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रहस्य-रोमांच >> गन का फैसला

गन का फैसला

वेद प्रकाश शर्मा

प्रकाशक : राजा पॉकेट बुक्स प्रकाशित वर्ष : 2015
पृष्ठ :224
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 9371
आईएसबीएन :9788184910636

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प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश

‘रेट... रेट... रेट !’

एल.एम.जी. यानी लाइट मशीन गन जबरदस्त गर्जना कर उठी। यह गन पांडे हाथ में थी, जिसने आग उगली और मकान के दरवाजे के ठीक बीच में मौजूद पुलिस वर्दीधारी चीखें मार-मारकर धराशायी हो गए, उनमें से कुछ उस दरवाजे के ऊपर गिरे थे, जो कि दुबारी में पड़ा था, शेष उछलकर दरवाजे के दूसरी तरफ। तीव्र गड़गड़ाहट और इंसानी चीखों के बाद अब सन्नाटा छा गया था।

परंतु यह सन्नाटा बहुत ही ज्यादा खतरनाक और पैना था।

दांतों पर दांत जमाए पांडे पेट के बल स्टैंड पर खड़ी गन के पीछे लेटा था। उंगली ट्रेगर पर थी, चेहरे पर पसीना उभरा हुआ था, आंखों में खूख्वार भाव थे, अजीब-सी उत्तेजना के कारण उसका जिस्म कांप रहा था। जब उसने सन्नाटा देखा तो धड़कते स्वर में गरज उठा - ‘‘आओ हरामजादो ! अब आओं, जिसने मां का दूध पिया हो। छुप क्यों गए ?’’

‘‘हमारे पास तुमसे ज्यादा हथियार हैं पांडे !’’ दूसरी तरफ से कहा गया - ‘‘तुम नहीं बच सकोगे।’’

‘‘मरने से डरता कौन है कुत्तो !’’ पांडे दहाड़ उठा - ‘‘हथियार ज्यादा जरूर होंगे, लेकिन दिल चूहों जैसे है तुम्हारे। मुझे कसम है असम आंदोलन की कि जब तक मेरे जिस्म में खून की एक भी बूंद और इस गन में एक भी गोली है, तब तक तुममें से एक को भी चिन्योटी तक नहीं पहुंचने दूंगा।’’

‘‘तुम व्यर्थ ही चिन्योटी की मदद कर रहे हो पांडे, वह हमारे आंदोलन के खिलाफ हो गया है।’’

‘‘क्या मतलब ?’’ पांडे चौंक पड़ा - ‘‘ओह समझा ! इसका मतलब यह कि विजय नाम का वह सरकारी जासूस ठीक ही कह रहा था - तुम पुलिस वाले नहीं, बल्कि विक्रम और जोरावर के आदमी हो। पुलिस की वर्दी में घेरा इसलिए डाला है, ताकि चिन्योटी और उस सरकारी जासूस को आपस में भिड़वा सको।’’

‘‘तुम समझने की कोशिश क्यों नहीं करते पांडे ?’’ दरवाजे के दूसरी तरफ से कहा गया - ‘‘विजय नामक यह जासूस हमारे आंदोलन को तोड़ने और हमारे संगठन में फूट डालने के मकसद से असम में आया है, वह हमारी ताकत कम करना चाहता है और चिन्योटी उसके जाल में फंसकर उसकी उंगलियों पर नाचने वाली कठपुतली बन गया है।’’

‘‘और तुम चिन्योटी को मारने चले आए ?’’
‘‘चिन्योटी नहीं, हमारा शिकार वह सरकारी जासूस है। तुम समझते क्यों नहीं पांडे ?’’

पांडे दांत पीसकर कह उठा - समझा गया हूं कुत्तो ! तुम्हारी साजिश का एक-एक प्वॉइंट समझ गया हूं मैं। तुम दुश्मन के खरीदे हुए गुलाम हो, चीन के इशारे पर नाच रहे हो तुम, असम को संयुक्त राज्य असम का नाम देकर भारत माता के जिस्म से उसका एक हिस्सा नोंच लेना चाहते हो। असम के जंगलों को बेच रहो हो तुम, असम के नौजवानों को पथभ्रष्ट कर रहे हो, लेकिन नहीं, जब तक असम में पांडे और चिन्योटी जैसे युवक हैं, तब तक तुम्हें तुम्हारे नापाक इरादों में कामयाब नहीं होने दिया जाएगा। कसम से, असम की सारी धरती तुम्हारी लाशों से पाट देंगे।’’

‘‘इसका मतलब यह कि तुम भी उस सरकारी जासूस की बातों में आ गए हो।’’
‘‘विदेशी कुत्तों की बातों में आने से ज्यादा बुरा काम नहीं किया है।’’

पांडे के ऐसा कहने पर दूसरी तरफ कुछ देर के लिए सन्नाटा छा गया, कदाचित वे पांडे को बरगलाना चाहते थे, किंतु असफल रहने की सूरत में उनके पास कहने के लिए कुछ नहीं बचा था, पांडे की उंगली गन के ट्रेगर पर थी। प्रत्येक क्षण पूरी सतर्कता के साथ वह दरवाजे पर नजर रखे हुए था। उस दरवाजे पर, जो कि टूट चुका था। टूटे हुए किवाड़ दुबारी के अंदर पड़े थे।

किवाडों पर पड़ीं थीं वे लाशें, जो कि गन से निकली पहली खेप का परिणाम थीं। पांडे किसी भी क्षण, खतरा उभरते ही गन का मुंह खोलने के लिए तैयार था।

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