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चरण  : पुं० [सं०√चर् (चलना)+ल्युट-अन] १. किसी देवता या पूज्य व्यक्ति के पाँव या पैर के लिए आदर-सूचक शब्द। जैसे–(क) हमारा धन्य भाग जो आज यहाँ आपके चरण पधारे हैं। (ख) बड़ों की चरण पादुका पूजना या धरण-सेवा करना। मुहावरा–(किसी के) चरण छूनाबहुत आदरपूर्वक चरण छूते हुए दंडवत् या प्रणाम करना। (कहीं-कहीं) चरण देना=पैर रखना। (कहीं किसी के) चरण पड़ना=पदार्पण या शुभागमन होना। (किसी के) चरण लेना-चरण छूकर प्रणाम करना। (किसी के) चरणों पड़नाचरणों पर सिर रखकर प्रणाम करना। २. बडों या महापुरुषों का सान्निध्य या सामीप्य। जैसे–भगवान के चरण छोड़कर वह कहीं जाना नहीं चाहते। ३. किसी चीज का विशेषतः काल, मान आदि का चौथाई भाग। जैसे–वह बीसवीं सदी का तीसरा चरण है। ४. छंद, पद्य, श्लोक आदि का चौथा भाग अथवा कोई एक पूरी पंक्ति। ५. नदी का वह भाग जो तटवर्ती पहाड़ी गुफा या गड्ढे तक चला गया हो। ६. घूमने-फिरने या सैर करने की जगह। ७. जड़। मूल। ८. गोत्र। ९. क्रम। सिलसिला। १॰. आचार-व्यवहार। ११. चंद्रमा, सूर्य आदि की किरण। १२. कोई काम पूरा करने के लिए की जानेवाली सब क्रियाएँ। अनुष्ठान। १३. गमन। जाना। १४. पशुओं आदि का चारा चरना। १५. भक्षण करना। खाना। १६. वेद की कोई शाखा। जैसे–कठ, कौथुम आदि चरण। १७. किसी जाति, वर्ग या संप्रदाय के लिए विहित कर्म। १८. आधार। सहारा। १९. खंभा।
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चरण-कमल  : पुं० [उपमि० स०] कमलों के समान सुंदर चरण या पैर। (आदर-सूचक)।
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चरणकरणानुयोग  : पुं० [चरण-करण, ष० त० चरणकरण-अनुयोग, ब० स०] जैन साहित्य में, ऐसा ग्रंथ जिसमें किसी के चरित्र का बहुत ही सूक्ष्म दृष्टि से विचार या व्याख्या की गई हो।
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चरण-गुप्त  : पुं० [सं० ब० स०] एक प्रकार का चित्र-काव्य जिसके कई भेद होते हैं। इसमें कोष्ठक बनाकर उनमें कविता के चरणों या पंक्तियों के अक्षर भरे जाते हैं।
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चरण-ग्रंथि  : स्त्री० [ष० त०] पैरों में नीचे की ओर की गाँठ। गुल्फ। टखना।
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चरण-चिन्ह्र  : पुं० [ष० त०] १. पैरों के तलुए की रेखा या लकीरें। २. बालू, मिट्टी आदि पर पड़े हुए किसी के पैरों के चिन्ह्र या निशान जिन्हें देखकर किसी का अनुकरण या अनुसरण किया जता है। ३. धातु, पत्थर आदि की बनाई हुई देवताओँ आदि के चरणों की आकृति जो प्रायः पूजी जाती है।
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चरण-तल  : पुं० [ष० त०] पैर का तलुआ।
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चरण-दास  : पुं० [ष० त०] १. चरणों की सेवा करने वाला दास या सेवक। २. दिल्ली के एक महात्मा साधु जो जाति के धूसर बनिये थे। इनका जन्म संवत् १७६॰ में और शरीरांत सं० १८३९ में हुआ था। इनके चलाये हुए सम्प्रदाय के साधु चरणदासी साधु कहलाते हैं। ३. जूता। (परिहास)।
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चरण-दासी  : वि० स्त्री० [ष० त०] चरणों की सेवा करनेवाली (दासी या स्त्री०)। स्त्री० १. पत्नी। भार्या। २. जूता। वि० चरण-दास संबंधी। पुं० महात्मा चरणदास के चलाये हुए सम्प्रदाय का अनुयायी।
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चरण-न्यास  : पुं० चरण-चिन्ह्र।
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चरणप  : पुं० [सं० चरण√पा (रक्षा करना)+क, उप० स०] पेड़। वृक्ष।
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चरण-पर्व(न्)  : पुं० [ष० त०] गुल्फ। टखना।
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चरण-पादुका  : स्त्री० [ष० त०] १. खड़ाऊँ। पाँवड़ी। २. धातु, पत्थर आदि की बनी हुई किसी देवी-देवता या महापुरुष के चरणों की आकृति जिसकी पूजा होती है।
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चरण-पीठ  : पुं० [ष० त०] चरण-पादुका।
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चरण-युग(ल)  : पुं० [ष० त०] किसी देवता या पूज्य व्यक्ति के दोनों चरण या पैर।
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चरण-रज(स्)  : स्त्री० [ष० त०] किसी पूज्य व्यक्ति के चरणों की धूल जो बहुत पवित्र समझी जाती है।
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चरण-शुश्रुषा  : स्त्री० =चरण-सेवा।
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चरण-सेवा  : स्त्री० [ष० त०] किसी पूज्य व्यक्ति के पैर दबाकर की जानेवाली सेवा।
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चरण-सेवी(विन्)  : पुं० [सं० चरण√सेव (सेवा करना)+णिनि, उप० स०] १. वह जो किसी की चरण-सेवा करता हो। २. दास। सेवक।
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चरणा  : स्त्री० [सं० चरण+अच्+टाप्] एक रोग जिसमें मैथुन के समय स्त्रियों का रज बहुत जल्दी स्खलित हो जाता है। पुं०[?] काछा।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) क्रि० प्र० काछना।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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चरणाक्ष  : पुं० [चरण-अक्षि, ब० स०] अक्षपाद या गौतम ऋषि का एक नाम।
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चरणाद्रि  : पुं० [सं० चरण-अद्रि, ब० स०] १. विंध्य पर्वत की एक शिला (चुनार नगरी के समीर) जिस पर बने चरण चिन्ह को हिंदू बुद्धदेव का और मुसलमान जिसे ‘कदमे रसूल’ बतलाते हैं। २. उत्तर प्रदेश का चुनार नामक स्थान।
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चरणानति  : स्त्री० [चरण-आनति, स० त०] किसी बड़े के चरणों पर झुकना, गिरना या पड़ना।
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चरणानुग  : वि० [चरण-अनुग, ष० त०] १. किसी के चरणों या पदचिन्हों का अनुगमन करनेवाला व्यक्ति। अनुगामी। २. अनुयायी। ३. शरणागत।
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चरणामृत  : पुं० [सं० चरण-अमृत, ष० त०] वह पानी जिसे किसी देवता या महात्मा के चरण धोये गये हों और इसी लिए जो अमृत के समान पूज्य समझ कर पिया जाता हो। २. दूध, दही, घी, चीनी और शहद का वह मिश्रण जिसमें लक्ष्मी, शालिग्राम आदि को स्नान कराया जाता है। और जो उक्त जल की भाँति पवित्र समझकर पिया जाता है। पंचामृत। मुहावरा–चरणामृत लेना=(क) चरणामृत पीना। (ख) बहुत ही थोड़ी मात्रा में कोई तरल पदार्थ पीना।
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चरणायुध  : पुं० [चरण-आयुध, ब० स०] मुरगा जो अपने पैरों के पंजों से लड़ता है।
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चरणार्द्ध  : वि० [चरण-अर्द्ध, ष० त०] चरण अर्थात् चतुर्थाश का आधा (भाग)। पुं० १. किसी चीज का आठवाँ भाग। २. किसी कविता या पद्य के चरण का आधा भाग।
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चरणि  : पुं० [सं०√चर् (चलना)+अनि] मनुष्य। वि० गमन करने या चलनेवाला। चर।
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चरणोदक  : पुं० [चरण-उदक, ष० त०] चरणामृत (दे०)
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चरणोपधान  : पुं० [चरण-उपधान, ष० त०] १. वह चीज जिस पर पैर रखे जाय। पाँवदान।
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