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गजलें और शायरी >> उसी के नाम

उसी के नाम

आलोक यादव

प्रकाशक : लोकभारती प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :134
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 9503
आईएसबीएन :9789352211272

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प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश

खुशफिक्र शाइर आलोक यादव से मेरा तअल्लुक उतना ही पुराना है जितना खुद उनका गजल से ! तकरीबन तीन साल कब्ल गजल से मुताल्लिक बुनियादी मालूमात और मुनासिब मशवरों के लिए उन्हें किसी की तलाश थी ! उनकी यह तलाशो-जुस्तजू हमारे तअल्लुक का सबब बनी ! उनके पास काबिलियत भी है और सलाहियत भी, हस्सास दिल भी है और दुनिया को उसके तमाम रंगों के साथ देखने वाली नजर भी ! उनकी शायरी में खुलूसो-मोहब्बत के जज्बो, समाजी कद्रों, आला उसूलों और इंसानी रिश्तों का एहतराम भी है और जुल्म, जब्र, नाइंसाफी और इस्थ्साल के खिलाफ मोह्ज्जब एहतिजाज भी ! उनके अशआर एक तरफ उर्दू से उनके वालिहाना लगाव का ऐलान करते नजर आते हैं तो दूसरी तरफ हिंदी से उनके मजबूत रिश्ते और गहरी रगबत के गम्माज भी हैं ! अपने शेरी सफ़र के इब्तिदाई दौर ही में अगर कोई इस तरह के चंद अशआर कहने में कामियाब हो जाए तो उसे अपने शेरी मुस्तक्रबिल के ताबनाक होने की उम्मीद बाँधने में झिझक नहीं होती ! हदे-इमकान से आगे मैं जाना चाहता हूँ पर अभी ईमान आधा है, अभी लाग्जिश अधूरी है मेरे लिए हैं मुसबित ये आईनाखाने यहाँ जमीर मेरा बेनकाब रहता है खुदा करे मंजिलों की तरफ उठने वाला उनका पहला कदम ‘उसी के नाम’ खातिख्वाह पजीराई हासिल करे और उनके हौसलों के चराग कभी मद्दम न हों !

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