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बहुरूपिया

सुरेन्द्र मोहन पाठक

प्रकाशक : राजा पॉकेट बुक्स प्रकाशित वर्ष : 2013
पृष्ठ :352
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 9046
आईएसबीएन :9788192792576

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बहुरूपिया...

Kyon ? - A Hindi Book by Kishanlal Sharma

प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश

वो मुर्गाबी थी।
जो खुद ही मेरे सिर पर आ कर बैठ गयी थी।
इसलिये युअर्स ट्रूली को उस ‘सैंस आफ अचीवमेंट’ का अहसास नहीं हो रहा था जिसका कि मैं आदी था।

जनवरी का महीना था और सांझ ढ़ले से वो भगवान दास रोड वाले मेरे नये फ्लैट पर मेरे साथ थी। उस वक्त ग्यारह बजने को थे और मैं समझता था कि सत्संग काफी हो गया था, पिकनिक काफी से ज्यादा हो गयी थी, लिहाजा अब मेरा जेहन उसको रुखसत करने की कोई तरकीब सोचने में मशगूल था-कोई ऐसी तरकीब जिसके तहत मुझे उसको रुखसत करना न पड़ता, वो खुद ही रुखसत हो जाती।

बाइज्जत। बिना कोई ऑफेंस फील किये।
वैसे ऐन उलट भी होता तो मुझे कोई एतराज नहीं था।
पांच घंटे के मुतवातर मौजमेले के बाद, फुल ट्रीटमेंट के बाद, काहे को होता भला !

छः महीने से मैं उससे वाकिफ था और उस दौरान उसे लाइन मारने का कोई मौका मैंने नहीं छोड़ा था लेकिन नाउम्मीदी ही हाथ लगी थी, आंखों का मिकनातीसी सुरमा भी उस बार काम नहीं आया था, कच्चे धागे से बंधे सरकार नहीं चले आये थे।

और आज जब ऐसा हुआ था तो कच्चे धागे की भी जरूरत नहीं पड़ी थी। जैसा कि मैंने पहले अर्ज किया, मुर्गाबी खुद ही मेरे सिर पर आ बैठी थी। अब हाजिर को हुज्जत कौन करता है, दान की बछिया के दांत कौन गिनता है !

लेकिन ये बात रह रह कर मेरे जेहन में कुनमुना रही थी कि ऐसा हुआ तो क्योंकर हुआ ! कोई वजह तो मेरी समझ में न आयी लेकिन यूअर्स ट्रूली का जाती तजुर्बा है कि जिस बात का कोई मतलब न हो, उसका जरूर कोई मतलब होता है।

पांच घंटे की लम्बी तफरीह से मैं राजी था, संतुष्ट था, तृप्त था और अब तफरीह को फुलस्टाप लगाने का ख्वाहिशमंद था-बावजूद किसी गूढ़ज्ञानी महानुभाव के कथन के कि ‘सैक्स इज नैवर एनफ’। इस संदर्भ में खाकसार अपनी जाती राय ये जोड़ना चाहता है कि इस फानी दुनिया में सैक्स से बेहतर कुछ हो सकता है, सैक्स से बद्तर कुछ हो सकता है लेकिन सैक्स जैसा कुछ नहीं हो सकता।

दूसरे, आप के खादिम के साथ कुछ अच्छी बीते तो उसे दहशत होने लगती है कि पता नहीं आगे क्या बुरा होने वाला था जिसकी कि वो भूमिका थी !

तीसरे, आदमी का बच्चा प्रलोभन से नहीं बच सकता क्योंकि वो पूरा खयाल रखता है कि प्रलोभन उससे बचके न निकल जाये।
इसीलिये गुजश्ता पांच घंटों से वो मेरे पहलू में थी।

साहबान, मुझे उम्मीद ही नहीं, यकीन है कि इतने से ही आपको अहसास हो गया होगा कि सुधीर कोहली, दि ओनली वन, एक बार फिर आप से मुखातिब है। बाज लोग मुझे ‘लक्की बास्टर्ड’ भी कहते हैं-कितनी ही बार मैं खुद भी अपने को इसी अलंकार से नवाज कर खुद अपनी पीठ थपथपाता हूं-लेकिन कोसने के तौर पर नहीं, गाली के तौर पर नहीं, तारीफ के तौर पर कहते हैं, अलबत्ता ये तफ्तीश का मुद्दा है कि कहते वक्त उनका जोर ‘लक्की’ पर ज्यादा होता है या ‘बास्टर्ड’ पर। बहरहाल आपके खादिम को इस अलंकरण से कोई एतराज नहीं क्योंकि किसी भी वजह से सही, नाम तो है न सुधीर कोहली का दिल्ली शहर में और आसपास चालीस कोस तक- ‘बद्नाम भी होंगे तो क्या नाम न होगा’ के अंदाज से !

जो शोलाबदन खातून उस वक्त मेरी शरीकेफ्लैट थी, जो मेरे साथ हमबिस्तर थी और ड्रिंक शेयर कर रही थी-और भी पता नहीं क्या कुछ शेयर कर रही थी, कर चुकी थी, अभी आगे करना चाहती थी-उसका नाम अंजना रांका था और मेरे और उसके उस घड़ी के साथ की अहमतरीन वजह यही थी कि खाकसार की पसंद की हर चीज उसमें थी। लम्बा कद। छरहरा बदन। तनी हुई सुडौल भरपूर छातियां-जो ब्रा के सहारे की कतई मोहताज नहीं थीं-पतली कमर। भारी नितम्ब। लम्बे, सुडौल, गोरे चिट्टे हाथ पांव। खूबसूरत नयननक्श। रेशम से मुलायम, खुले, काले बाल।

एण्ड वाट नाट !
कोई खामी थी तो बस यही थी कि शिकारी ने शिकार का सुख नहीं पाया था, शिकार खुद ही शिकारी के हवाले हो गया था।
‘‘वाह !’’-एकाएक मेरी छाती पर से सिर उठा कर वो बोली-‘‘मजा उग गया।’’
‘‘पक्की बात?’’-मैं बोला।
‘‘हां।’’
‘‘दैट्स गुड न्यूज !’’
‘‘आफ कोर्स इट इज।’’
‘‘तो फिर छुट्टी करें ?’’
‘‘क्या !’’
‘‘शैल वुई काल इट ए डे ?’’
‘‘अरे, क्या कह रहे हो ?’’
‘‘तुमने बोला न, मजा आ गया। यानी कि मिशन अकम्पलिश्ड। तो फिर रात खोटी करने का क्या फायदा ?’’
‘‘क्या ! अरे, तुम पागल तो नहीं हो ?’’
‘‘हूं। तभी तो तुम्हारे साथ हूं।’’
‘‘क-क्या बोला ?’’
‘‘तुम्हारा पागल ! दीवाना ! शैदाई !’’
‘‘ओह !’’
‘‘तुमने क्या समझा था ?’’
‘‘मैंने ! मैंने तो...आई विल हैव अनदर ड्रिंक।’’
‘‘अभी हुक्म की तामील होती है, मालिका आलिया। अभी ड्रिंक पेश होता है। लेकिन लेटे लेटे तो ड्रिंक नहीं बनाया जा सकता न ! न सर्व किया जा सकता है ! नो ?’’
‘‘यस।’’
‘‘तो फिर मेरी छाती पर से उठो।’’
‘‘ओह !’’
उसने परे करवट बदली।
मैंने उठ कर दो ड्रिंक्स तैयार किये।
‘‘रिफ्रेशंड चियर्स !’’-एक उसे सौंपता मैं बोला।
‘‘चियर्स !’’-वो उत्साह से बोली-‘‘एण्ड मैनी हैपी रिटर्न्स आफ दि डे।’’
‘‘एण्ड नाइट !’’
‘‘आमीन !’’-उसने विस्की का एक घूंट हलक से उतारा और होंठ चटकाये-‘‘मजा आ गया !’’

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