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मालगुडी का आदमखोर

आर. के. नारायण

प्रकाशक : राजपाल एंड सन्स प्रकाशित वर्ष : 2012
पृष्ठ :192
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 9613
आईएसबीएन :9788170288770

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प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश

‘‘गोलगप्पों की तरह चटपटा ‘मालगुडी का आदमख़ोर’ उपन्यास, कहानी लेखन के विभिन्न तत्त्वों का शानदार मिश्रण है। हास्य और गंभीरता के चरम का ऐसा मेल और कहीं भी मिलना मुश्किल है...आर. के. नारायण के लेखन की खास बात उसका सहज और स्पष्ट होना है...’’ - टाइम्स लिटरेरी सप्लिमेंट, लंदन विश्व प्रसिद्ध ‘मालगुडी की कहानियां’ की तरह ही आर. के. नारायण के इस उपन्यास की पृष्ठभूमि भी उनका प्रिय काल्पनिक शहर मालगुडी है। यहां रहने वाले नटराज की शांत ज़िंदगी में तब भूचाल आ जाता है, जब उसकी प्रिंटिंग प्रेस की ऊपरी मंज़िल पर वासु डेरा डाल लेता है।

वासु अव्वल दर्जे का गुंडा और फसादी है। उसका पेशा मरे हुए जानवरों की खाल में भूसा भर उन्हें सजावटी रूप देना है, इसलिए वह खुलेआम उनका शिकार करता है। यहां तक कि नटराज की प्यारी बिल्ली भी वासु की भेंट चढ़ जाती है और वह कुछ नहीं कर पाता। बड़े शिकार की तलाश में वासु मंदिर के हाथी पर निशाना साधने की फिराक में है। आखिरकार, नटराज भी वासु को सबक सिखाने की ठान लेता है और बड़ी होशियारी और सावधानी से एक-एक कर उसकी सभी चालों को नाकाम कर देता है।

मंदिर में नृत्य करने वाली दिलकश रंगी और नटराज का निजी सहायक शास्त्री ‘मालगुडी का आदमखोर’ को और भी रंगीन और दिलचस्प बनाते हैं। उनकी बातें और हरकतें भीतर तक गुदगुदा देती हैं।

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