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उपाधि  : स्त्री० [सं० उप-आ√धा (धारण)+कि] १. वह जो किसी दूसरे स्थान पर काम आ सके या रखा जा सके। २. दूसरे का ऐसा वेश जो किसी को धोखा देने के लिए धारण किया गया हो। छद्य-वेश। ३. वह तत्त्व जिसके कारण कोई चीज़ और की और अथवा किसी विशेष रूप में दिखाई दे। जैसे—घडे़ के भीतर होने की दशा में आकाश का परिमित दिखाई देना। ४. उत्पात। उपद्रव। ५. कर्त्तव्य का विचार। ६. महत्त्व, योग्यता, सम्मान आदि का सूचक वह पद या शब्द जो किसी नाम के साथ लगाया जाता है। पदवी। खिताब। (टाइटिल) जैसे—आज-कल लोगों को पद्य-विभूषण, भारत रत्न आदि की उपाधियाँ मिलने लगी है।
समानार्थी शब्द-  उपलब्ध नहीं
उपाधि-धारी (रिन्)  : पुं० [सं० उपाधि√धृ (धारण करना)+णिनि] वह व्यक्ति जिसे किसी प्रकार की उपाधि मिली हो।
समानार्थी शब्द-  उपलब्ध नहीं
उपाधि  : स्त्री० [सं० उप-आ√धा (धारण)+कि] १. वह जो किसी दूसरे स्थान पर काम आ सके या रखा जा सके। २. दूसरे का ऐसा वेश जो किसी को धोखा देने के लिए धारण किया गया हो। छद्य-वेश। ३. वह तत्त्व जिसके कारण कोई चीज़ और की और अथवा किसी विशेष रूप में दिखाई दे। जैसे—घडे़ के भीतर होने की दशा में आकाश का परिमित दिखाई देना। ४. उत्पात। उपद्रव। ५. कर्त्तव्य का विचार। ६. महत्त्व, योग्यता, सम्मान आदि का सूचक वह पद या शब्द जो किसी नाम के साथ लगाया जाता है। पदवी। खिताब। (टाइटिल) जैसे—आज-कल लोगों को पद्य-विभूषण, भारत रत्न आदि की उपाधियाँ मिलने लगी है।
समानार्थी शब्द-  उपलब्ध नहीं
उपाधि-धारी (रिन्)  : पुं० [सं० उपाधि√धृ (धारण करना)+णिनि] वह व्यक्ति जिसे किसी प्रकार की उपाधि मिली हो।
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