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मिठो पाणी खारो पाणी

जया जादवानी

प्रकाशक : भारतीय ज्ञानपीठ प्रकाशित वर्ष : 2013
पृष्ठ :269
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 9047
आईएसबीएन :9789326351409

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मिठो पाणी खारो पाणी...

Mitho Paani Khaaro Paani - A Hindi Book by Jaya Jadwani

प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश

प्रस्तुत उपन्यास ‘मिठो पाणी खारो पाणी’ सिन्ध के पाँच हज़ार साल के इतिहास को छोटे-छोटे टुकड़ों में सँजोकर उत्तर- आधुनिक पैश्टिच शिल्प में लिखा गया है-जहाँ इतिहास, समाजशास्त्र, मनोविज्ञान, सांस्कृतिक इतिहास आदि विभिन्न विधाओं की आवाजाही एवं अन्तर सम्बद्धता बनी रहती है। पोस्ट माडर्निस्ट इंटरटेक्स्चुअलिटी की तरह इसकी यही विशेषता इसे हिन्दी भाषा में उत्तर-हिस्टयोग्राफिक आधुनिक उपन्यासों की श्रेणी का मेटाफिक्शन की मान्यता प्रदान करता है। इसकी यही विशेषता एवं शक्ति इतिहास में जाकर अपने समय एवं सत्ता को न सिर्फ ललकारती है वरन उसे मुठभेड़ की चुनौती भी पेश करती है।

मिठो पानी ‘सिन्धु नदी’ से खारो पानी ‘अरब सागर’ तक की यह यात्रा एक दिलचस्प भौगोलिक यात्रा तो है ही, एक पूरी संस्कृति और सभ्यता को दर्शाने वाली आन्तरिक यात्रा भी है। यह कृति इस पूरी सभ्यता की कई सहस्राब्दियों के जन-इतिहास एवं लोक-चेतना को रेखांकित करती हुई एक अविरल हिन्दुस्तानी सभ्यता एवं संस्कृति की समीक्षा के साथ-साथ इसे एक नया अर्थ एवं आयाम देती है।

जया जादवानी ने सिन्धु नदी को उसकी सम्पूर्ण ऐतिहासिकता, मिथ और लोक-चेतना में व्याप्त उसके सम्पूर्ण सन्दर्भों सहित नायकत्व प्रदान किया है।

जयाजादवानी

जन्म - 1 मई, 1959, कोतमा, जिला शहडोल (म.प्र.)।
शिक्षा– एम.ए. (हिन्दी) और (मनोविज्ञान)।
जीवन के रहस्यों और दुर्लभ पुस्तकों का अध्ययन। यायावरी दर्शन और मनोविज्ञान में विशेष रुचि।

प्रकाशित कृतियाँ : ‘मैं शब्द हूँ’, ‘अनन्त सम्भावनाओं के बाद भी’, ‘उठता है कोई एक मुट्ठी ऐश्वर्य’ (कविता-संग्रह), ‘मुझे ही होना है बार-बार’, ‘अन्दर के पानियों में कोई सपना काँपता है’, ‘उससे पूछो’, ‘मैं अपनी मिट्टी में खड़ी हूँ काँधे पे अपना हल लिये’ (कहानी-संग्रह), ‘तत्त्वमसि’, ‘कुछ न कुछ छूट जाता है’ (उपन्यास)।’ अन्दर के पानियों में कोई सपना काँपता है’ पर इंडियन क्लासिकल के अन्तर्गत एक टेलीफ़िल्म का निर्माण भी।

अनेक रचनाओं का अँग्रेजी, उर्दू पंजाबी, उड़िया, अरबी, सिन्धी, मराठी और बांग्ला भाषाओं में अनुवाद।
पुरस्कार/सम्मान -‘मुक्तिबोध सम्मान’ तथा कहानियों पर गोल्ड मैडल।


पुस्तक से

‘‘आपसे बात करनी है...’’ अँग्रेज़ी भाषा में बहुत आत्मीय स्वर था।
‘‘क्यों ?’’
‘‘भीतरी ज़िन्दगियों पर शोध करने का धन्धा है मेरा...सर्च ऐंड रिसर्च !’’
‘‘सच ?’’
‘‘आपका आज तक का लिखा सब पढ़ा है मैंने ?’’
‘‘अच्छा ? लेकिन मैं आसानी से हैरान नहीं होती !’’

‘‘और ऐसा जान कर मेरे कान पर जूँ भी नहीं रेंगती।’’ अब ठेठ हिन्दी में कहा गया, ‘‘मेरी पहली भाषा हिन्दी है, मगर मेरा जो परिवेश है उसमें अँग्रेज़ी ही चलती है...उसी का अभ्यास हो गया है...’’

‘‘क्या तुम्हारे पास मेरी सब किताबें हैं ?’’
‘‘एक नज़र सब पर डाल कर नदी में बहा दी हैं सारी किताबें...’’
‘‘ठीक किया।’’
‘‘शुक्र है, आप हैरान नहीं हुईं !’’
‘‘शैतान !’’
‘‘सिर्फ आपकी किताबें नहीं, सबकी किताबें...वो सब, जो आज तक के श्रेष्ठतम लोगों द्वारा कही या लिखी गयी थीं...सब नदी में बहा दीं...’’
‘‘अब क्या रह गया ?’’
‘‘आपसे वह सब पूछना है, जो आपने नहीं लिखा है...’’
‘‘और ?’’
‘‘जो आपने नहीं जिया है...’’
‘‘और ?’’
‘‘और...जिसका जवाब आपके पास नहीं है...’’ कुछ देर के लिए दोनों तरफ़ सन्नाटा छा गया।
‘‘और वह सब जानना है जिसे आप जानना चाहते-चाहते थक गयी हैं...और मैं भी...’’
दोनों तरफ सिर्फ साँसों की शान्त आवाज़ें आती-जाती रहीं।
‘‘कुछ कहिए...या फोन बन्द करूँ ?’’
‘‘हाँ...बन्द कर दो...कल बात करते हैं...यह मेरे सोने का वक़्त है और सोते समय मैं शब्दों की रूह तक में नहीं रह जाती...’’

‘‘...और कल आप सच में मुझसे बात करेंगी ?’’
‘‘अब हम दोनों का एक-दूसरे से बच पाना असम्भव है। पहचान लिया मैंने तुम्हें ! अब बच कर दिखा दो तो जानूँ!’’
‘‘कौन हूँ मैं...कौन हैं आप ?’’
‘‘सो जाओ...गुडनाइट !’’
‘‘इस रात को यह रोशनी मुबारक !’’

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