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कलई  : स्त्री० [अ०] १. सफेद रंग का प्रसिद्घ खनिज पदार्थ। राँगा। २. पीतल आदि के बरतनों को उजला बनाने तथा चमकाने के लिए उक्त खनिज पदार्थ का प्रस्तुत किया हुआ चूर्ण। ३. उक्त चूर्ण से बरतनों आदि पर किया जानेवाला पतला या हलका लेप। ४. चित्रकला में ऐसा चूर्ण या बुकनी जिसे चिपकाने या लगाने से वह चाँदी की तरह चमकता है। ५. दीवारों आदि पर होने वालों चूने की पुताई। सफेदी। ६. लाक्षणिक अर्थ में तथ्यों या वास्तविकता को छिपाने के लिए उन पर चढ़ाया हुआ आकर्षक किंतु मिथ्या आवरण। किसी एक रूप को छिपाने या ढकने के लिए धारम किया हुआ दूसरा दिखावटी भड़कीला रूप। मुहा०—कलई उधड़ना या खुलना=किसी के आंतरिक तथा वास्तविक स्वरूप या रहस्य का दूसरों को पता लगता। कलई न लगना=चाल या युक्ति का सफल न होना। ७. ऊपरी तथा दिखावटी तड़क-भड़क।
समानार्थी शब्द-  उपलब्ध नहीं
कलईगर  : पुं० [फा०] १. पीतल-आदि के बरतनों पर कलई करनेवाला कारीगर। २. लाक्षणिक अर्थ में वह व्यक्ति जो वास्तविक तथ्यों को छिपाने के लिए बहुत सुन्दर तथा आकर्षक बाहरी रूप बनाता हो।
समानार्थी शब्द-  उपलब्ध नहीं
कलईदार  : वि० [फा०] कलई किया हुआ (पात्र या बरतन)।
समानार्थी शब्द-  उपलब्ध नहीं
 
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