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यात्रा वृत्तांत >> सरे राह चलते चलते

सरे राह चलते चलते

कुसुम अंसल

प्रकाशक : राजपाल एंड सन्स प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :152
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 9467
आईएसबीएन :9789350642528

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प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश

‘‘मेरे लिए यात्रा, मेरे भीतर अनवरत चलती एक तलाश का जैसे प्रत्युत्तर है। न जाने क्यों सुदूर देश की धरती, उसकी सुनी-अनसुनी कहानियाँ, वहाँ के निवासियों के प्रति एक अपरिभाषित उत्सुकता मेरे मन में रहस्य का एक तन्तुजाल बुनती है जो मेरी चेतना पर छा कर मेरे अस्तित्व को बेचैनी से भर देता है। बहुधा कहा जाता है कि प्रसन्नता कहीं बाहर नहीं प्राप्त होती, उसका स्रोत मनुष्य के भीतर है, मनुष्य के हृदय में है, फिर भी हम प्रसन्नता को बाहर खोजते हैं - सांसारिक वस्तुओं में या अपने से दूसरे के अस्तित्व में।

सबके लिए प्रसन्नता के अर्थ भिन्न होते हैं, उसी के अनुसार हर कोई अपने जीवन में अपनी इच्छाओं और रुचियों को ढालता चला जाता है, शायद इसीलिए अनुसंधान के लिए यात्रा या यात्रा के मध्य अनुसंधान मेरा आकर्षण बन गया है।’’

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