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करवट  : स्त्री० [सं० करवर्त्त, प्रा० करवट्ट] १. बैठने, लेटने आदि में शरीर का वह पार्श्व या बल जिस पर शरीर का सारा भार पड़ता है। जैसे—देखें, ऊँट किस करवट बैठता है। २. सोने के समय उस हाथ का पार्श्व या बल जिसके सहारे वह उस दशा में रहता है जबकि वह चित या पट नहीं रहता। विशेष—करवट यदा या तो दाहिनी होती है यै बाईं, उल्टे या सीधे सोने में इसका प्रयोग नहीं होता। मुहा०—करवट तक न लेना=किसी को आवश्यकता की पूर्ति, कर्त्तव्य के पालन आदि के लिए कुछ भी प्रयत्न न करना। जैसे—हम महीनों एक काम के लिए उनके यहाँ दौड़े; पर उन्होंने कभी करवट तक न ली। करवट बदलना=(क) लेटे या सोये रहने की दशा में दाहिने बल से बाएँ या प्रथिकमात् घूमना। एक पार्श्व या बल से दूसरे पार्श्व या बल होना। (ख) लाक्षणिक अर्थ में, एक दल या पक्ष छोड़ कर दूसरे दल या पक्ष में जाना या होना। (ग) जिस स्थिति में हो, उससे हटकर दूसरी स्थिति में होनाय़। पलटा खाना। जैसे—इतने दिनों बाद उनके भाग्य ने करवट बदली है। (किसी चीज का) करवट लेना=सीधे खड़े या स्थित न रह कर किसी ओर गिरना, झुकना या लुढ़कना। जैसे—जहाज या नाव का करवट लेना। (सोने के समय) करवट बदलना=चिन्ता, विकलता आदि के कारण, नींद नहाने पर बाद पहलू या पार्श्व बदलना। करवटों में रात काटना=चिंता, व्याकुल आदि के कारण जाग कर रात बिताना। पुं० [सं० करपत्र, प्रा० करवत्त] बड़ी लड़कियाँ चीरने का एक प्रकार का बड़ा आरा। मुहा०—करवट लेना=उक्त प्रकार के आरे के नीचे लेटकर सिर कटाना या प्राण देना। पुं० [देश०] एक प्रकार का बड़ा वृक्ष जिसका गोंद जहरीला होता है। जसूँद।
समानार्थी शब्द-  उपलब्ध नहीं
 
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