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उपन्यास >> राग दरबारी

राग दरबारी

श्रीलाल शुक्ल

प्रकाशक : राजकमल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2020
पृष्ठ :335
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 9648
आईएसबीएन :9788126713967

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ड्राइवर हँसा। दुर्घटनावश एक दस साल का नंग-धडंग लड़का ट्रक से बिलकुल ही बच गया। ब-क़रीबचकर वह एक पुलिया के सहारे छिपकली-सा गिर पड़ा। ड्राइवर इससे प्रभावित नहीं हुआ। एक्सिलेटर दबाकर हँसते-हँसते वोला, “क्या बात कही है ! जरा खुलासा समझाइए।"

"कहा तो, घास खोद रहा हूं। इसी को अंग्रेजी में रिसर्च कहते हैं। परसाल एम. ए. किया था। इस साल से रिसर्च शुरू की है।"

ड्राइवर जैसे अलिफ़-लैला की कहानियाँ सुन रहा हो, मुस्कराता हुआ बोला, “और शिरिमानजी, शिवपालगंज क्या करने जा रहे हैं ?"

"वहाँ मेरे मामा रहते हैं। बीमार पड़ गया था। कुछ दिन देहात में जाकर तन्दुरुस्ती बनाऊँगा।"

इस बार ड्राइवर काफ़ी देर तक हँसता रहा। बोला, “क्या बात बनायी है शिरिमानजी ने !"
रंगनाथ ने उसकी ओर सन्देह से देखते हुए पूछा, “जी ! इसमें बात बनाने की क्या बात ?"
वह इस मासूमियत पर लोट-पोट हो गया। पहले ही की तरह हँसते हुए बोला, "क्या कहने हैं ! अच्छा जी, छोड़िए भी इस बात को। बताइए, मित्तल साहब के क्या हाल हैं ? क्या हुआ उस हवालाती के खूनवाले मामले का ?"

रंगनाथ का खून सूख गया। भर्राए गले से बोला, “अजी, मैं क्या जानूँ यह मित्तल कौन है।"

ड्राइवर की हँसी में ब्रेक लग गया। ट्रक की रफ़्तार भी कुछ कम पड़ गई। उसने रंगनाथ को एक बार गौर से देखकर पूछा, “आप मित्तल साहब को नहीं जानते ?"
"नहीं।"
"जैन साहब को ?"
"नहीं।"

ड्राइवर ने खिड़की के बाहर थूक दिया और साफ़ आवाज में सवाल किया, “आप सी.आई.डी. में काम नहीं करते ?"

रंगनाथ ने झुंझलाकर कहा, “सी.आई.डी. ? यह किस चिड़िया का नाम है ?"

ड्राइवर ने जोर से साँस छोड़ी और सामने सड़क की दशा का निरीक्षण करने लगा।

कुछ बैलगाड़ियाँ जा रही थीं। जब कहीं और जहाँ भी कहीं मौका मिले, वहाँ टाँगें फैला देनी चाहिए, इस लोकप्रिय सिद्धान्त के अनुसार गाड़ीवान वैलगाड़ियों पर लेटे हुए. थे और मुँह ढॉपकर सो रहे थे। बैल अपनी काबिलियत से नहीं, बल्कि अभ्यास के सहारे चुपचाप सड़क पर गाड़ी घसीटे लिये जा रहे थे। यह भी जनता और जनार्दनवाला मजमून था, पर रंगनाथ की हिम्मत कुछ कहने की नहीं हुई। वह सी.आई.डी. वाली बात से उखड़ गया था। ड्राइवर ने पहले वड़वाला हॉर्न वजाया, फिर एक ऐसा हॉर्न बजाया जो संगीत के आरोह-अबरोह के वावजूद बड़ा ही डरावना था, पर गाड़ियाँ अपनी राह चलती रहीं। ड्राइवर काफ़ी रफ़्तार से ट्रक चला रहा था, और बैलगाड़ियों के ऊपर से निकाल ले जानेवाला था; पर गाड़ियों के पास पहुंचते-पहुंचते उसे शायद अचानक मालूम हो गया कि वह ट्रक चला रहा है, हेलीकाप्टर नहीं। उसने एकदम से ब्रेक लगाया, पेनल से लगी हुई लकड़ी नीचे गिरा दी, गियर बदला और बैलगाड़ियों को लगभग छूता हुआ उनसे आगे निकल गया। आगे जाकर उसने घृणापूर्वक रंगनाथ से कहा, “सी.आई.डी. नहीं हो तो तुमने यह खद्दर क्यों डाँट रखा है जी ?"

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