका


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