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गरमाना  : स० [फा० गर्म, हिं० गरम+आना (प्रत्यय)] १. कोई चीज आग पर रखकर उसे साधारण या हलका गरम करना। जैसे–पीने के लिए दूध या खाने के लिए ठंडी रोटी गरमाना। २. साधारण उष्णता या ताप से युक्त करना। जैसे–आग तापकर या धूप सेंककर हाथ-पैर गरमाना, रजाई ओढ़कर शरीर गरमाना। ३. ऐसा काम करना या ऐसी स्थिति उत्पन्न करना जिससे किसी में कुछ गरमी (आवेश, उत्तेजना, उत्साह, तीव्रता, प्रसन्नता आदि) उत्पन्न हो। जैसे–(क) कोई तीखी बात कहकर किसी आदमी को गरमाना। (ख) शराब पिलाकर भैसों को गरमाना। (ग) कुछ दूर दौड़ाकर घोड़े को गरमाना। (घ) गवैये का आरंभ में धीरे-धीरे कुछ समय तक गाकर अपना गला गरमाना। ४. किसी से जेब, हाथ आदि के संबंध में उसमें कुछ धन रखकर उसे प्रसन्न या संतुष्ट करना। जैसे–उसने थानेदार (या पेशकार) का जेब (या हाथ) गरमाकर उसे अपने अनुकूल कर लिया। अ० १. साधारण या हलकी उष्णता या ताप से युक्त होना। गरम होना। जैसे–(क) थोड़ी देर आँच पर रहने से दूध या पानी का गरमाना। (ख) आग तापने या कम्बल ओढ़ने से शरीर का गरमाना। २. आवेश, उत्तेजना आदि उग्र अथवा तीव्र मनोंभावों से युक्त होना। जैसे–जरा सी बात पर इस तरह गरमाना अच्छा नहीं होता। ३. किसी आरंभिक या औपचारिक क्रिया के प्रभाव से किसी प्राणी या उसके किसी अंग का तेजी पर आना और ठीक तरह से अपना काम करने के योग्य होना। जैसे–(क) कुछ दूर दौड़ने से घोडे का गरमाना। (ख) कुछ देर तक धीरे-धीरे गा लेने पर गवैये का गला गरमाना। ४. स्वाभाविक रूप से पशुओं आदि का उमंग में आना और काम-वासना से युक्त होना। जैसे–गौ या घोड़े का गरमाना। ५. जेब हाथ आदि के संबंध में रुपये-पैसे की उत्साह-वर्धक या सुकद प्राप्ति होना। जैसे–आज कई दिन बाद इनका जेब (या हाथ) गरमाया है।
समानार्थी शब्द-  उपलब्ध नहीं
 
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