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एकाग्र  : वि० [सं० एक-अग्र, ब० स०] १. किसी एक ही वस्तु या विषय पर दत्तचित्त होकर पूरा ध्यान लगानेवाला। जैसे—एकाग्र दृष्टि। २. किसी में मिला या समाया हुआ। पुं० [सं० ] चित्त की पाँच अवस्थाओं या वृत्तियों में से एक,जिसमें चित्त निरंतर किसी एक ही बात या विषय में लगा रहता है। (योग)।
समानार्थी शब्द-  उपलब्ध नहीं
एकाग्र-चित्त  : वि० [ब० स०] (व्यक्ति) जिसका चित्त या ध्यान किसी एक बात में लगा हो। जो पूरी लगन से किसी एक ही काम या बात में लीन हो।
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एकाग्रता  : स्त्री० [सं० एकाग्र+तल्-टाप्] एकाग्र होने की अवस्था या भाव।
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एकाग्र-दृष्टि  : वि० [सं० ब० स०] जिसकी दृष्टि किसी एक ही चीज या बात पर लगी हो। जो टक लगाये हुए देख रहा हो।
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एकाग्र-भूमि  : स्त्री० [कर्म० स०] चित्त की वह अवस्था, जिसमें वह किसी एक बात पर जम या लगकर तद्रूप हो जाता है। (योग)।
समानार्थी शब्द-  उपलब्ध नहीं
 
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