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घान  : पुं० [सं० घना-समूह] १. किसी वस्तु की उतनी मात्रा जितनी एक बार कड़ाही, कोल्हू, चक्की आदि में तलने,पेरने,पीसने आदि के लिए डाली जाय। २. उतना अंश जितना एक बार में पकाया, बनाया या तैयार किया जाय। ३. हर बार क्रमशः उक्त प्रकार के या ऐसे ही और काम करने की क्रिया या भाव। जैसे– दूसरा या चौथा घान। मुहावरा– घान उतरना=उक्त प्रकार से एक बार काम ठीक उतरना या पूरा होना। घान डालना=उक्त प्रकार का कोई काम शुरू करना। घान पड़ना या लगना=उक्त प्रकार का कोई काम आरंभ होना। पुं० [हिं० घन=बड़ा हथौड़ा] १. बड़ा हथौड़ा। घन। २. बहुत बड़ा आघात या प्रहार। पुं० [सं० घ्राण] १. सूँघने की क्रिया या भाव। २. गंध। बू। उदाहरण– जहाँ न राति न दिवस है, जहाँ न पौन न घानि।–जायसी।
समानार्थी शब्द-  उपलब्ध नहीं
घाना  : स० [सं० घात,प्रा० घाय+ना (प्रत्य)] १,.घात या प्रहार करना। २. नाश या संहार करना।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) स० गहना (पकड़ना)।
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घानि  : स्त्री० १=घान (गंध)। २. =घानी।
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घानी  : स्त्री० [हिं० घान] १. वह स्थान जहाँ कोई काम करने के लिए एक-एक करके घान डाले जाते हों। २. ऊख,तेल आदि पेरने का कोल्हू या उसकी जगह। ३. ढेर। राशि। ४. दे० घान। मुहावरा– घानी करना=पीसना,पेरना या ऐसा ही और कोई काम करना। घानी की सवारी-स्त्री० [हिं०] मालखंभ की एक जिसमें एक हाथ में मोंगरा पकड़कर माल खंभ के चारों ओर घानी या कोल्हू की तरह चक्कर लगाते हैं।
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