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गीता प्रेस, गोरखपुर >> बालशिक्षा

बालशिक्षा

जयदयाल गोयन्दका

प्रकाशक : गीताप्रेस गोरखपुर प्रकाशित वर्ष : 2005
पृष्ठ :64
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 968
आईएसबीएन :00000

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प्रस्तुत है बच्चों के लिए उपयोगी बाल शिक्षा.....

Baal Shiksha-A Hindi Book by Jaydayal Goyandaka - बालशिक्षा - जयदयाल गोयन्दका

प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश

मित्रों की प्रेरणा से आज बालकों के हितार्थ उनके कर्तव्यके विषयों में कुछ लिखा जाता है। यह खयाल रखना चाहिये कि जबतक माता, पिता, आचार्य जीवित हैं या कर्तव्य और अकर्तव्यका ज्ञान नहीं है तब तक अवस्था में बड़े होनेपर भी सब बालक ही हैं। बालक-अवस्थामें विद्या पढ़ने पर विशेष ध्यान देना चाहिये, क्योंकि बड़ी अवस्था होनेपर विद्याका अभ्यास होना बहुत ही कठिन है। जो बालक बाल्यावस्थामें विद्याका अभ्यास नहीं करता है, उसको आगे जाकर सदाके लिये पछताना पड़ता है। किंतु ध्यान रखना चाहिये, बालकों के लिये लौकिक विद्याके साथ-साथ धार्मिक शिक्षाकी भी बहुत ही आवश्यकता है, धार्मिक शिक्षाके बिना मनुष्यका जीवन पशुके समान है।

 धर्मज्ञानशून्य होनेके कारण आजकल के बालक प्रायः बहुत ही स्वेच्छाचारी होने लगे हैं। वे निरंकुशता, उच्छृङ्खलता, दुर्व्यसन, झूठ, कपट, चोरी, अभिचार, आलस्य, प्रमाद आदि अनेक दोष और दुर्गुण के शिकार हो चले हैं जिससे उनके लोक-परलोक दोनों नष्ट हो रहे हैं।
 
उन्हें पाश्चात्त्य भाषा, वेश, सभ्यता अच्छे लगते हैं और ऋषियों के त्यागपूर्ण चरित्र, धर्म एवं ईश्वर में उनकी ग्लानि होने लगी है। यह सब पश्चिमीय शिक्षा और सभ्यता का प्रभाव है।

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