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सात संत शिखर

बलदेव वंशी

प्रकाशक : राजपाल एंड सन्स प्रकाशित वर्ष : 2010
पृष्ठ :208
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 9627
आईएसबीएन :9788170288701

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प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश

इतिहास बताता है कि धार्मिक मतभेद सभ्यताओं के संघर्ष का एक बड़ा कारण रहा है। धार्मिक और सांस्कृतिक समन्वय के लिए प्रसिद्ध भारत भी मध्यकाल के आते-आते इन मदभेदों से अछूता न रह सका। धर्म का स्थान आडम्बरों ने ले लिया और सामाजिक एकता पर संकट गहराने लगा। तब देश के संत-सुधारकों ने एक मौन क्रांति का सूत्रपात किया जिसे भक्ति आंदोलन के नाम से जाना जाता है। यह भक्ति आंदोलन की ही खासियत थी कि राजघराने की मीरा से लेकर रैदास जैसे चर्मकार तक इसका हिस्सा बने।

सात संत शिखर में न केवल कबीर, गुरु नानक, नामदेव और मीरा, बल्कि रैदास, दादूदयाल और मलूकदास जैसे उन संतों के जीवन-वृत्त और सदवचनों का संकलन है जिनके विषय में आज भी हम बहुत कम जानते हैं। संतों के ये वचन आज भी प्रासंगिक हैं, क्योंकि हम आज भी मंदिर-मस्जिद के नाम पर लड़ रहे हैं। यह पुस्तक निर्गुण और सगुण दोनों ही भक्तिधाराओं के संतों के वचनों का प्रतिनिधित्व करती है।

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