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ज्योतिष और संतान योग

भोजराज द्विवेदी

प्रकाशक : डायमंड पब्लिकेशन्स प्रकाशित वर्ष : 2011
पृष्ठ :176
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 9946
आईएसबीएन :9788171827848

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प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश

संसार का प्रत्ये क मनुष्य , स्त्री् पुरुष चाहे किसी भी जाति, धर्म, व संप्रदाय का क्यों् न हो ? अपना वंश आगे चलाने की प्रबल इच्छा‍ उसके हृदय में प्रतिक्षण विद्यमान रहती है। रजोदर्शन के बाद स्त्रीं–पुरुष के संसर्ग से संतान की उत्पलत्ति होती है, वंश बेल आगे बढ़ती है, परंतु कई बार प्रकृति विचित्र ढंग से इस वंश वृक्ष की जड़ को ही रोक देती है। इस पुस्तिक में इस प्रकार की सभी शंकाओं, समस्यााओं का समाधान ढूंढ़ने का प्रयास किया गया। आपकी कुंडली में कितने पुत्रों का योग है ? कितनी कन्याीएं होंगी ? प्रथम कन्या़ होगी या पुत्र ? आने वाली संतति कपूत या सपूत ? हमने प्रेक्टिकल जीवन में ऐसे अनेक प्रयोग किए हैं जब डॉक्ट रों द्वारा निराश हुए दम्पितियों को ज्योरतिषी उपाय, रत्न एवं मंत्र चिकित्साड से तेजस्वीर पुत्र संतति की प्राप्ति हुई, अतः यह पुस्तआक मानवीय सभ्ययता के लिए अमृत तुल्या औषध है।

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