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शरीर और तंत्र - तंत्र सूत्र भाग 2

ओशो

प्रकाशक : हिन्द पॉकेट बुक्स प्रकाशित वर्ष : 2011
पृष्ठ :326
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 9054
आईएसबीएन :9788121613736

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शरीर और तंत्र - तंत्र सूत्र भाग 2...

Sharir Aur Tantra - Tantra Sutra Vol.2 - A Hindi Book by Osho

प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश

‘‘संसार यहां है और निर्वाण भी यहां है।
संसार निकट है और निर्वाण भी निकट है,
निर्वाण के लिए तुम्हें भीतर जाना होगा,
संसार के लिए विषयों से बाहर जाना होगा।’’

प्रस्तुत पुस्तक विज्ञान भैरव तंत्र में शिव द्वारा पार्वती को आत्म-रूपांतरण के लिए बताई एक सौ बारह विधियों में से पच्चीस से सैंतालीसवीं विधियों पर ओशो द्वारा दिए गए प्रवचनों को समाहित करती है।

इस पुस्तक में उल्लिखित कुछ विधियां :
• कामना का साक्षात्कार करने की विधि
• किसी विषय को अखंड की भांति देखना: एक गुह्य विधि
• ध्वनि को ध्यान बना लेने की अनेक विधियां

भूमिका
संसार और निर्वाण, दोनों यहीं

हम अपनी सतह पर जीते हैं-किनारे-किनारे, सीमा पर। इंद्रियां महज सीमा पर हैं; और तुम्हारी चेतना गहरे केंद्र पर है। और हम इंद्रियों में जीते हैं। वह स्वाभाविक है, लेकिन वहां जीवन का परम फूल नहीं खिलता है; वह तो उसका आरंभ भर है।

और जब हम इंद्रियों में जीते हैं तो हम बुनियादी तौर पर विषयों में अटके रहते हैं; क्योंकि विषय-भोग के बिना इंद्रियां अप्रासंगिक हैं, व्यर्थ हैं। उदाहरण के लिए, आंखें व्यर्थ हैं अगर देखने को कुछ न हो, कान व्यर्थ हैं अगर सुनने को कुछ न हो और हाथ व्यर्थ है अगर छूने को कुछ न हो। हम इंद्रियों के तल पर जीते हैं, इसलिए हमें विषयों में जीना पड़ता है। इंद्रियां हमारे होने की सीमा पर हैं, हमारे शरीर में हैं। और विषय तो सीमा पर भी नहीं हैं; वे सीमा के भी पार हैं।

इसलिए इन विधियों में प्रवेश के पहले तीन बातें समझ लेने जैसी हैं। एक कि चेतना केंद्र पर है। दूसरी कि जिनके द्वारा चेतना बाहर जाती है वे इंद्रियां सीमा पर हैं। और तीसरी कि संसार के विषय, जिनकी ओर चेतना इंद्रियों के माध्यम से गतिमान होती है, सीमा के भी पार है। इन बातों को साफ-साफ समझने की कोशिश करो; क्योंकि तब ये विधियां सरल हो जाएंगी।

इस बात को दूसरी दिशा से समझो। एक कि इंद्रियां बीच में हैं। उनके एक तरफ चेतना है और दूसरी तरफ विषयों का संसार है। और इंद्रियां ठीक बीच में हैं, मध्य में हैं। इंद्रियों से तुम दोनों ओर यात्रा कर सकते हो। वहां से विषयों की ओर जा सकते हो और वहां से केंद्र की यात्रा भी कर सकते हो। और दोनों तरफ की दूरियां समान हैं। इंद्रियों से दोनों ओर द्वार खुलते हैं; वहां से चाहे तुम विषयों की तरफ जाओ या केंद्र की तरफ जाओ।

तुम इंद्रियों में हो। इसीलिए प्रसिद्ध झेन गुरु बोकाजू ने कहा कि निर्वाण और संसार समान दूरी पर हैं। यह मत सोचो कि निर्वाण बहुत दूर है। संसार और निर्वाण, यह लोक और वह लोक, दोनों समान दूरी पर हैं।

इस कथन ने बहुत विभ्रम पैदा किया; क्योंकि हम समझते हैं कि निर्वाण बहुत-बहुत दूर है, मोक्ष या प्रभु का राज्य बड़ी दूरी पर है और हम समझते हैं कि संसार बहुत निकट है, हाथ के पास है, यहीं है। लेकिन बोकोजू कहता है-और वह सही कहता है-कि दोनों की दूरी एक ही है।

संसार यहां है और निर्वाण भी यहां है। संसार निकट है और निर्वाण भी निकट है निर्वाण के लिए तुम्हें भीतर जाना होगा; संसार के लिए, विषयों के लिए बाहर जाना होगा। लेकिन दूरी समान है। मेरी आंखों से मेरा केंद्र उतनी ही दूरी पर है जितनी दूरी पर तुम हो। मैं बाहर जाकर तुम्हें देख सकता हूं और भीतर जाकर अपने को देख सकता हूं। और हम इंद्रियों के द्वार पर हैं।

- ओशो

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