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उपन्यास >> बेताल पचीसी

बेताल पचीसी

श्रीप्रसाद

प्रकाशक : राधाकृष्ण प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2004
पृष्ठ :94
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 9223
आईएसबीएन :817119978X

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बेताल पचीसी...

Betal Pachisi - A Hindi Book by Shri Prasad

प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश

बेताल पचीसी एक बार वसन्त ऋतु में राजा अपनी तीनों रानियों के साथ बाग में गया। बाग में फूल खिल रहे थे और कोयल गीत गा रही थी। चारों ओर सुन्दरता छाई थी। बाग में राजा इन्दुलेखा के साथ खेल करने लगा, जिससे रानी के कान पर रखा कमल का फूल खिसककर गिर पड़ा। फूल के गिरने से रानी की जाँघ पर ऐसी चोट लगी कि वह बेहोश हो गई। रात के समय राजा अपनी दूसरी रानी तारावती के पास गए। चन्द्रप्रासाद नाम के जिस महल में राजा रानी के पास थे, वहाँ चन्द्रमा की किरणें खिड़की से होकर आ रही थीं। वे किरणें जब रानी के शरीर पर पड़ीं तो वह चिल्ला उठी - हाय, मैं जल गई। किरणों से उसके शरीर पर फफोले पड़ गए। अब तीसरी रानी की नींद खुली। वह राजा से मिलने के लिए महल से बाहर निकली तो उसने किसी के घर से धान के कूटने की आवाज सुनी। आवाज सुनते ही वह चिल्ला उठी - हाय, मैं मर गई और अपने हाथ मलने लगी। धान कूटने की आवाज से ही उसके हाथों में छाले पड़ गए। यह कहानी सुनाकर बेताल ने राजा से पूछा - बताइए, इनमें कौन रानी सबसे ज्यादा कोमल है ? राजा बोले - इन तीनों रानियों में सबसे कोमल वह रानी है, जिसके हाथों में धान के कूटने की आवाज मात्र से छाले पड़ गए। उसने मूसल छुआ भी नहीं, फिर भी उसकी यह हालत हुई। अन्य दोनों रानियों में तो एक की जाँघ पर फूल गिरा था और एक के शरीर पर चन्द्रमा की किरणें पड़ी थीं। इसलिए ये रानियाँ उतनी कोमल नहीं हैं। राजा का युक्तिपूर्ण उत्तर सुनकर बेताल फिर गायब हो गया और धैर्यवान राजा रात के सन्नाटे में फिर उसे खोजने चल पड़े।

- इसी पुस्तक से

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