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खोल  : पुं० [सं० खोलक] [स्त्री० अल्पा० खोली] १. किसी चीज का ऊपरी आवरण। २. कुछ विशिष्ट प्रकार के कीड़े-मकोड़े का वह ऊपरी प्राकृतिक आवरण जिसके अंदर वे रहते हैं। जैसे– घोंघे सीपी आदि का खोल। ३. कपड़े का सिला हुआ झोले या थैले-जैसा आवरण जिसमें कोई चीज धूल, मिट्टी, मैल आदि से सुरक्षित रखने के लिए रखी जाती है। गिलाफ। जैसे–तकिये या लिहाफ का खोल, सारंगी या सितार का खोल। ४. मोटे कपड़े की बनी हुई दोहरी चादर। पुं० छोटे मृदंग की तरह का एक प्रकार का बाजा। वि० [सं०√खोड् (लँगड़ाना)+अच्,ड=ल] जिसका कोई अंग टूटा-फूटा या विकृत न हो। विकलांग। पुं० शिरस्त्राण। खोद।
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खोलना  : स० [सं० क्षुर् (काटनाया खोदना), प्रा० खुल्ल; मरा० खोलणें; सिं० खोलणु; उ० खोलिबा; बँ० खोल] हिन्दी खुलना का सकर्मक रूप जो भौतिक या मूर्त्त और अभौतिक या अमूर्त्त रूपों में नीचे लिखे अर्थों में प्रयुक्त होता है। भौतिक या मूर्त्त रूपों में= १. किसी को जकड़ने या बाँधनेवाला उपकरण, चीज या तत्त्व इस प्रकार हटाना कि वह बँधा रह जाए। बंधन से मुक्त या रहित करना। जैसे– (क) खूँटे में बँधी हुई गौ, घोड़ा या बकरी खोलना। (ख) गठरी या रस्सी की गाँठ खोलना। २. जकड़ी या लपीटी हुई चीज इस प्रकार अलग या ढीली करना कि वह निकल कर दूर हो जाय। जैसे– कमरबंद पगड़ी या हथियार खोलना। ३. जड़ी जमाई या बैठाई हुई चीज निकाल या हटाकर अलग या दूर करना। जैसे–(क) दरवाजे का पेंच खोलना। (ख) बोतल का काग या डाट खोलना। ४. जिसका मुँह बन्द किया गया हो, उसके मुँह पर का बंधन हटाकर उसमें चीजों के आने-जाने का रास्ता करना। जैसे–(क) चिट्ठी निकालने के लिए लिफाफा खोलना। (ख) रुपए निकालने या रखने के लिए तोड़ा, थैली या बटुआ खोलना। ५. जो प्राकृतिक या स्वाभाविक रूप से बिलकुल बन्द हो, उसे आघात आदि से काट, चीर या तोड़कर खंडित करना। जैसे–(क) नश्तर से घाव या फोड़े का मुँह खोलना। (ख) पत्थर या लाठी मारकर किसी का सिर खोलना। ६. बंद किया या भेड़ा किया हुआ जंगला या दरवाजा इस प्रकार खींचना या ढकेलना कि बीच में आने-जाने का मार्ग हो जाए। जैसे–खिड़की का फाटक खोलना। ७. आगे, ऊपर या सामने पड़ा हुआ आवरण, ढक्कन या परदा इस उद्देश्य से हटाना कि अन्दर उस पार या नीचें की चीजें अथवा भाग सामने आ जाएँ। जैसे–(क) पेटी या सन्दूक खोलना। (ख) मंदिर का पट खोलना। (ग) दवा पिलाने या दाँत उखाड़ने के लिए किसी का मुँह खोलना। ८. मोड़ी, लपेटी या तह की हुई चीज के सिरे आमने-सामने की दिशाओं में इस प्रकार फैलाना कि उसका अधिकतर भाग ऊपर या सामने हो जाए। विस्तृत करना। जैसे–(क) पढ़ने के लिए अखबार या किताब खोलना। (ख) बिछाने के लिए चादर या बिस्तर खोलना। ९. टँकी या सिली हुई चीज के टाँके या सिलाई अलग करना, तोड़ना या हटाना। जैसे–(क) साड़ी पर टकी हुई गोट का फीता खोलना। (ख) लिहाफ या अस्तर का पल्ले खोलना। १॰. शरीर पर धारण की या पहनी हुई चीज उतार या निकाल कर अलग या दूर करना। जैसे– कमीज, कुरता या जूता खोलना। ११. यांत्रिक साधन से बंद होनेवाली चीज पर ऐसी क्रिया करना कि वह बंद न रह जाय। जैसे–(क) ताला या हथकड़ी खोलना। (ख) पानी निकालने के लिए टंटी की टोटी खोलना। १२. यंत्रों आदि की मरम्मत या सफाई करने के लिए कल-पुरजे या कील-काँटे निकालकर उसके कुछ या सब अंग अलग-अलग करना या बाहर निकालना। जैसे–घड़ी या बाजा खोलना। १३. ठहराये या रोके हुए यान अथवा सवारी को उद्दिष्ट या दंतव्य स्थान की ओर ले जाने के लिए आगे बढ़ाना या चलाना। जैसे– नाव या मोटर खोलना। १४. अवरोध, बाधा या रुकावट हटाकर या उसके संबंध का कोई कृत्य अथवा घोषणा करके सार्विक उपयोग या व्यवहार के लिए सुगमता या सुभीता करना। जैसे–(क)जन साधारण के लिए नहर, मंदिर या सड़क खोलना। (ख) चराई या शिकार के लिए जंगल खोलना। (ग) शरीर का विकृत रक्त निकालने के लिए किसी की फसद खोलना। (घ) रोजा खोलना (अर्थात् उपवास या व्रत का अंत करके खाना-पीना आरंभ करना)। १५. अद्योग, कला, व्यापार, शिक्षा आदि के संबध का कोई नया कार्य आरंभ करना या संस्था खड़ी करना। जैसे–कारखाना, कोठी या पाठशाला खोलना। १६. नित्य नियत समय पर नैमित्तिक रूप से बंद की जानेवाली संस्था या स्थान कार्य फिर से आरंभ करने के लिए वहाँ पहुँचना और काम शुरू करना। जैसे–ठीक समय पर दफ्तर या दूकान खोलना। १७. किसी विशिष्ट क्रिया या प्रकार से कोई कार्य आरंभ करना या चलाना। जैसे–(क) खबरें या भाषण सुनने के लिए रेडियों खोलना। (ख) लेन-देन के लिए खाता या हिसाब खोलना। १८. शरीर के कुछ विशिष्ट अंगो का कार्य आरंभ करने के लिए उचित या सजग स्थिति में लाना। जैसे–(क) अच्छी तरह देखने या सुनने के लिए आँखे या कान खोलना। (ख) खाने के लिए मुँह या बोलने के लिए जवान खोलना। अभौतिक या अमूर्त रूपों में–१. अज्ञेय, अस्पष्ट या दुर्बोध को ज्ञेय, स्पष्ट या सुबोध करना। जैसे–(क) किसी वाक्य या श्लोक का अर्थ या आशय खोलना। (ख) किसी की पोल या भेद खोलना। २. जानकारी के लिए स्पष्ट रूप से सामने रखना। परिचित या विदित कराना। जैसे–किसी के आगे अपना उद्देश्य, विचार या हृदय खोलना। पद-जी खोलकर-(क) निष्कपट भाव या शुद्ध हृदय से। जैसे–जी खोलकर किसी से बातें करना। (ख) संकीर्णता आदि का भाव या विचार छोड़कर। जैसे–जी खोलकर खरचना, गाना या पढ़ाना।
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खोलि  : स्त्री० [सं०√खोल् (गतिहीनता)+इन्] तरकश। तूणीर।
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खोलिया  : स्त्री० [देश०] बढ़इयों का एक उपकरण जिससे वे लकड़ी पर बेल-बूटे आदि खोदते हैं।
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खोली  : स्त्री० [हिं० खोल का स्त्री रूप] १. तकिये आदि का गिलाफ। २. रहने की छोटी कोठरी। (महा०)
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