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गौण  : वि० [सं० गुण+अण्] १. जो किसी की तुलना में महत्व, मान आदि के विचार से कुछ घटकर हो। जो प्रधान या मुख्य न हो। २. (शब्द का अर्थ) जो मुख्य या मूल अर्थ से भिन्न हो। लाक्षाणिक (अर्थ)। ३. बहुत ही सामान्य रूप से पूरक या सहायक बनने या होनेवाला।
समानार्थी शब्द-  उपलब्ध नहीं
गौण-चान्द्र  : पुं० [कर्म० स०] वह चांद्र मास जिसका आरंभ कृष्ण प्रतिपदा से माना जाता है।
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गौणिक  : वि० [सं० गुण+ठक्-इक] १. गुण-संबंधी। गुण या गुणों का। जैसे–पदार्थों की गौणिक समानता। २. सत्त्व रज और तम इन तीनों गुणों से संबंध रखनेवाला। ३. गुणवान्। गुणी।
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गौणी  : स्त्री० [सं० गौण+ङीष्] साहित्य में अस्सी प्रकार की लक्षणाओं में से एक जिसमें किसी पद का अर्थ केवल गुण, रूप आदि के सादृश्यवाले (उसके कार्य, कारण या अंगांगी भाववाले संबंध से भिन्न) तत्त्व से निकलता है। जैसे–यदि कहा जाए कि देवदत्त सिंह है तो शब्दार्थ के विचार से होना असंभव है, पर समझनेवाला लक्षणा के द्वारा इससे यह समझता है कि देवदत्त सिंह के समान बलवान् या पराक्रमी है। वि० सं० गौण का स्त्री रूप। (क्व०)।
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