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रहस्य-रोमांच >> महाबली टुम्बकटू, विकास दी ग्रेट

महाबली टुम्बकटू, विकास दी ग्रेट

वेद प्रकाश शर्मा

प्रकाशक : राजा पॉकेट बुक्स प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :317
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 9407
आईएसबीएन :9789332424340

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प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश

लम्बे, तगड़े और शक्तिशाली इंसान ने सिगरेट में अंतिम कश लगाया और फिर ध्यान से उस सात-मंजिली इमारत को देखा। इस समय वह उस इमारत से लगभग पचास गज दूर झाड़ियों में खड़ा हुआ था। उसके जिस्म पर एक स्याह पतलून और गर्म लम्बा ओवरकोट था। सिर पर एक अजीब-सी गोल कैप थी। हाथों पर सफेद दस्ताने चढ़े हुए थे। समय रात्रि के दो बजे का था और सर्दी नलों में जल को जमा देने वाली थी। आसपास गहरी निस्तब्धता का साम्राज्य था। यह सात-मंजिली इमारत राजनगर से थोड़ा अलग एकांत में थी। अतः यहां यह केवल एक ही इमारत थी।

सिग्रेट को उसने अपने अजीब से जूते तले मसला और अपनी चमकती आंखों से आसपास की स्थिति का निरीक्षण किया। ऊंची इमारत के चारों ओर ऊंची, कंटीले तारों की एक दीवार खिंची हुई थी। दूर अंधेरे में कांटों की दीवार के समीप चमकती एक सिगरेट से उसने अनुमान लगाया कि वहां कोई खड़ा है।

वह जान गया कि वहां कोई भारतीय सैनिक है।

‘‘तुम तैयार रहना।’’ एकाएक एक लम्बा, तगड़ा इंसान धीमे से फुसफुसाया।

‘‘ओके बॉस !’’ समीप की झाड़ियों से आवाज आई।

यह लम्बा-चौड़ा व्यक्ति चीनी था। यूं अधिकांश चीनी नाटे होते हैं, परंतु यह उन चीनियों में था जिन्हें चीनी होने के बाद भी लम्बे होने का सौभाग्य प्राप्त है। उसका नाम था - फूचिंग !

फूचिंग चीनी सीक्रेट सर्विस का सबसे अधिक जांबाज, चालाक, क्रूर और खतरनाक जासूस था। उसे राजनगर में एक विशेष कार्यवश भेजा गया था। चीन सरकार के लिए सबसे बड़ा सिरदर्द भारतीय सीक्रेट सर्विस का हीरा विजय था। विजय ने न जाने कितनी बार चीन सरकार की नाक के नीचे से ही चीन की नींव हिलाकर रख दी थी। चीन सरकार ने विजय पर एक भारी इनाम भी रखा था। वे विजय को विश्व का सबसे बड़ा जासूस मानते थे और भारतीय जांबाज विजय से ही वे अपने इस खूनी जासूस फूचिंग की तुलना करते थे, यानी फूचिंग चीनी विजय था। चीन सरकार को पूर्ण विश्वास था कि फूचिंग की उपस्थिति में विजय किसी भी कीमत पर चीन की धरती पर कदम नहीं रख सकता। उनकी नजरों में निश्चित रूप से फूचिंग विजय से भी कहीं अधिक खतरनाक था।

और वही चीनी विजय, यानी फूचिंग इस समय एक विशेष कार्यवश भारत में आया हुआ था। वैसे उसे विजय से न टकराने के चीन सरकार की तरफ से सख्त आदेश थे और फूचिंग इतना मूर्ख भी नहीं था कि अपना काम छोड़कर व्यर्थ में ही विजय से टकराता। उसका सिद्धांत हमेशा यह था कि कर्तव्य पर डटे रहो। भटकने वाला इंसान कभी सफल नहीं हो सकता।

चीन सरकार ने उसे जो विशेष कार्य सौंपा था, उसे सुनकर फूचिंग की खोपड़ी भी हवा में चकराने लगी थी। उसे भारत भेजा गया था तथा भारत में स्थित चीनी जासूसों का पता देते हुए कहा गया था कि जिस इमारत पर वे ले जाएं, इस इमारत से तुम्हें पूरे पांच अंडे चुराने हैं।

अंडे चुराने हैं ?

यह वाक्य ही कुछ ऐसा था कि फूचिंग उलझकर रह गया था। उसकी समझ में नहीं आया था कि ये अंडे कैसे हैं ? क्या विशेषताएं हैं उनमें ? उसने अपने चीफ से यह पूछ लिया था कि वे अंडे कैसे हैं ? तो इसके उत्तर में केवल यही कहा गया था कि अंडों में यूं तो कोई विशेषता नहीं है। वे मुर्गी के साधारण अंडे हैं। परंतु चीन के लिए अत्यधिक उपयोगी हैं। उसे यह खास हिदायत दी गई थी कि एक भी अंडा किसी भी कीमत पर टूटना नहीं चाहिए क्योंकि एक अंडे के टूटते ही चारों अंडे बेकार हो जाएंगे और काफी हानि होगी। उसे यह भी बताया गया था कि वे पांचों अंडे उसी इमारत में कहीं होंगे। भारतीय सरकार भी उन अंडों की काफी सुरक्षा कर रही है, अतः उन्हें वहां से हटाना किसी साधारण जासूस के बस का रोग नहीं था। इसलिए फूचिंग की विशेष रूप से वे अंडे चुराने हेतु चीन से भेजा गया था। उसे सख्त आदेश था कि अंडे लेकर वह तुरंत चीन के लिए रवाना हो जाए क्योंकि उसके वहां ठहरने पर अंडे खतरे में घिर सकते हैं।

फूचिंग के पूछने पर यह नहीं बताया गया था कि अंडों में विशेषता क्या है ? क्यों वे विशेष रूप से उसे अंडों की चोरी के लिए भेज रहे हैं ? भारतीय सरकार उन अंडों की इतनी अधिक सुरक्षा क्यों कर रही है ? परंतु इन बातों के जानने में फूचिंग ने व्यर्थ अपना दिमाग न खपाया। उसे तो बस अपने चीन देश से प्यार था और आंख बंद करके वह अपने देश की सेवाएं किया करता था। इस समय भी वह खतरनाक जासूस बिना उन रहस्यमय अंडों का रहस्य जाने अपने देश की सेवा हेतु उन अंडों के अत्यधिक निकट था, किंतु उसने गुप्त रूप से आज दिन में इस इलाके का निरीक्षण किया था और पाया था कि अंडों को चुराना बेहद कठिन कार्य है। भारतीय सरकार भी अंडों को बहुत अधिक महत्त्व देकर उनकी बहुत अधिक सुरक्षा कर रही थी।

परंतु इस समय चीनी जासूस फूचिंग धीमे-धीमे उस ओर रेंग रहा था जिधर तारों की दीवार के निकट उसने किसी सैनिक के सिग्रेट पीने का आभास पाया था। इस समय वह अपनी सम्पूर्ण इंद्रियों के साथ पूर्णतया सतर्क था। चारों ओर गहन निस्तब्धता और घोर अंधकार था। फिर दस मिनट पश्चात -

फूचिंग भारतीय सैनिक के अत्यधिक समीप लेटा था।

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